सार

सियासी गलियारों में परदे के पीछे बहुत कुछ घटता है- ओपिनियन, साजिश, सत्ता का खेल और राजनीतिक क्षेत्र में आंतरिक तकरार। पेश है 'फ्रॉम द इंडिया गेट' का 39वां एपिसोड, जो आपके लिए लाया है पॉलिटिक्स की दुनिया के कुछ ऐसे ही चटपटे और मजेदार किस्से।

From The India Gate: सियासी गलियारों में परदे के पीछे बहुत कुछ होता है- ओपिनियन, साजिश, सत्ता का खेल और राजनीतिक क्षेत्र में आंतरिक तकरार। एशियानेट न्यूज का व्यापक नेटवर्क जमीनी स्तर पर देश भर में राजनीति और नौकरशाही की नब्ज टटोलता है। अंदरखाने कई बार ऐसी चीजें निकलकर आती हैं, जो वाकई बेहद रोचक और मजेदार होती हैं। पेश है 'फ्रॉम द इंडिया गेट' (From The India Gate) का 39वां एपिसोड, जो आपके लिए लाया है, सत्ता के गलियारों से कुछ ऐसे ही मजेदार और रोचक किस्से।

जयपुर के इन दंबग नेता जी की नाक कट गई..

जयपुर में एक बड़े नेता हैं, जो सरकार में मंत्री हैं। कई बार ये अपनी ही सरकार की किरकिरी करवा चुके हैं। कुछ दिन पहले ये नेता जी एक मेयर के पीछे पड़ गए। वो मेयर से कुछ गलत काम करवाना चाह रहे थे, जिसे उसने करने से इनकार कर दिया। नेता जी को ना सुनने की आदत तो है नहीं, इसलिए इन्होंने मेयर को 'शूट' करवा दिया। मेयर से कुर्सी छीन ली। चर्चा है कि मेयर ने नेताजी की भेजी फाइलों पर गौर नहीं किया। इसी कारण कुर्सी खतरे में आ गई। मेयर के पति को जेल हो गई और सरकार ने तुरंत मैडम को निलंबित कर दिया। हालांकि, हाईकोर्ट के आदेश पर मेयर को न्याय मिला, लेकिन अब मंत्री जी की वजह से सरकार की जमकर फजीहत होनी शुरू हो गई है। 

राजस्थान की जेल में रिटायर्ड अफसर ने किया तगड़ा खेल!

राजस्थान की टॉप-3 सेंट्रल जेल में शामिल एक जेल में एक अफसर का खेल इन दिनों चर्चा में है। खेल की सूचना हाईकमान तक पहुंची तो आनन-फानन में जांच के आदेश हो गए। दोषी पाए जाने पर नौकरी जाने का खतरा भी है। नौकरी बचाने के लिए अफसर ने अब आकाओं के यहां हाजिरी लगाना शुरू कर दी है। दरअसल, इस अफसर को जेल सेवा से इतना प्यार हो गया कि रिटायरमेंट के बाद भी नौकरी हथिया ली। चर्चा है कि दोबारा कुर्सी पाने के लिए साहब ने 15 लाख रुपए खर्च किए हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि यहां महीने की इनकम करोड़ों में जो है।

'आप' की दुविधा..

आम आदमी पार्टी (आप) के मुखिया अरविंद केजरीवाल का कांग्रेस के साथ जाने का कोई इरादा नहीं है। लेकिन AAP केवल इस डर से I.N.D.I.A गठबंधन में शामिल हुई कि अगर वह राजनीतिक रूप से तटस्थ रही तो उसे बीजेपी का सहयोगी कहा जाएगा। जब कांग्रेस के साथ बातचीत शुरू हुई, तो AAP देश के अन्य हिस्सों में अपने गठबंधन का विस्तार करने के मल्लिकार्जुन खड़गे के प्रस्ताव से सहमत नहीं हुई। इसके बजाय AAP दिल्ली में 5 और पंजाब में 13 सीटों को दान करने के बदले में हरियाणा, मध्य प्रदेश और गुजरात में 7 सीटें चाहती थी। लेकिन कांग्रेस आप के इस झांसे में नहीं आई, क्योंकि इससे आप के लिए राष्ट्रीय पार्टी बनने का रास्ता साफ हो जाता। आम आदमी पार्टी को डर है कि अगर वो I.N.D.I.A में शामिल हो गई तो उसके मिडिल क्लास वोटर्स छिटक जाएंगे और वे भाजपा को वोट देना पसंद करेंगे। यही जमीनी हकीकत है। अब दोनों पार्टियां इस बात का इंतजार कर रही हैं, कि पहले कौन इनकार करता है।

From The India Gate: कहीं पार्टी नेताओं को मिला टारगेट तो कहीं रिश्वतखोरी का बचाव करता दिखा विपक्ष

कर्नाटक में शिव शक्ति..

कर्नाटक की राजनीति की अंतर्धारा और उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार से परिचित कोई भी शख्स वास्तव में इस नए सिक्के के अर्थ की सराहना करेगा। विपक्षी खेमे से शिकार करते वक्त उनकी शार्प-शूटिंग स्किल एक बार फिर साफ नजर आ रही है। दरअसल, डीके शिवकुमार के भाई डीके सुरेश बेंगलुरु उत्तर से चुनाव लड़ने की प्लानिंग कर रहे हैं। डीके परिवार के निशाने पर बीजेपी विधायक एसटी सोमशेखर, गोपालैया और बिरथी सुरेश हैं। इस कदम से कांग्रेस को आगामी BBMP चुनावों में मदद मिलेगी और यहां तक ​​कि 2024 के लोकसभा चुनावों पर भी इसका असर पड़ेगा। अगर ये बीजेपी विधायक इस्तीफा देते हैं तो लोकसभा चुनाव के साथ ही उपचुनाव होने की संभावना है। कांग्रेस को इससे फायदा मिलने की उम्मीद है, क्योंकि बेंगलुरु में बीजेपी को बड़ा समर्थन ब्राह्मण, वोक्कालिगा और उत्तर भारतीयों से मिलता है। डीके सुरेश की बेंगलुरु एंट्री से यह क्लियर हो जाएगा कि आने वाले चुनाव में भी ये सीट कांग्रेस पार्टी के पास ही रहेगी। लेकिन शिव शक्ति के शिकार भाजपा विधायकों को किस बात का इंतजार है, ये अब भी अज्ञात है।

वंचितों को हटाने का साम्यवादी तरीका..

साथियों के लिए, साथियों द्वारा, साथियों की ओर से। त्रिशूर जिले में CPM द्वारा संचालित सहकारी बैंक में हुए घोटाले पर ये लाइनें सबसे फिट बैठती हैं। बैंक और उसका ऑपरेशन प्रवर्तन निदेशालय (ED) के रडार पर हैं। इसके अलावा इस घोटाले में एक पूर्व मंत्री भी कटघरे में हैं। पार्टी ने हमेशा की तरह यह कहते हुए पल्ला झाड़ने की कोशिश की है कि केंद्र सरकार ने CPM नेताओं को परेशान करने के लिए ईडी को तैनात कर दिया है। लेकिन इस मामले में शिकायतकर्ता खुद सीपीएम नेता थे। उन्होंने बताया कि कैसे इस टॉप सीपीएम लीडर के परिजनों को भारी-भरकम लोन दिया गया। यहां तक कि करोड़ों रुपये गायब हो गए और बैंक का खजाना खाली हो गया। बैंक द्वारा अपनी कमिटमेंट पूरी करने में विफल रहने के बाद सहकारी समिति के कई सदस्यों की मौत हो गई। हालांकि, बावजूद इसके सीपीएम इस नेता का बचाव कर रही है, जो बड़े पैमाने पर हुई गड़बड़ियों के बारे में सबकुछ जानते हुए भी अनजान बन रहा है। इतना सबकुछ होने के बाद भी कोई उंगली नहीं उठा रहा, क्योंकि पार्टी के टॉप लीडर्स और उनके परिजन एक निजी कंपनी से भुगतान लेने के मामले में संदेह के घेरे में हैं। हो सकता है कि ये समाज से वंचितों को हटाने का एक नया साम्यवादी तरीका हो।

एक तो चोरी, उपर से सीनाजोरी..

CPM कॉमरेड्स का अहंकार पार्टी और उसके सुप्रीमो के दूसरे कार्यकाल के लिए सत्ता में आने के बाद चरम पर है। ये सबकुछ राजधानी तिरुवनंतपुरम में तब देखने को मिला, जब बिना हेलमेट लगाए गाड़ी चला रहे एक सीपीएम नेता पर जुर्माना लगाने के लिए कॉमरेड्स कार्यकर्ताओं ने पुलिस थाने के सामने जमकर हंगामा किया। CPM ने अपने नेता, जिसने साफतौर पर ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन किया था, उस पर मामला दर्ज करने के लिए 3 पुलिसकर्मियों का तबादला कर दिया। ये वाकया राजधानी के बीचोंबीच हुआ, लेकिन मजाल है कि सीपीएम के किसी बड़े नेता ने इसमें कोई हस्तक्षेप किया या अपने कार्यकर्ताओं को रोका हो। हालांकि, सीपीएम से जुड़े पुलिस एसोसिएशन के मेंबर्स ने इस पर उंगली उठाई। लेकिन पुलिस के आला अफसरों ने विभागीय जांच शुरू की और तीनों पुलिसकर्मियों को बरी कर दिया। बाद में इन पुलिसकर्मियों को इसी थाने में बहाल कर दिया गया। अब देखने वाली बात ये है कि सत्तारूढ़ दल इस आखिर पर कैसे रिएक्ट करता है।

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