सार

अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन (Joe Biden) और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच द्विपक्षीय बैठक हुई। अमेरिका ने भारत के साथ मिलकर छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर टेक्नोलॉजी के विकास पर काम करने पर सहमति जताई है।

नई दिल्ली। जी20 शिखर सम्मेलन (G20 Summit 2023) में हिस्सा लेने के लिए नई दिल्ली आए अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन (Joe Biden) और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच शुक्रवार देर शाम द्विपक्षीय बैठक हुई। इस दौरान सिविल न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी पर बात हुई।

द्विपक्षीय बैठक के बाद जारी संयुक्त बयान में बताया गया है कि अमेरिका भारत के साथ न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में सहयोग करेगा। दोनों देश अगली पीढ़ी के छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर टेक्नोलॉजी के विकास पर मिलकर काम करेंगे। अमेरिका ने परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह में भारत को शामिल करने के लिए समर्थन व्यक्त किया। छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर तैयार करने में सफलता मिलती है तो भारत इसकी मदद से कम खर्च में अपनी ऊर्जा जरूरतें पूरी कर सकेगा।   

क्या है स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर?

स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर नए जमाने के न्यूक्लियर रिएक्टर हैं। एक स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर से 300 मेगावाट तक बिजली बनाई जा सकती है। यह आकार में छोट होते हैं। इन्हें लगाना सरल होगा। इन रिएक्टरों को एक फैक्ट्री में बनाकर दूसरी जगह ले जाकर लगाया जा सकता है। इससे पर्यावरण को कम नुकसान होगा। स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर की मदद से नए पावर प्लांट लगाना कम खर्चीला होगा। यह वर्तमान में इस्तेमाल किए जा रहे बड़े परमाणु रिएक्टर की तुलना में अधिक सुरक्षित होगा। इसमें एक बार में ही लाइफटाइम के लिए इंधन भरा जा सकेगा।

स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर को होगी कम इंधन की जरूरत
स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर को कम ईंधन की जरूरत होगी। इससे हादसा होने का खतरा भी घटेगा। वर्तमान में इस्तेमाल हो रहे न्यूक्लियर रिएक्टरों को एक से दो साल में ईंधन की जरूरत होती है। स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर में हर 3 से 7 साल में ईंधन भरने की आवश्यकता हो सकती है। ऐसे स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर भी बनाए जा रहे हैं जिसे एक बार इंधन भरने के बाद 30 साल तक चलाया जा सकेगा।

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भारत खुद भी स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर के विकास पर काम कर रहा है। भारत का लक्ष्य 2070 तक नेट जीरो कार्बन एमिशन का है। इसका मतलब है कि ऊर्जा के लिए कोयला, तेल या गैस नहीं जलाया जाएगा। 100 फीसदी ऊर्जा ऐसे माध्यम से पैदा की जाएगी, जिससे वातावरण में जहरीले गैसों का उत्सर्जन नहीं हो। इस लक्ष्य को पाने के लिए न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल अहम साबित होगा।

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