सार

गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार (Gandhi Peace Prize) दिया गया है। कांग्रेस ने इसका विरोध किया है। सोशल मीडिया पर लोग इसके चलते कांग्रेस पर तंज कस रहे हैं। लोग कह रहे हैं कि दिख रहा है कि कांग्रेस में हिंदुओं के प्रति कितनी नफरत है।

 

नई दिल्ली। 2021 का गांधी शांति पुरस्कार (Gandhi Peace Prize) गीता प्रेस (Gita Press) को मिला है। इसपर राजनीतिक विवाद शुरू हो गया है। कांग्रेस पार्टी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली ज्यूरी के फैसले की जमकर आलोचना की है। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार देना सावरकर और गोडसे को सम्मानित करने जैसा है।

 

 

सोशल मीडिया पर जयराम रमेश के इस बयान की जमकर आलोचना हो रही है। लोग कह रहे हैं कि कांग्रेस नेता के बयान से दिख रहा है कि इस पार्टी के लोगों में हिंदुओं के प्रति कितनी नफरत भरी है। राजनीतिक टिप्पणीकार सुनंदा वशिष्ठ ने ट्वीट किया, "अगर आप यह समझते कि गीता प्रेस का मतलब लाखों हिंदू परिवार हैं तो आप कभी ऐसा नहीं कहते। एक तरह के वोट जुटाने से आपको सत्ता नहीं मिलेगी। आपको खुद पर शर्म करना चाहिए।"

 

 

दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ स्वदेश सिंह ने ट्वीट किया, "आपको गीता प्रेस द्वारा प्रकाशित कल्याण पत्रिका के किसी भी एडिशन को कोट करना चाहिए था। यह आम लोगों के बीच आध्यात्मिक, मानवतावादी और नैतिक मूल्यों को फैलाने का माध्यम बन गया है। हनुमान प्रसाद पोद्दार जी द्वारा तय किए गए निर्देश के अनुसार पत्रिका ने कभी विज्ञापन नहीं लिया।"

 

 

एक अन्य ट्विटर यूजर ने लिखा, "गीता प्रेस देश में सनातन धर्म के सबसे मजबूत स्तंभों में से एक है। इसने पूरी दुनिया में हमारे प्राचीन ग्रंथ को फैलाने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। गीताप्रेस को गांधी शांति पुरस्कार मिलने से कांग्रेस को समस्या है। यह हिंदुओं के प्रति उनकी नफरत को दिखाता है।"

 

 

एक अन्य यूजर ने ट्वीट किया, "इंटरनेट युग से पहले हममें से अधिकांश गीता प्रेस की वजह से हमारे शास्त्रों के बारे में जान पाए। भारत में उनका योगदान जबरदस्त है। हिंदुओं और हिंदू धर्म के लिए आपकी नफरत अब बहुत स्पष्ट रूप से दिखाई देती है! क्या यह कांग्रेस का भी आधिकारिक स्टैंड है?"

1923 में हुई थी गीता प्रेस की स्थापना

गौरतलब है कि 1923 में गीता प्रेस की स्थापना हुई थी। यह दुनिया के सबसे बड़े प्रकाशकों में से एक है। इसने 14 भाषाओं में 4170 लाख किताबों का प्रकाशन किया है। इसमें श्रीमद् भगवत गीता की 1621 लाख कॉपी शामिल है। गीता प्रेस के प्रबंधक लालमणि तिवारी ने कहा है कि गीता प्रेस ने बीते 100 साल में किसी पुरस्कार को स्वीकार नहीं किया है। इस बार प्रबंधन ने पुरस्कार स्वीकार करने का फैसला किया है, लेकिन हम पुरस्कार के साथ मिलने वाला 1 करोड़ रुपए नहीं लेंगे।