सार
कृषि कानूनों को रद्द कराने की मांग को लेकर किसान राजधानी और उसके आसपास डेरा डाले हुए हैं। इसी बीच केंद्र सरकार ने एक बार फिर किसानों को पत्र लिखा है। सरकार ने किसानों से बातचीत के लिए तारीख और समय तय करने के लिए कहा है। सरकार ने कहा, हम किसानों द्वारा उठाए गए मुद्दों के तार्किक समाधान के लिए प्रतिबद्ध हैं।
नई दिल्ली. कृषि कानूनों को रद्द कराने की मांग को लेकर किसान राजधानी और उसके आसपास डेरा डाले हुए हैं। इसी बीच केंद्र सरकार ने एक बार फिर किसानों को पत्र लिखा है। सरकार ने किसानों से बातचीत के लिए तारीख और समय तय करने के लिए कहा है। सरकार ने कहा, हम किसानों द्वारा उठाए गए मुद्दों के तार्किक समाधान के लिए प्रतिबद्ध हैं।
दरअसल, किसानों की ओर से बुधवार को एक पत्र लिखा गया था। इसमें कहा गया था कि सरकार किसानों के आंदोलन को बदनाम करने की कोशिश कर रही है। यह किसी से छिपा नहीं है, कि भारत सरकार किसानों के शांतिपूर्ण जमीनी और कानून सम्मत संघर्ष को अलगाववादियों और चरमपंथियों के रूप में पेश करने संप्रदायवादी और क्षेत्रीय रंग देने का तर्कहीन और बेतुका प्रयास कर रही है। इतना ही इस पत्र में कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर द्वारा विभिन्न किसान संगठनों से मुलाकात पर भी सवाल उठाए गए थे।
सरकार ने क्या लिखा पत्र में ?
पत्र में सरकार की ओर से लिखा गया है कि सरकार अपनी प्रतिबद्धता दोहराना चाहती है। वह आंदोलनकारी किसान संगठनों द्वारा उठाए गए मुद्दों का तर्कपूर्ण समाधान करने के लिए तत्पर है। दिनांक 20-12-2020 को लिखे पत्र में भी यह कहा गया था कि सरकार किसान संगठनों द्वारा उठाए गए सभी मौखिक एवं लिखित मुद्दों पर सरकार सकारात्मक रुख अपनाते हुए वार्ता के लिए तैयार है।
पत्र में आगे लिखा है कि भारत सरकार के लिए देश के समस्य किसान संगठनों के साथ वार्ता का रास्ता खुला रखना आवश्यक है। देश के अनेक स्थापित किसान संगठनों एवं किसानों की आदरपूर्वक बात सुनना सरकार का दायित्व है। सरकार इससे इंकार नहीं कर सकती।
पढ़ें पूरा पत्र
भारत सरकार का किसानों को पत्र