सार

भारत में हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है। इसे मनाने का उद्देश्य हिन्दी को जन-जन की भाषा बनाना है। बता दें कि 14 सितम्बर, 1949 को हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया गया था। इसके बाद साल 1953 से 14 सितंबर को हर साल हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।

Hindi diwas 2022: भारत में हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है। इसे मनाने का उद्देश्य हिन्दी को जन-जन की भाषा बनाना है। बता दें कि 14 सितम्बर, 1949 को हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया गया था। इसके बाद साल 1953 से 14 सितंबर को हर साल हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। वैश्विक स्तर पर देखा जाए तो  अंग्रेजी और मंदारिन के बाद हिंदी तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है। यही वजह है कि हिंदी का वर्चस्व बढ़ता जा रहा है। इस पैकेज में हम बता रहे हैं उन नेताओं के बारे में, जिन्होंने विदेशों में भी हिंदी का मान बढ़ाया। 

अटल बिहारी वाजपेयी : 
4 अक्टूबर 1977 वो ऐतिहासिक दिन था, जब संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में भाषण देकर अटल बिहारी वाजपेयी ने इतिहास रचा था। इस दौरान उन्होंने कहा था- मैं भारत की ओर से इस महासभा को आश्वासन देना चाहता हूं कि हम विश्व के आदर्शों की प्राप्ति और मानव कल्याण तथा उसके गौरव के लिए त्याग और बलिदान की बेला में कभी पीछे नहीं रहेंगे। उस समय देश में मोरारजी देसाई की अगुवाई में जनता पार्टी की सरकार थी और वाजपेयी विदेश मंत्री के रूप में काम कर रहे थे। उस दिन संयुक्त राष्ट्र महासभा में इतिहास रचा गया क्योंकि पहली बार वैश्विक नेताओं के सामने हिंदी गूंजी थी। 

नरेन्द्र मोदी : 
संयुक्त राष्ट्र महासभा के 75वें सत्र को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस वैश्विक संस्था में सुधार की पुरजोर मांग की थी। सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के लिए भारत की दावेदारी को उन्होंने पुरजोर तरीके से उठाया। इसके अलावा उन्होंने आतंकवाद, कोरोना महामारी और बदलते हुए भारत पर भी बात की थी। उन्होंने कहा था- जब हम मजबूत थे तो दुनिया को कभी सताया नहीं। जब हम मजबूर थे तो दुनिया पर कभी बोझ नहीं बने। जिस देश में हो रहे परिवर्तनों का प्रभाव दुनिया के बहुत बड़े हिस्से पर पड़ता है, उस देश को आखिर कब तक इंतजार करना पड़ेगा।

सुषमा स्वराज : 
2016 में सुषमा स्वराज ने यूएन महासभा में  पाकिस्तान को फटकार लगाते हुए कहा था कि आतंकवाद...आतंकवादियों को पालना कुछ देशों का शौक बन गया है। जब तक सीमापार से आतंक की खेती बंद नहीं होगी, भारत पाकिस्तान के बीच बातचीत नहीं हो सकती। उन्होंने पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से कहा था- आप हमारी नीति पर सवाल उठाते हैं। नवाज शरीफ जी ने पहले भी 4 फॉर्मूले सुझाए थे, तब हमने कहा था कि फॉर्मूला केवल एक है कि पाकिस्तान आतंकवाद छोड़े। जब सीमा पर जनाजे उठ रहे हों, तो बातचीत की आवाज अच्छी नहीं लगती।

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