चक्रवात दितवाह के बाद श्रीलंका में पहली बार भारतीय सेना ने सैटेलाइट इंटरनेट तैनात किया। OneWeb LEO नेटवर्क से टेलीमेडिसिन, रेस्क्यू और राहत कार्य संभव हुए। ऑपरेशन सागर बंधु में भारत फिर पहले रिस्पॉन्डर बना।

नई दिल्ली। जब चारों ओर पानी ही पानी हो, सड़कें गायब हों, मोबाइल नेटवर्क ठप हो जाएं और लोग एक-दूसरे से कट जाएं तब राहत कैसे पहुंचे? श्रीलंका में आई भयानक बाढ़ के दौरान यही सबसे बड़ा सवाल था। चक्रवात दितवाह ने पूरे देश में ऐसा कहर बरपाया कि ज़मीनी संचार व्यवस्था पूरी तरह बैठ गई। ऐसे हालात में भारतीय सेना ने पहली बार इतिहास रचते हुए सैटेलाइट इंटरनेट तैनात किया और श्रीलंका को दुनिया से फिर जोड़ दिया। यह कदम सिर्फ राहत नहीं, बल्कि भविष्य की आपदा रणनीति की झलक भी है।

चक्रवात दितवाह ने श्रीलंका को कैसे अलग-थलग कर दिया?

  1. तेज़ हवाओं और लगातार बारिश के कारण श्रीलंका के कई इलाके पूरी तरह जलमग्न हो गए।
  2. मोबाइल टावर, इंटरनेट केबल, बिजली ग्रिड-सब फेल हो गए।
  3. हजारों लोग मदद के लिए पुकार रहे थे, लेकिन संचार का कोई ज़रिया नहीं था।

ऐसे में राहत एजेंसियों के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी-आपस में संपर्क कैसे रखा जाए?

भारतीय सेना ने इंटरनेट कैसे बहाल किया?

इसी संकट के बीच भारतीय सेना ने ऑपरेशन सागर बंधु के तहत एक अनोखा कदम उठाया। सेना ने Eutelsat OneWeb के LEO (Low Earth Orbit) सैटेलाइट इंटरनेट सिस्टम को तैनात किया, जो एयरटेल की साझेदारी से संचालित है। इन सैटेलाइट टर्मिनलों को सीधे बाढ़ प्रभावित इलाकों में लगाया गया, जिससे कुछ ही घंटों में सुरक्षित इंटरनेट लिंक बहाल हुए। राहत टीमों के बीच रियल-टाइम संपर्क बना। भारत से डॉक्टरों की 24×7 टेलीमेडिसिन सेवा शुरू हुई। यानी, जहां ज़मीन से कोई रास्ता नहीं था, वहां आसमान से इंटरनेट उतारा गया।

OneWeb LEO सैटेलाइट इंटरनेट क्या है और यह खास क्यों है?

OneWeb का LEO सैटेलाइट सिस्टम धरती से काफ़ी करीब घूमता है। इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि कम लेटेंसी (कम देरी), तेज़ स्पीड, दूरदराज इलाकों में भी कनेक्टिविटी और जब बाढ़, भूकंप या युद्ध में ज़मीनी नेटवर्क टूट जाते हैं, तब यही तकनीक जीवन रेखा बनती है।

टेलीमेडिसिन ने कैसे बचाई जानें?

सैटेलाइट इंटरनेट के ज़रिए गंभीर रूप से घायल लोगों की जांच, भारत में बैठे विशेषज्ञ डॉक्टरों से लाइव सलाह, दवाइयों और इलाज का तत्काल मार्गदर्शन लिया जा सकता है।यह सुविधा खासतौर पर उन इलाकों में जीवन रक्षक साबित हुई, जहां अस्पताल तक पहुंचना नामुमकिन था।

क्या यह सिर्फ राहत मिशन था या भविष्य की तैयारी?

यह तैनाती सिर्फ श्रीलंका तक सीमित नहीं है। यह एक केस स्टडी है कि आने वाले समय में जलवायु आपदाएं बढ़ेंगी ज़मीनी नेटवर्क बार-बार फेल होंगे तब सैटेलाइट इंटरनेट ही सबसे भरोसेमंद विकल्प होगा।यूटेलसैट की APAC वाइस प्रेसिडेंट नेहा इडनानी ने भी कहा कि संकट में सुरक्षित और लचीला संचार ही सबसे बड़ा हथियार होता है।

भारत में सैटेलाइट इंटरनेट अब भी क्यों अटका है?

हालांकि यह मिशन सफल रहा, लेकिन भारत में अभी भी OneWeb सीमित ट्रायल लाइसेंस पर काम कर रहा है। कमर्शियल रोलआउट को पूरी मंजूरी नहीं। Starlink जैसे ग्लोबल प्लेयर्स एंट्री की तैयारी में स्पेक्ट्रम, लाइसेंस और सुरक्षा नियमों के कारण सैटेलाइट ब्रॉडबैंड की रफ्तार धीमी है।

ऑपरेशन सागर बंधु से भारत को क्या संदेश मिला?

इस मिशन के तहत भारत ने 53 टन राहत सामग्री भेजी। NDRF टीमों को तैनात किया। नौसेना और वायुसेना से एयरलिफ्ट किया। 2,000 से ज़्यादा भारतीयों को सुरक्षित निकाला। इससे एक बार फिर साबित हुआ कि भारत हिंद महासागर क्षेत्र में पहला रिस्पॉन्डर है।

आगे क्या?

भविष्य साफ संकेत दे रहा है कि आपदाओं में इंटरनेट भी राहत सामग्री जितना ज़रूरी होगा। चाहे OneWeb हो, Starlink हो या कोई और सिस्टम-सैटेलाइट इंटरनेट आने वाले समय की सबसे बड़ी लाइफलाइन बनने वाला है। अब चुनौती है कि भारत ऐसा रेगुलेटरी ढांचा बनाए, जो सुरक्षा और तकनीक-दोनों को संतुलित करे।