सार

महाराष्ट्र का ताजा घटनाक्रम यह है कि वहां अजीत पवार ने एनसीपी विधायकों का समर्थन हासिल करके डिप्टी सीएम पद की शपथ ले ली है। अब दलबदल कानून को लेकर सवाल हो रहे हैं कि आखिर इसका अंजाम क्या होगा।

Maharashtra Politics. महाराष्ट्र के ताजा राजनैतिक घटनाक्रम की बात करें तो अजीत पवार ने एनसीपी से बगावत कर दी है और नए उप-मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ले ली है। इसके बाद एनसीपी संस्थापक रहे शरद पवार ने दावा किया है कि वे फिर से पार्टी को खड़ी करके दिखाएंगे। इस बीच यह भी चर्चा चल रही है इस स्थिति में भारत का दलबदल कानून क्या कहता है?

क्या कहता है दलबदल विरोधी कानून

1970 के दशक में भारतीय राजनीति में दलबदल आम बात थी और इसे आया राम-गया राम के नाम से लोग पुकारते थे। यही वजह थी कि साल 1985 में संविधान के 52वें संसोधन में दलबदल कानून को पारित किया। इसके तहत यह नियम बनाया गया कि दलबदल करने वाला कोई भी जन प्रतिनिधि अयोग्य घोषित किया जा सकता है। नियम बना कि अगर किसी पार्टी के दो-तिहाई मेंबर किसी दूसरी पार्टी में चले जाते हैं तो उन विधायकों को अयोग्य नहीं करार दिया जा सकता है। यह अधिकार विधानसभा स्पीकर के पास सुरक्षित कर दिया गया।

दलबदल कानून से आगे हैं अजीत पवार

नियम यह है कि किसी दल के दो-तिहाई विधायक किसी दूसरी पार्टी में शामिल होते हैं या अलग होते हैं तो उन्हें अयोग्य नहीं कहा जा सकता है। मौजूदा समय में महाराष्ट्र एनसीपी के 53 में से 40 विधायक अजीत पवार के पास होने का दावा किया जा रहा है। ऐसे में अजीत पवार ने खुद ही यह ऐलान कर दिया है कि वे ही असली एनसीपी हैं और पार्टी के सिंबल से लेकर सभी कानूनी खातों पर उनका अधिकार है।

महाराष्ट्र में आगे क्या हो सकता है यह भी जान लें

शिवसेना से बगावत करके सीएम बने एकनाथ शिंदे ने सिर्फ शिवसेना का सिंबल हथिया लिया बल्कि ठाकरे परिवार की राजनैतिक विरासत को ही खत्म कर दिया। ठीक इसी तरह का काम अजीत पवार ने किया है और महाराष्ट्र में एनसीपी के 53 में से 40 विधायकों के साथ पार्टी पर कब्जे का दावा ठोंका है। राजनैतिक लोगों की मानें तो यह सारा दांव भारतीय जनता पार्टी ने खेला है और देवेंद्र फड़नवीस इसके मुख्य कर्ताधर्ता हैं।

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