सार
शरद पवार ने जीवन भर जिस तरह की राजनीति की, उनके अवसान के वक्त ऐसी ही राजनीति का सामना उनको करना पड़ रहा है। शरद पवार के भतीजे अजीत पवार ने एनसीपी से बगावत कर दी है।
Sharad-Ajit Pawar Politics. महाराष्ट्र के नए डिप्टी सीएम बने अजीत पवार ने आज जो किया है, ऐसा ही काम उनके चाचा दशकों पहले दो बार कर चुके हैं। गांधी परिवार से बगावत करके अलग पार्टी बनाने वाले शरद पवार इतने शातिर रहे कि वे कांग्रेस की हर सरकार में शामिल भी रहे और अपना अलग अस्तित्व बनाए रखा। अब वहीं काम उनके भतीजे ने कर दिया है, जिसकी चर्चा जोरों पर है।
अप्रैल 2023 में लिखी गई महाराष्ट्र बगावत की स्क्रिप्ट
महाराष्ट्र की राजनीति में संडे को जो कुछ भी हुआ, वह कोई नई बात नहीं है। इसकी स्क्रिप्ट पहले ही लिखी जा चुकी थी। राजनीति के जानकार बताते हैं कि अप्रैल महीने में ही इस बगावत की पूरी तैयारी कर ली गई थी। इसके शब्द तब उकेरे गए जब शरद पवार ने अपनी बेटी सुप्रिया सुले सहित अजीत पवार और प्रफुल्ल पटेल को एनसीपी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया। दरअसल, शरद पवार ने अपनी ही की लेकिन भतीजे को संतुष्ट करने का खेल किया। अप्रैल महीने में जब अजीत पवार ने दिल्ली का दौरा किया, तभी इस बात पर सहमति बन गई थी कि अगर उन्हें एनसीपी का अध्यक्ष नहीं बनाया जाता तो बगावत करने पर डिप्टी सीएम का पद जरूर मिलेगा।
शरद पवार कर चुके हैं गांधी परिवार से बगावत
अजीत पवार के चाचा शरद पवार को राजनीति का माहिर खिलाड़ी माना जाता है। शरद पवार ने 1975 में आपातकाल के दौरान कांग्रेस से बगावत की या यूं कहें कि सीधे इंदिरा गांधी से बगावत की थी। इसके बाद 1978 में उन्होंने जनता पार्टी के साथ मिलकर महाराष्ट्र में सरकार बनाई। वे सीएम बने लेकिन 2 साल बाद जब इंदिरा गांधी फिर जीतकर आईं तो उन्हें बर्खास्त कर दिया गया। फिर 1983 में शरद पवार ने कांग्रेस पार्टी सोशलिस्ट बनाई।
राजीव गांधी के दौर में फिर लौटे शरद पवार
इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 1987 में जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने तो शरद पवार वापस कांग्रेस में आ गए। 1988 में वे शंकर राव चव्हाण की जगह सीएम बने। फिर 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस में प्रधानमंत्री पद के लिए शरद पवार का नाम उछला लेकिन वे पीएम नहीं बन पाए। इसके 7 साल बाद शरद पवार ने सोनिया गांधी के खिलाफ बगावत की और तारिक अख्तर और पीए संगमा के साथ मिलकर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का गठन किया। इसके बावजूद कमाल यह कि शरद पवार यूपीए सरकार में लगातार मंत्री बनते रहे और सत्ता का स्वाद चखते रहे।
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