सार
पेगासस जासूसी मामले (Pegasus snooping case) में सुप्रीम कोर्ट के पैनल ने कहा कि उसे पेगासस स्पाइवेयर से मोबाइल फोन के प्रभावित होने के ठोस सबूत नहीं मिले हैं। कोर्ट ने कहा कि किसी फोन में कोई स्पाइवेयर है तो इसका यह मतलब नहीं कि वह पेगासस है।
नई दिल्ली। पेगासस जासूसी मामले (Pegasus snooping case) की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाए गए पैनल ने गुरुवार को कहा कि अगर किसी के फोन में मालवेयर पाया जाता है तो यह जरूरी नहीं कि वह पेगासस हो। पैनल ने यह बात सुप्रीम कोर्ट के सीजेआई की अध्यक्षता वाले बेंच से सामने कहा।
पैनल ने कहा कि उसने जिन 29 मोबाइल फोन की जांच की उनमें पेगासस स्पाइवेयर (Pegasus spyware) होने के निर्णायक सबूत नहीं मिले हैं। फॉरेंसिंक जांच से पता चला कि 29 में से पांच मोबाइल फोन कुछ मालवेयर से प्रभावित थे, लेकिन यह साबित नहीं हो सका कि उनमें पेगासस मालवेयर था।
सरकार ने नहीं किया समिति के साथ सहयोग
सीजेआई एनवी रमना ने पैनल की सीलबंद रिपोर्ट को रिकॉर्ड में लिया। उन्होंने कहा कि सरकार समिति के साथ सहयोग नहीं कर रही थी। गौरतलब है कि पेगासस की मदद से पत्रकारों, राजनेताओं और कार्यकर्ताओं की जासूसी के मामले ने तूल पकड़ा था। सुप्रीम कोर्ट ने मामले की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट के रिटायर जज आरवी रवींद्रन की अध्यक्षता में समिति का गठन किया था। समिति ने जुलाई में अपनी अंतिम रिपोर्ट सौंपी थी।
चार सप्ताह बाद होगी अगली सुनवाई
सीजेआई एनवी रमना, जज सूर्यकांत और हेमा कोहली के बेंच ने कहा कि वह पैनल के प्रमुख जस्टिस आरवी रवींद्रन द्वारा पेश किए गए रिपोर्ट को पब्लिक डोमेन में रखेगी। सभी लोग रिपोर्ट पढ़ सकेंगे। रिपोर्ट में नागरिकों की सुरक्षा, भविष्य की कार्रवाई, जवाबदेही, गोपनीयता सुरक्षा में सुधार के लिए कानून में संशोधन, शिकायत निवारण तंत्र सहित अन्य उपायों पर सुझाव दिए हैं। इस मामले में अगली सुनवाई चार सप्ताह बाद होगी।
यह है मामला
17 मीडिया संगठनों द्वारा की गई एक सहयोगी जांच रिपोर्ट पेगासस प्रोजेक्ट ने खुलासा किया कि पेगासस स्पाइवेयर का इस्तेमाल मंत्रियों, विपक्षी नेताओं, राजनीतिक रणनीतिकारों, पत्रकारों, कार्यकर्ताओं, अल्पसंख्यक नेताओं, न्यायाधीशों, धार्मिक नेताओं और केंद्रीय जांच ब्यूरो के प्रमुखों पर किया गया था। मामला सामने आने के बाद विपक्ष ने जासूसी के आरोपों पर सरकार पर हमला किया था। वहीं, सरकार ने कहा था कि एजेंसियों द्वारा कोई गलत कार्रवाई नहीं की गई।
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अक्टूबर 2021 में शीर्ष अदालत ने मामले की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति आरवी रवींद्रन की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया। समिति को आठ सप्ताह के भीतर रिपोर्ट दाखिल करने को कहा गया था। अदालत ने कहा था कि एजेंसियों द्वारा एकत्र की गई जानकारी आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई के लिए महत्वपूर्ण है और यह निजता के अधिकार में तभी हस्तक्षेप कर सकती है जब राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा के लिए अत्यंत आवश्यक हो।
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