सार
मणिपुर में हिंसा (Manipur violence) की आग कम नहीं हो रही है। गुरुवार रात को उग्र भीड़ ने पूर्वी इंफाल के कोंगबा इलाके में स्थित केंद्रीय मंत्री आरके रंजन सिंह के घर को जला दिया। इस घटना में कोई हताहत नहीं हुआ है।
इंफाल। एक महीने से अधिक समय बाद भी मणिपुर में हिंसा (Manipur violence) की आग कम नहीं हो रही है। उग्र भीढ़ ने केंद्रीय विदेश राज्य मंत्री आरके रंजन सिंह के घर को जला दिया है। उनका घर पूर्वी इंफाल के कोंगबा इलाके में है। गुरुवार देर रात को भीड़ ने मंत्री के घर पर हमला किया। इस दौरान पेट्रोल बम फेंककर घर को आग लगाया गया। 15 जून को इंफाल में मंत्री नेमचा किपगेन के घर को जलाया गया था।
मंत्री आरके रंजन ने घर जलाए जाने को लेकर कहा, "मैं आधिकारिक काम के चलते केरल की यात्रा पर हूं। बीती रात इंफाल स्थिति मेरे घर को जलाया गया। शुक्र है कि कोई घायल नहीं हुआ है। उपद्रवी पेट्रोल बम लेकर आए थे। उन्होंने घर के ग्राउंड फ्लोर और फर्स्ट फ्लोर को नुकसान पहुंचाया है।”
भीड़ से मंत्री के घर को बचा नहीं पाए सुरक्षाकर्मी
गुरुवार की रात करीब 11 बजे भीड़ ने मंत्री के घर पर हमला किया था। भीड़ में इतने अधिक लोग थे कि घर की सुरक्षा के लिए तैनात गार्ड उनका सामना नहीं कर पाए। भीड़ में शामिल लोग मंत्री के घर में घुसे और पेट्रोल बम फेंककर आग लगा दी। स्थिति पर नियंत्रण पाने के लिए इंफाल पुलिस को तैनात किया गया। पुलिस ने आंसू गैस के गोले दागे। घटना के वक्त मंत्री और उनके परिवार के लोग घर में नहीं थे।
मंत्री ने कहा, "मेरे गृह राज्य में जो हो रहा है उसे देखना बहुत दुखद है। मैं अभी भी शांति की अपील कर रहा हूं। जो लोग इस तरह की हिंसा कर रहे हैं वे इंसान नहीं हो सकते।" इससे पहले 15 जून को इंफाल ईस्ट के न्यू चेकॉन इलाके में बदमाशों ने एक और घर जला दिया था। इस क्षेत्र में कुकी, मैतेई, मुस्लिम और बंगाली मूल के लोग रहते हैं।
कुकी और मैतेई लोगों के बीच हो रही हिंसा
गौरतलब है कि मणिपुर में एक महीने से अधिक समय से जातीय हिंसा हो रही है। कुकी और मैतेई समुदाय के लोगों के बीच हिंसा हो रही है। इसके चलते 100 से अधिक लोग मारे गए हैं और हजारों घरों को जला दिया गया है। हिंसा की आग मैतेई लोगों के आरक्षण को लेकर हाईकोर्ट के फैसले के बाद भड़की है। हाईकोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया था कि 10 साल पुरानी सिफारिश लागू करे। इसमें मैतेई को जनजाति में शामिल करने की बात की गई थी। इस फैसले के खिलाफ आदिवासी एकता मार्च निकाला गया था, जिसके बाद हिंसा शुरू हो गई।