सार
लोकसभा चुनाव 2024 (2024 Lok Sabha Polls) से पहले एनसीपी में फूट हो गई है। भतीजे अजित पवार की बगावत से शरद पवार की पार्टी संकट में है। इससे विपक्षी एकता और लोकसभा चुनाव को लेकर उनकी तैयारी भी प्रभावित हो रही है।
मुंबई। महाराष्ट्र और देश की राजनीति में रविवार का दिन बेहद खास रहा। जिस एनसीपी (Nationalist Congress Party) में शरद पवार के नेतृत्व पर कोई सवाल नहीं उठ रहे थे वह पार्टी टूट गई। शरद पवार को उनके ही भतीजे अजीत पवार ने बड़ी राजनीतिक मात देते हुए पार्टी तोड़ दी। अजीत पवार अपने आठ करीबी विधायकों को लेकर अलग हुए और एकनाथ शिंदे की सरकार में शामिल हो गए। अजीत उपमुख्यमंत्री बने और आठों विधायक मंत्री। एनसीपी में हुई इस टूट का असर सिर्फ महाराष्ट्र नहीं, बल्कि पूरे देश की राजनीति पर पड़ना तय है। आइए इन मामसे से जुड़ी खास बातें...
अजित पवार की बगावत का शरद पवार के लिए क्या हैं मामने?
शरद पवार ने 1999 में एनसीपी की स्थापना की थी। इसके बाद से वह इस पार्टी के प्रमुख हैं। शरद पवार के नेतृत्व में पार्टी फली-फूली। चाहे सत्ता में रहे हों या विपक्ष में शरद पवार का राष्ट्रीय राजनीति में खास स्थान रहा है। पिछले दिनों शरद पवार ने पार्टी नेतृत्व में बदलाव का संकेत देते हुए एनसीपी प्रमुख पद से इस्तीफा दिया था तो बवाल मच गया था। पार्टी के किसी नेता को यह मंजूर नहीं था। भारी विरोध के चलते पवार को अपना इस्तीफा देना पड़ा था।
बाद में शरद पवार ने अपनी बेटी सुप्रिया सुले को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया था। उसी वक्त से कहा जा रहा था कि अजित पवार का कद कम करने की कोशिश की गई है। अब इसका असर सामने आया है और अजित पवार ने पार्टी ही तोड़ दी है। शरद पवार के सामने एक बार फिर अपनी पार्टी को एकजुट करने की चुनौती है। अजित पवार गुट के विधायकों का दावा है कि उनके साथ 40 विधायकों का समर्थन है। अब पवार के सामने चुनौती अधिक से अधिक विधायकों को अपने साथ बनाए रखने की है। इसके साथ ही उन्हें पार्टी को लोकसभा चुनाव से पहले फिर से मजबूत करना होगा।
विपक्ष की एकता पर पड़ा असर
लोकसभा चुनाव 2024 से पहले विपक्षी दल एक साथ आने की कोशिश कर रहे हैं ताकि वे चुनाव में भाजपा का सामना कर सकें। इस मुद्दे पर पिछले दिनों पटना में विपक्षी दलों की बैठक भी हुई थी। 15 विपक्षी दल भाजपा के खिलाफ मोर्चा बनाने में जुटे हुए हैं। इनमें एनसीपी भी शामिल है। शरद पवार को विपक्षी मोर्चे का बड़ा चेहरा माना जा रहा था। इसी बीच एनसीपी में टूट का असर विपक्षी दलों की एकता पर भी पड़ सकता है। 13-14 जून को बेंगलुरु में विपक्षी दलों की बैठक होने वाली थी, लेकिन मानसून सत्र के चलते इसे टाल दिया गया है।
क्या कांग्रेस समस्या है?
अजित पवार के समर्थकों ने पार्टी में टूट की वजह कांग्रेस को बताया है। पिछले दिनों पटना में विपक्षी दलों की बैठक हुई थी। इसमें शरद पवार और सुप्रिया सुले ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी के साथ मंच शेयर किया था। इसके साथ ही उन्होंने इच्छा व्यक्त की थी कि राहुल गांधी लोकसभा चुनाव को लेकर शीर्ष भूमिका निभाएं। अजित पवार के समर्थकों का कहना है कि उन्हें यह मंजूर नहीं था। पिछले साल शिवसेना में भी कांग्रेस को लेकर ही टूट हुई थी। एकनाथ शिंदे ने उद्धव ठाकरे से कांग्रेस के साथ गठबंधन को लेकर बगावत कर दिया था। अजीत पवार और एकनाथ शिंदे इस बात से खुश नहीं थे कि उनकी पार्टी कांग्रेस के साथ गठबंधन करे। इस तरह के मामलों से दिल्ली, पश्चिम बंगाल और केरल में कांग्रेस और आप, टीएमसी और सीपीएम के बीच चल रही दरार को बढ़ावा मिलेगा।
बीजेपी ने की महाराष्ट्र में पूरी वापसी
पहले शिवसेना और अब एनसीपी में टूट के बाद बीजेपी महाराष्ट्र में सबसे बड़ी ताकत बनकर उभरी है। उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व में पार्टी अब राज्य में ड्राइविंग सीट पर है। पवार के सरकार में शामिल होने से निकट भविष्य में किसी भी संकट के खिलाफ सरकार मजबूत होगी।
हो रहा महा विकास अघाड़ी का अंत
पिछले विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस, शिवसेना और एनसीपी ने मिलकर महा विकास अघाड़ी नाम का गठबंधन बनाया था। शिवसेना और एनसीपी में टूट के बाद ऐसा कहा जा रहा है कि महा विकास अघाड़ी का भी अंत हो रहा है। एनसीपी का विद्रोह महा विकास अघाड़ी के ताबूत में आखिरी कील साबित होता दिख रहा है।
2024 में शरद पवार की भूमिका
शरद पवार को एक कुशल रणनीतिज्ञ और चतुर राजनीतिज्ञ माना जाता है। उन्होंने दशकों से महाराष्ट्र और राष्ट्रीय स्तर पर अपना प्रभाव कायम रखा है। पवार को विपक्ष के पीएम उम्मीदवार के दावेदार के तौर पर भी देखा जा रहा था। हालांकि, भतीजे की बगावत के चलते पवार खुद एक अजीब स्थिति में पड़ गए हैं।