मनरेगा का नाम बदलकर पूज्य बापू ग्रामीण रोजगार योजना कर दिया गया है। मोदी कैबिनेट ने काम के दिन 100 से बढ़ाकर 125 करने की मंजूरी दी। विपक्ष ने इसे नाम बदलने की राजनीति बताया, जबकि सरकार रोजगार बढ़ाने का दावा कर रही है। 

नई दिल्ली। शुक्रवार को केंद्र सरकार ने एक बड़ा फैसला लिया। महात्मा गांधी नेशनल रूरल एम्प्लॉयमेंट गारंटी एक्ट (MGNREGA) का नाम बदलकर अब ‘पूज्य बापू ग्रामीण रोजगार योजना’ कर दिया गया है। इसके साथ ही ग्रामीण मजदूरों के लिए एक और राहत की घोषणा हुई-अब साल में 100 नहीं बल्कि 125 दिन का काम मिलेगा। सरकार का कहना है कि इससे गांवों में रोजगार की सुरक्षा और मज़बूत होगी। क्या यह फैसला सिर्फ सुधार है या इसके पीछे राजनीति भी है?

सरकार ने अचानक नाम बदलने का फैसला क्यों लिया?

सूत्रों के मुताबिक, केंद्रीय कैबिनेट ने शुक्रवार को इस बदलाव से जुड़े बिल को मंजूरी दी। सरकार का तर्क है कि यह योजना महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित है और ‘पूज्य बापू’ नाम उनके सम्मान को और मजबूती देता है। साथ ही, काम के दिन बढ़ाकर ग्रामीण परिवारों की आय बढ़ाने की कोशिश की गई है।

मनरेगा आखिर है क्या और क्यों है इतनी अहम?

मनरेगा को 2005 में लागू किया गया था। इसका मकसद था कि गांवों में रहने वाले गरीब परिवारों को हर साल कम से कम 100 दिन का गारंटीशुदा रोजगार मिले। इस योजना के तहत बिना किसी खास हुनर वाले लोग भी मजदूरी का काम पा सकते हैं। पिछले 20 सालों में मनरेगा को ग्रामीण भारत के लिए “संजीवनी” माना गया है, खासकर सूखा, बेरोज़गारी और महामारी जैसे समय में।

Scroll to load tweet…

125 दिन का काम-ग्रामीणों के लिए राहत या सिर्फ कागज़ी वादा?

काम के दिन बढ़ाकर 125 करना सुनने में बड़ा फैसला लगता है। सवाल यह है कि क्या ज़मीनी स्तर पर यह लागू भी होगा? पहले भी कई राज्यों में 100 दिन का पूरा काम नहीं मिल पाता था। ऐसे में 25 दिन और जोड़ने से फायदा तभी होगा जब समय पर भुगतान और काम दोनों सुनिश्चित हों।

नाम बदलने का तर्क क्या है?

सरकार की ओर से कहा गया है कि ‘पूज्य बापू’ नाम महात्मा गांधी को सम्मान देने का प्रतीक है और योजना की भावना को और मजबूत करता है। साथ ही, 25 अतिरिक्त दिन का काम मिलने से ग्रामीण परिवारों की आमदनी बढ़ेगी। लेकिन सरकार ने यह साफ नहीं किया कि नाम बदलने से ज़मीनी स्तर पर क्या नया बदलाव आएगा।

प्रियंका गांधी ने नाम बदलने पर सवाल क्यों उठाए?

वायनाड से कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी ने सरकार के फैसले पर नाराज़गी जताई है। उनका कहना है कि नाम बदलने का कोई तर्क समझ नहीं आता। इससे सिर्फ फिजूल खर्च बढ़ता है-ऑफिस फाइलें, बोर्ड, स्टेशनरी, सब कुछ बदलना पड़ता है। उन्होंने सवाल उठाया कि जब योजना पहले से चल रही थी, तो नाम बदलने से क्या हासिल होगा?

कांग्रेस का आरोप: योजनाओं पर ‘रीब्रांडिंग पॉलिटिक्स’

कांग्रेस नेता सुप्रिया श्रीनेत ने दावा किया कि मोदी सरकार अब तक 32 से ज्यादा UPA दौर की योजनाओं के नाम बदल चुकी है। उनका कहना है कि मनरेगा को कभी सरकार विफलता बताती थी, लेकिन आज वही योजना ग्रामीण भारत की “संजीवनी” मानी जा रही है। कांग्रेस का आरोप है कि सरकार पुरानी योजनाओं पर नया नाम लगाकर श्रेय लेने की कोशिश कर रही है।

विपक्ष क्यों कह रहा है कि यह ध्यान भटकाने की राजनीति है?

शिवसेना (UBT) की सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा कि नाम बदलना सरकार की हताशा को दिखाता है। उनके मुताबिक, यह असली मुद्दों महंगाई, बेरोज़गारी से ध्यान हटाने का तरीका है। उन्होंने कहा कि जनता अब “व्हाट्सएप वर्जन” और असली इतिहास में फर्क समझने लगी है।

नाम से ज़्यादा ज़रूरी क्या है?

ग्रामीण मजदूर के लिए योजना का नाम उतना मायने नहीं रखता, जितना काम मिलना और समय पर पैसा आना। अगर 125 दिन का रोजगार सही तरीके से लागू हुआ, तो यह लाखों परिवारों के लिए बड़ी राहत बन सकता है। लेकिन अगर यह सिर्फ नाम बदलने तक सीमित रहा, तो सवाल उठते रहेंगे। अब सबकी नजर इस पर है कि संसद में यह बिल कैसे पास होता है और राज्यों में इसका क्रियान्वयन कैसे होता है। क्या यह फैसला ग्रामीण भारत की तस्वीर बदलेगा या फिर यह भी एक सियासी बहस बनकर रह जाएगा-इसका जवाब आने वाला वक्त देगा।