कांग्रेस ने अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के H1B वीज़ा पर 100,000 डॉलर फीस लगाने पर पीएम मोदी पर निशाना साधा। राहुल गांधी ने 2017 की अपनी पोस्ट दोहराई और प्रधानमंत्री को कमजोर बताया।
नई दिल्ली: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के H1B वीज़ा पर 100,000 डॉलर की फीस लगाने के बाद राहुल गांधी ने पीएम नरेंद्र मोदी पर हमला बोला है। राहुल गांधी ने अपने 2017 के पोस्ट का ज़िक्र किया, जिसमें उन्होंने पीएम से सवाल किया था कि उन्होंने डोनाल्ड ट्रंप के साथ H1B वीज़ा का मुद्दा क्यों नहीं उठाया, जो उस वक्त राष्ट्रपति के रूप में अपने पहले कार्यकाल में थे। राहुल ने पोस्ट किया, “मैं फिर कहता हूं, भारत का प्रधानमंत्री कमजोर है।”
कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने कहा-
अमेरिका जानबूझकर भारत के साथ आक्रामक रवैया अपना रहा है। अमेरिका सिस्टमैटिक तरीके से भारत पर शिकंजा कस रहा है। H-1B वीज़ा के संबंध में जो हुआ, वह कोई संयोग नहीं है। अगर आप इसे संदर्भ में देखें, तो पाकिस्तान के उकसाने पर अमेरिका द्वारा समय से पहले युद्धविराम की घोषणा, उसके बाद व्हाइट हाउस में पाकिस्तानी सेना प्रमुख का स्वागत, फिर अमेरिका द्वारा लगाए गए 50% टैरिफ और यहां तक कि सऊदी-पाकिस्तानी रक्षा साझेदारी भी अमेरिका के मौन समर्थन और आशीर्वाद के बिना नहीं हुई होती। बहुत ही सिस्टमैटिक तरीके से, ऐसे कारणों से जो समझ से परे हैं, अमेरिका जानबूझकर भारत के प्रति आक्रामक हो रहा है और यह भारत-अमेरिका संबंधों के लिए अच्छा संकेत नहीं है।
पवन खेड़ा ने H-1B पर बढ़े फीस को लेकर क्या कहा
आज पूरा देश पीएम मोदी से सवाल कर रहा है। यह कोई नई बात नहीं है। 5 जुलाई 2017 को, राहुल गांधी ने ट्वीट करके पीएम मोदी को आगाह किया था कि ऐसा होने वाला है और कुछ कीजिए। लेकिन वो तब भी एक कमजोर पीएम थे और आज भी हैं। नतीजा आज आपके सामने है…इस देश के करोड़ों युवाओं को नुकसान होने वाला है... ट्रंप हर दिन हमारा अपमान कर रहे हैं। लेकिन पीएम चुप हैं। राहुल गांधी ने उन्हें सदन के पटल पर यह कहने का मौका दिया था कि ट्रंप झूठे हैं। अगर उन्होंने ऐसा कहा होता, तो देश उनके साथ खड़ा होता। आज पूरा देश पीएम से सवाल कर रहा है।
कांग्रेस का यह गुस्सा अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नई घोषणा के जवाब में आया है, जिसका शीर्षक "कुछ गैर-आप्रवासी कर्मचारियों के प्रवेश पर प्रतिबंध" है। इसके तहत H-1B वीज़ा आवेदनों पर 100,000 अमेरिकी डॉलर का सालाना शुल्क लगाया गया है। 21 सितंबर से लागू इस उपाय का मकसद H-1B कार्यक्रम के बड़े पैमाने पर हो रहे दुरुपयोग को रोकना है, जिसे प्रशासन आईटी आउटसोर्सिंग फर्मों पर अमेरिकी कर्मचारियों को हटाने और वेतन कम करने का आरोप लगाता है। प्रशासन का दावा है कि कम वेतन वाले, एंट्री-लेवल H-1B कर्मचारियों ने अमेरिकी स्नातकों को नुकसान पहुंचाया है और इसमें राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी चिंताएं भी बताई गई हैं, जिसमें वीज़ा धोखाधड़ी और मनी लॉन्ड्रिंग की जांच का ज़िक्र है, जिसमें इस कार्यक्रम पर बहुत ज़्यादा निर्भर रहने वाली कंपनियां शामिल हैं।
