सार

भीमा-कोरेगांव मामले में 16 कार्यकर्ता, वकील और कलाकार तीन वर्षों से जेल में बंद हैं। इन पर गैरकानूनी गतिविधियां (निवारण) अधिनियम जैसी कड़ी धाराएं लगाई गई हैं। पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) इस मुद्दे पर लगातार सरकार को घेरने की कोशिश कर रही है। 

मुंबई। कैदियों के अधिकारों के लिए काम करने वाले कार्यकर्ता रोना विल्सन की एलगार परिषद मामले में गिरफ्तारी से पहले उनके स्मार्टफोन में पेगासस स्पाइवेयर मौजूद था। एक फॉरेंसिक रिपोर्ट में यह दावा किया गया है। इसके मुताबिक विल्सन जून 2018 में अपनी गिरफ्तारी से करीब एक साल पहले निगरानी और आपत्तिजनक दस्तावेज आपूर्ति का शिकार थे। डिजिटल फोरेंसिक कंपनी आर्सेनल कंसल्टिंग का दावा है कि विल्सन के एप्पल फोन को इजराइली NSO ग्रुप के एक ग्राहक द्वारा निगरानी के लिए चुना गया था। इसके बाद पेगासस जासूसी मामले में सरकार फिर घिर सकती है। 

रिमोट से एक्सेस लिया, कंप्यूटर में डाली फाइलें 
पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) के राष्ट्रीय महासचिव वी सुरेश ने कहा कि नई फोरेंसिक रिपोर्ट पुष्टि करती है कि भीमा कोरेगांव मामले में मुख्य आरोपी रोना विल्सन पर एक साल से अधिक समय तक पेगासस द्वारा हमला किया गया था। विल्सन के आईफोन 6एस के दो बैकअप में डिजिटल मार्क थे, जो पेगासस जासूसी सॉफ्टवेयर से प्रभावित दिख रहे थे। रिपोर्ट के मुताबिक 5 जुलाई 2017 से  10 अप्रैल 2018 के बीच रोना विल्सन के आईफोन पर 49 बार पेगासस के हमले हुए थे, जिनमें से कुछ सफल रहे थे। बयान में कहा गया कि आर्सेनल की पहले की रिपोर्ट यह दिखा चुकी है कि विल्सन के कंप्यूटर को 13 जून 2016 से 17 अप्रैल 2018 के बीच नेटवायर रिमोट ऐक्सेंस ट्रोजन (RAT) के जरिए हैक किया गया था और उनके कंप्यूटर में फाइलें डाली गई थीं। इसमें कहा गया है- ‘यही काम एक अन्य आरोपी सुरेंद्र गडलिंग के कंप्यूटर के साथ किया गया था। आर्सेनल ने यह भी पुष्टि की है कि विल्सेन और गडलिंग में से किसी ने भी इन फाइलों को कभी नहीं खोला था। इस तरह 2017 और 2018 में विल्सन दोनों तरह के हमलों के शिकार हुए, पेगासस के जरिये उनके फोन की निगरानी के साथ-साथ नेटवायर आरएटी के जरिये उनके कंप्यूटर में सबूतों को रखा गया।

भीमा कोरेगांव मामले में 16 कार्यकर्ता जेल में बंद 
पीयूसीएल ने आरोप लगाया कि भीमा-कोरेगांव मामले में मानवाधिकारों के लिए लड़ने वाले 16 कार्यकर्ता, वकील, विद्वान और कलाकार तीन वर्षों से बिना सुनवाई के  जेल में बंद हैं। इन पर गैरकानूनी गतिविधियां (निवारण) अधिनियम जैसी कड़ी धाराएं लगाई गई हैं। उसने कहा कि पेगासस अटैक की खबर आए भी करीब 150 दिन हो चुके हैं। ये इस बात का बेहतरीन दस्तावेजी सबूत है कि किस तरह साइबर क्राइम भारत की न्याय प्रणाली को और यहां के नागरिकों के अधिकारों को कमजोर कर रहे हैं। इसके बावजूद सरकार चुप है।   
 

सुप्रीम कोर्ट करा रहा है जांच
सुप्रीम कोर्ट ने 27 अक्टूबर को भारत में कुछ लोगों की निगरानी के लिए इजरायली स्पाईवेयर पेगासस (Israel Pegasus Spyware) के कथित उपयोग की जांच के लिए साइबर विशेषज्ञों का एक तीन सदस्यीय पैनल नियुक्त किया था। पैनल गठन के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा गया था कि प्रत्येक नागरिक को गोपनीयता के उल्लंघन और राज्य द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा के आह्वान के खिलाफ सुरक्षा की आवश्यकता है। अदालत इस तरह के मामले में मूक दर्शक नहीं बना रह सकता।


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