सार
ईशा फाउंडेशन ने साफ कर दिया है कि उसे चिक्काबल्लापुरा जिले में अपने प्रोजेक्ट के लिए कर्नाटक सरकार से कोई धन या जमीन नहीं मिली है। फाउंडेशन राज्य सरकार के साथ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से किसी भी तरह के वित्तीय लेन-देन में शामिल नहीं है।
Isha foundation on Soil conservation budget: सद्गुरु जग्गी वासुदेव के ईशा फाउंडेशन ने कर्नाटक की बीजेपी सरकार द्वारा राज्य में इकोलॉजिकल एक्टिविटीज के लिए जारी किए गए 100 करोड़ रुपए के फंड की खबर को झूठा बताया है। फाउंडेशन की ओर से साफ कहा गया है कि उन्हें चिक्काबल्लापुरा जिले में अपने प्रोजेक्ट के लिए कर्नाटक सरकार से किसी तरह का कोई पैसा या जमीन नहीं मिली है।
फाउंडेशन की ओर से दिए गए स्पष्टीकरण में साफ कहा गया है कि “सद्गुरु जग्गी वासुदेव को न तो वर्तमान और ना ही कर्नाटक में रही पिछली सरकारों से किसी तरह का कोई धन प्राप्त हुआ है। ईशा फाउंडेशन राज्य सरकार के साथ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से किसी भी तरह के वित्तीय लेन-देन में शामिल नहीं है।
मूल भू-स्वामियों से पैसे देकर खरीदी जमीन :
फाउंडेशन की ओर से साफ कहा गया है कि चिक्काबल्लापुर में सद्गुरु सन्निधि के लिए जमीन मूल भू-स्वामियों से पैसे देकर खरीदी गई है। ईशा फाउंडेशन ने चिक्काबल्लापुरा में निर्माण के लिए जमीन उसके मालिकों के अलावा दानदाताओं के योगदान से खरीदी है। कर्नाटक सरकार की ओर से ईशा फाउंडेशन को कोई जमीन नहीं मिली है।
सारे आरोप निराधार :
कर्नाटक राज्य के इकोलॉजिकल बजट और चिक्काबल्लापुर में ईशा फाउंडेशन के जमीन से संबंधित मामलों के बारे में फैलाई जा रही गलत खबरों से हमें बहुत पीड़ा हुई है।हम सभी मीडिया, राजनेताओं और आम जनता को स्पष्ट करना चाहते हैं कि हम पर लगाए गए आरोप पूरी तरह निराधार हैं। इतना ही नहीं, फाउंडेशन ने यह भी कहा कि आदियोगी प्रतिमा, जिसका उद्घाटन 15 जनवरी को हुआ था, वो नंदी हिल्स से 31 किमी दूर स्थित है।
क्यों ईशा फाउंडेशन ने की राज्य सरकार की निंदा?
ईशा फाउंडेशन की यह प्रतिक्रिया कर्नाटक राज्य के इकोलॉजिकल बजट और ईशा फाउंडेशन के स्वामित्व वाली चिक्काबल्लापुर की भूमि के संबंध में रिपोर्ट आने के बाद आई है। दरअसल, मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने घोषणा की थी कि वन विभाग को मृदा संरक्षण पर जोर देने के साथ राज्य पारिस्थितिक गतिविधियों के लिए 100 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया गया है।
ईशा फाउंडेशन ने जारी किया स्पष्टीकरण...
ईशा फाउंडेशन ने स्पष्टीकरण जारी करते हुए कहा कि न ही फाउंडेशन और न ही सद्गुरु को कभी भी वर्तमान या पिछली कर्नाटक सरकारों से कोई धन प्राप्त हुआ था। न ही राज्य सरकार के साथ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कोई वित्तीय लेनदेन हुआ था। फाउंडेशन ने बताया कि ईशा फाउंडेशन को न तो वर्तमान सरकार से और न ही कर्नाटक की पिछली सरकारों से चिक्कबल्लपुरा में या कर्नाटक राज्य में कहीं भी कोई भूमि प्राप्त हुई है। चिक्कबल्लापुर में सद्गुरु सन्निधि की सभी भूमि के मूल्य का भुगतान करते हुए मूल मालिकों से खरीदी जाती है। निर्माण के लिए ईशा द्वारा चिक्काबल्लापुर में जमीन के मालिकों से दानदाताओं और स्वयंसेवकों द्वारा स्वैच्छिक योगदान के माध्यम से सीधे खरीदा गया है। ईशा फाउंडेशन को कर्नाटक सरकार से कोई जमीन नहीं मिली है।
सरकार दुर्भावनापूर्ण तरीके से गलत सूचनाएं न फैलाए
फाउंडेशन ने दावा किया कि एक दुर्भावनापूर्ण अभियान जानबूझकर गलत सूचना फैलाने के लिए चलाया जा रहा है। फाउंडेशन ने कहा: "आदियोगी नंदी हिल्स से 31 किमी दूर स्थित है। नंदी हिल्स चिक्काबल्लापुरा तालुक के नंदी होबली में है, जबकि आदियोगी चिक्काबल्लापुरा तालुक के कसाबा होबली में स्थित है। ये जमीन भू-स्वामियों से विचार करने के बाद खरीदी गई राजस्व भूमि है।
सद्गुरु का है कर्नाटक के मैसूर से संबंध...
सद्गुरु कर्नाटक के मैसूर में पैदा हुए थे। अब उनकी पहचान एक अंतरराष्ट्रीय आध्यात्मिक नेता के रूप में होती है। सद्गुरु ने मैसूर में चामुंडी हिल्स में ज्ञान प्राप्त किया था। कावेरी कॉलिंग परियोजना जिसे सद्गुरु के मार्गदर्शन में शुरू किया गया था, कावेरी नदी को पुनर्जीवित करने के लिए एक आंदोलन है। कर्नाटक और तमिलनाडु के किसानों को नदी बेसिन में वनस्पति को बहाल करने के लिए अपने स्वयं के खेत में 242 करोड़ पेड़ लगाने के लिए सक्षम बनाया गया है। यह नदी के बेसिन में 9 से 12 ट्रिलियन लीटर पानी को अलग कर देगा और स्रोत पर कावेरी के प्रवाह को बढ़ाएगा।
यह भी पढ़ें: