सार

सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह कानून को औपनिवेशिक कानून बताते हुए कहा था कि इस कानून को निरस्त किया जाना चाहिए जिसने महात्मा गांधी व अन्य स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की आवाज को दबाया था। यह कानून गांधी, तिलक जैसों की आवाज को दबाने के लिए अंग्रेज इस्तेमाल करते थे।

Sedition law on hold: देश में राजद्रोह कानून पर अभी रोक नहीं हटेगा। सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह कानून पर लगी रोक को अभी जारी रखने पर सहमति जताई है। केंद्र सरकार के अनुरोध पर सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई को भी टाल दी है। केंद्र सरकार की ओर से बताया गया है कि शीतकालीन सत्र के दौरान संसद इस कानून पर महत्वपूर्ण निर्णय लेने वाली है। अब सुप्रीम कोर्ट इस कानून पर अगले साल जनवरी में सुनवाई करेगा। अगली सुनवाई तक कोर्ट द्वारा राजद्रोह कानून पर लगी रोक का पालन केंद्र सरकार को करना होगा। 

सुप्रीम कोर्ट में राजद्रोह कानून के खिलाफ दायर हैं याचिकाएं

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में राजद्रोह कानून के खिलाफ कई याचिकाएं दायर हैं। आईपीसी की धारा 124ए यानी राजद्रोह के खिलाफ याचिकाओं सीजेआई यूयू ललित की पीठ सुनवाई कर रही है। इस तीन सदस्यीय पीठ में सीजेआई यूयू ललित के अलावा जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी शामिल हैं। बीते मई में इन याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार व राज्यों को राजद्रोह कानून के इस्तेमाल पर रोक लगा दी थी। कोर्ट ने आदेश दिया था कि इस कानून के तहत कोई भी केस नहीं दर्ज किया जाएगा न ही इस केस के तहत कोई जांच होगी। इस आदेश के बाद कोर्ट ने केंद्र सरकार को राजद्रोह कानून की समीक्षा करने को कहा था। 

राजद्रोह कानून के पीड़ितों को त्वरित न्याय के लिए कोर्ट ने दिया दिलासा

राजद्रोह कानून पर रोक के साथ ही कोर्ट ने आश्वस्त किया कि अगर सरकार ने इस कानून के तहत कोई मामला दर्ज भी किया तो कोर्ट उन मामलों की सुनवाई और निस्तारण तत्काल करेगी। हालांकि, केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए अटार्नी जनरल ने कानून पर रोक लगाए जाने के आदेश का विरोध किया था। 

क्या कहा था सुप्रीम कोर्ट ने?

सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह कानून को औपनिवेशिक कानून बताते हुए कहा था कि इस कानून को निरस्त किया जाना चाहिए जिसने महात्मा गांधी व अन्य स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की आवाज को दबाया था। यह कानून गांधी, तिलक जैसों की आवाज को दबाने के लिए अंग्रेज इस्तेमाल करते थे। सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून को निरस्त करने के लिए केंद्र सरकार से पूछते हुए कहा कि क्या आजादी के 75 साल बाद भी यह जरूरी है?

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