सार

सुप्रीम कोर्ट में संविधान से 'समाजवादी' और 'धर्मनिरपेक्ष' शब्द हटाने की याचिका पर सुनवाई हुई। कोर्ट ने कहा कि ये शब्द संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा हैं।

नई दिल्ली: भारत के संविधान से समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष शब्द को हटाया जाए या नहीं?, इस पर सुप्रीम कोर्ट में दाखिल जनहित याचिका पर सुनवाई की जा रही है। सुप्रीम कोर्ट के बेंच ने सुनवाई के दौरान कहा कि समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष शब्द संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है। कोर्ट ने अपने कई निर्णयों में इस पर बार-बार जोर दिया है।

जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस पीवी संजय कुमार की बेंच संविधान के मूल से सोशलिस्ट और सेकुलर शब्द हटाने की याचिका पर सुनवाई कर रही है। याचिकाकर्ताओं में बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी, अधिवक्ता विष्णुशंकर जैन, अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय आदि शामिल हैं।

संविधान संशोधन पर बहस नहीं होने पर कोर्ट ने क्या कहा?

सुनवाई के दौरान दलील देते हुए विष्णु शंकर जैन ने कहा कि 1976 में संविधान में 42वां संशोधन किया गया। इसमें इन परिवर्तनों को किया गया जिस पर संसद में कभी बहस नहीं हुई।

इस पर जस्टिस खन्ना ने जवाब दिया कि इस मामले पर लंबी बहस हो चुकी है। इन शब्दों की अलग-अलग व्याख्याएं हैं। आज दोनों शब्दों की अलग-अलग व्याख्याएं हैं। यहां तक ​​कि हमारी अदालतों ने भी इन्हें बार-बार संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा घोषित किया है। जस्टिस खन्ना ने कहा कि समाजवाद का अर्थ यह भी हो सकता है कि सभी के लिए उचित अवसर हो, समानता की अवधारणा हो। इसे पश्चिमी अवधारणा में न लें। इसका कुछ अलग अर्थ भी हो सकता है। धर्मनिरपेक्षता शब्द के साथ भी यही है।

आपातकाल की वजह से संशोधन प्रभावित !

याचिकाकर्ता व अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि इंदिरा गांधी सरकार ने इमरजेंसी लगाया था जिसके दौरान यह संशोधन प्रभावित हुआ था। उन्होंने कहा कि मैं इस बारे में ज्यादा कुछ नहीं कहना चाहता कि न्यायमूर्ति एचआर खन्ना ने क्या किया और हमें बचाया।

क्या आप नहीं चाहते भारत धर्मनिरपेक्ष हो?

इस पर जस्टिस संजीव खन्ना ने जवाब देते हुए पूछा कि आप नहीं चाहते कि भारत धर्मनिरपेक्ष हो?

फिर अधिवक्ता जैन ने जवाब दिया: हम यह नहीं कह रहे हैं कि भारत धर्मनिरपेक्ष नहीं है। हम इस संशोधन को चुनौती दे रहे हैं।

इस पर जस्टिस खन्ना ने कहा: यदि संविधान में समानता के अधिकार और 'बंधुत्व' शब्द के साथ-साथ भाग III के तहत अधिकारों को देखें, तो स्पष्ट संकेत मिलता है कि धर्मनिरपेक्षता को संविधान की मुख्य विशेषता माना गया है। मैं आपके लिए कुछ उदाहरण दे सकता हूँ। जब धर्मनिरपेक्षता पर बहस हुई थी तब केवल फ्रांसीसी मॉडल था। सर्वोच्च न्यायालय ने धर्मनिरपेक्षता के विरुद्ध जाने वाले कानूनों को खारिज कर दिया है। आप अनुच्छेद 25 को देख सकते हैं। समाजवाद के लिए, हमने पश्चिमी अवधारणा का पालन नहीं किया है और हम इससे खुश हैं।

क्या स्वतंत्रता कम हुई है?

अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने कहा कि डॉ. बीआर अंबेडकर का मानना ​​था कि 'समाजवाद' शब्द की शुरूआत स्वतंत्रता को कम करेगी।

जस्टिस खन्ना ने पूछा, "क्या स्वतंत्रता कम हुई है? मुझे बताएं?

अधिवक्ता उपाध्याय ने कहा कि प्रस्तावना में इन दो शब्दों को जोड़ने से भानुमती का पिटारा खुल गया है। हम हमेशा से धर्मनिरपेक्ष रहे हैं। इसे जोड़ने से एक पिटारा खुल गया है, कल लोकतंत्र शब्द हटाया जा सकता है या कुछ भी किया जा सकता है। इन शब्दों को शामिल करने के दौरान लोगों की कोई इच्छा नहीं थी। 'हम लोगों' की कोई इच्छा नहीं थी।

जस्टिस खन्ना ने जवाब दिया: उस समय कई कानून पारित किए गए होंगे। जस्टिस खन्ना ने याचिकाकर्ताओं से प्रासंगिक दस्तावेज प्रस्तुत करने को कहा ताकि वह उनकी जांच कर सके। बेंच ने नोटिस जारी करने से इनकार कर दिया। मामले को अगली बार 18 नवंबर को सूचीबद्ध किया जाएगा।

कौन हैं जस्टिस संजीव खन्ना?

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट कोर्ट के 1976 के उस फैसले का संदर्भ कोट किया गया जिसमें कहा गया था कि किसी व्यक्ति को गैरकानूनी तरीके से हिरासत में न लिए जाने के अधिकार को राज्य के हित में निलंबित किया जा सकता है। संविधान पीठ के 4-1 के फैसले में न्यायमूर्ति एचआर खन्ना अकेले असहमति जताने वाले व्यक्ति थे। जस्टिस संजीव खन्ना न्यायमूर्ति एचआर खन्ना के भतीजे हैं।

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