Bihar Voter List Special Intensive Revision (SIR) पर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में जस्टिस ने कहा कि 11 दस्तावेजों का विकल्प ‘वोटर-फ्रेंडली’ है। वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने इसे ‘एंटी-वोटर’ करार दिया और 1995 के Lal Babu judgment का हवाला दिया।

Supreme Court Bihar voter list: सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) के तहत वोटर लिस्ट अपडेट करने के लिए दस्तावेज़ों की जांच को ‘एंटी-वोटर’ बताने वाले तर्क से असहमति जताई। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने कहा कि पहले जहां समरी रिवीजन में 7 दस्तावेज़ मान्य थे, वहीं SIR में यह संख्या बढ़ाकर 11 कर दी गई है, जो वोटर-फ्रेंडली कदम है।

जस्टिस बागची ने सुनवाई के दौरान कहा कि हम आपके Aadhaar वाले exclusion वाले तर्क को समझते हैं लेकिन 11 दस्तावेज़ विकल्प होना, वोटर के पक्ष में है। इतनी डॉक्यूमेंट चॉइस में नागरिकता साबित करना आसान हो जाता है। जस्टिस सूर्यकांत ने भी सहमति जताते हुए कहा कि अगर सभी 11 दस्तावेज़ मांगे जाएं तो यह एंटी-वोटर है लेकिन अगर सिर्फ कोई एक मांगा जाए तो यह समस्या नहीं है।

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अभिषेक मनु सिंघवी का तर्क: ग्रामीण और गरीब इलाकों में मुश्किल

वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी (Abhishek Manu Singhvi) ने कहा कि यह प्रक्रिया एक्सक्लूसनरी है क्योंकि बिहार के ग्रामीण, बाढ़ प्रभावित और गरीबी से जूझ रहे क्षेत्रों में ज्यादातर लोगों के पास इतने दस्तावेज़ मौजूद नहीं हैं। उन्होंने कहा कि अगर ज़मीन नहीं है तो विकल्प 5, 6, 7 खत्म। पासपोर्ट सिर्फ 1-2% लोगों के पास है, यानि करीब 36 लाख लोगों के पास। निवास प्रमाण पत्र भी मुश्किल से मिलता है। जस्टिस सूर्यकांत ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा कि बिहार को इस तरह प्रोजेक्ट न करें। यहां से अधिकतम IAS, IPS, IFS अधिकारी निकलते हैं, जो तभी संभव है जब युवा आबादी प्रेरित हो।

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Lal Babu judgment का हवाला देते हुए दिया सिंघवी ने दी तर्क

सिंघवी ने 1995 के Lal Babu judgment का हवाला देते हुए कहा कि किसी भी वोटर का नाम हटाने के लिए पर्याप्त सबूत और उसे अपना पक्ष रखने का मौका देना ज़रूरी है। उन्होंने स्पष्ट किया कि वे इलेक्शन कमीशन के नाम हटाने के नियमों को चुनौती नहीं दे रहे बल्कि यह प्रक्रिया principle of natural justice के खिलाफ है।

ADR की ओर से शंकरनारायणन ने दी बिहार वोटर लिस्ट गड़बड़ियों पर दलील

याचिकाकर्ता Association for Democratic Reforms (ADR) की ओर से वरिष्ठ वकील गोपाल शंकरनारायणन (Gopal Sankaranarayanan) ने कहा कि एक बार वोटर लिस्ट में नाम आ जाने के बाद वोटर का उस पर रहना एक सांविधिक अधिकार है और यह अधिकार पवित्र है।