सार

कोर्ट ने साफ कहा कि पंजाब व हरियाणा सरकार सख्त आदेश जारी करने के लिए मजबूर न करें। मामले की सुनवाई जस्टिस एसके कौल, जस्टिस सीटी रविकुमार, जस्टिस सुधांशु धूलिया की बेंच ने की है।

 

Sutlej and Yamuna River canal linking: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को पंजाब व हरियाणा सरकार को सतलुज और यमुना नदियों केा जोड़ने वाली नहर के हिस्से के निर्माण में निर्देशों की अनदेखी पर फटकार लगाई है। कोर्ट ने 21 साल पहले निर्माण के संबंध में डायरेक्शन दिए थे। आम आदमी पार्टी को कोर्ट ने भविष्य में सभी आदेशों के पालन का निर्देश दिया है। कोर्ट ने साफ कहा कि पंजाब व हरियाणा सरकार सख्त आदेश जारी करने के लिए मजबूर न करें। मामले की सुनवाई जस्टिस एसके कौल, जस्टिस सीटी रविकुमार, जस्टिस सुधांशु धूलिया की बेंच ने की है।

बेंच ने कहा कि पंजाब और हरियाणा सरकार को सुप्रीम कोर्ट की मर्यादा को स्वीकार करना होगा। राज्यों की सरकार को चेतावनी देते हुए केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वह इस मुद्दे पर हरियाणा व पंजाब सरकारों के बीच बातचीत की निगरानी करे ताकि नहर के आधा हिस्से का निर्माण पूरा कराया जा सके। बेंच ने केंद्र सरकार को निर्माण के पहले भूमि सर्वे को पूरा करने का आदेश दिया। मामले की जनवरी 2024 में सुनवाई मुकर्रर की है।

क्या कहा कोर्ट ने?

सुनवाई में पंजाब सरकार की ओर से पेश वकील ने विपक्षी दलों के दबाव और किसानों से भूमि अधिग्रहण में आने वाली समस्याओं को देरी के लिए जिम्मेदार ठहराया। इससे नाराज कोर्ट ने कहा कि राजनीतिक निहितार्थ हो सकते हैं लेकिन कुछ करना होगा। पंजाब में नहर का निर्माण करना होगा। हमें सख्त आदेश जारी करने के लिए मजबूर न करें। इससे पहले, हरियाणा पक्ष ने कहा था कि केवल निर्माण कार्य बचा है। पंजाब को सहयोग करना होगा। लेकिन सहयोग नहीं मिल रहा।

कोर्ट ने कहा, "आप (दोनों राज्य) मिलकर मामले को सुलझाएं। हमें सख्त आदेश जारी करने के लिए मजबूर न करें। हम इसमें नहीं पड़ सकते। आपको समाधान ढूंढना होगा। इसके बाद अदालत केंद्र के प्रतिनिधि की ओर मुड़ी और पूछा, "हां, भारत संघ, आप क्या कर रहे हैं?" कोर्ट ने केंद्र सरकार को भूमि का सर्वे करने को भी कहा ताकि निर्माण के लिए आवश्यकताओं का अनुमान लगाया जा सके।

सतलज-यमुना लिंक नहर पंक्ति

पंजाब और हरियाणा को 1966 में अलग होने के बाद सतलज यमुना नदियों के जल बंटवारे को लेकर विवाद शुरू हो गया। हालांकि, 1981 में इस विवादास्पद जल बंटवारे के लिए समझौता हुआ। पानी के प्रभावी आवंटन के लिए नहर का निर्माण किया जाना था। दोनों राज्यों को अपने क्षेत्र के भीतर संबंधित हिस्सों का निर्माण करना था। लेकिन 2004 में तत्कालीन पंजाब सरकार ने सतलज-यमुना लिंकेज समझौते को कानून पारित कर रद्द कर दिया। साथ ही निर्माण के लिए किसानों की अधिग्रहित जमीनों को वापस कर दिया। हालांकि, मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा तो 2016 में पंजाब सरकार के कानून को रद्द कर दिया।

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