सार
ओडिशा ट्रेन हादसे (Odisha Train Accident) की जांच चल रही है। इस बीच कई सवाल उठ रहे हैं। पूछा जा रहा है कि यह तकनीकी गड़बड़ी या मानवीय त्रुटि थी। इस रूट पर टक्कर रोधी प्रणाली "कवच" क्यों नहीं लगी थी?
नई दिल्ली। ओडिशा ट्रेन हादसे (Odisha Train Accident) में मरने वालों की संख्या 288 तक पहुंच गई है। एक हजार से अधिक लोग घायल हुए हैं। इनमें से 56 की स्थिति गंभीर है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दोषियों को कड़ी सजा दिए जाने की बात की है। हादसे की जांच की जा रही है। इस बीच सवाल उठ रहे हैं कि हादसे की वजह तकनीकी गड़बड़ी थी या मानवीय गलती।
संभावित परिचालन खामियों के बारे में सवाल उठाए जा रहे हैं, जिसके चलते हादसा होने की संभावना बताई जा रही है। शुक्रवार शाम 6.50 बजे से 7.10 बजे के बीच ओडिशा के बालासोर में तीन ट्रेनों के बीच दो टक्कर हुई, जिससे कई डिब्बे एक-दूसरे के ऊपर आ गिरे। कोरोमंडल शालीमार एक्सप्रेस (Coromandel Shalimar Express) मालगाड़ी से टकराकर पटरी से उतर गई।
इसी दौरान यशवंतपुर-हावड़ा सुपरफास्ट (Yesvantpur-Howrah Superfast) ने पटरी से उतरे डिब्बों को टक्कर मार दी। टक्कर इतनी जोरदार थी कि डिब्बे हवा में उछल गए। कोच एक-दूसरे पर चढ़ गए। दोनों ट्रेनों के सत्रह डिब्बे बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गए। रेल मंत्रालय ने दुर्घटना के कारणों की जांच के आदेश दिए हैं।
ओडिशा ट्रेन हादसे को लेकर उठ रहे सवाल
इस बीच ओडिशा ट्रेन हादसे को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं। कोरोमंडल शालीमार एक्सप्रेस उस ट्रैक पर कैसे आ गई, जिसपर पहले से एक मालगाड़ी खड़ी थी। यह तकनीकी खराबी थी या मानवीय भूल? कई एक्सपर्ट्स ने सिग्नल में गड़बड़ी होने की संभावना जताई है।
देश भर में टक्कर रोधी प्रणाली "कवच" लगा रहा रेल मंत्रालय
रेल मंत्रालय देश भर में टक्कर रोधी प्रणाली "कवच" स्थापित करने की प्रक्रिया में है। ट्रेन अगर गलती से सिग्नल पार कर जाए तो कवच अलर्ट करता है। सिग्नल पार करना ट्रेन हादसों का प्रमुख कारण है। कवच ट्रेन ड्राइवर को अलर्ट करता है। अगर इसे पता चले कि उसी ट्रैक पर एक और ट्रेन है तो यह ट्रेन के ब्रेक पर कंट्रोल कर लेता है और उसे रोक देता है।
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रेलवे के प्रवक्ता अमिताभ शर्मा ने कहा कि जिस रूट पर हादसा हुआ वहां कवच उपलब्ध नहीं था। अब सवाल उठ रहे हैं कि इतने महत्वपूर्ण रेल रूट पर कवच क्यों नहीं लगाया गया था? कोरोमंडल एक्सप्रेस के सबसे अधिक प्रभावित हिस्से स्लीपर क्लास के डिब्बे थे। आमतौर पर छुट्टियों के दौरान ये यात्रियों से भरे रहते हैं। यहां तक कि बिना रिजर्वेशन वाले यात्री भी इसमें यात्रा करते हैं।
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