सार
राजकोट जैसे शहर में टीआरपी गेमिंग जोन में हुई दिलदहला देने वाली घटना कई विभागों को कटघरे में खड़ी करती है।
Rajkot TRP Game zone fire massacre: राजकोट में टीआरपी गेमिंग जोन में शनिवार को गए लोगों के परिजन शायद ही भूल पाएंगे। आग से घिरे छोटे-छोटे बच्चे, उनकी चीख पुकार और धीरे-धीरे मौत के मुंह में समाना...उन मां-बाप के लिए किसी बुरे स्वप्न से भी बुरा है जिनके बच्चे जल मरे। वह कैंपस जो कभी बच्चों की हंसी, परिवारों के खुशमाहौल का गवाह था, अब वह फायर ट्रैजेडी के बाद किसी भूतखाना में तब्दील हो चुका है। 28 निर्दोषों को जिंदा मौत के आगोश में पहुंचाने वाली यह घटना कई सवालों को छोड़ गई है जिनका जवाब आने वाले कल में ऐसी घटनाओं को लगाम लगाने में सक्षम होंगी।
बिना एनओसी और लाइसेंस के कैसे धड़ल्ले से चलता रहा गेमिंग जोन?
राजकोट जैसे शहर में टीआरपी गेमिंग जोन में हुई दिलदहला देने वाली घटना कई विभागों को कटघरे में खड़ी करती है। जानकारों की मानें तो ऐसे एंटरटेनमेंट प्लेस के लिए लाइसेंस जारी करते समय कई स्तरों पर जांच की जाती है। बताया जा रहा कि टीआरपी गेमिंग जोन पूरी तरह लकड़ी और टिन के स्ट्रक्चर पर खड़ा किया गया था। यहां फायर सेफ्टी के मानकों को हर स्तर पर नजरअंदाज किया गया था। भारी भीड़ वाली इस जगह में केवल निकलने का एक ही रास्ता था। लेकिन किसी भी संबंधित विभाग या प्रशासनिक अधिकारी को इतनी फुर्सत नहीं मिली कि इन जगहों की पड़ताल करें या उनके मानकों को परखे या लाइसेंस वगैरह की जांच करे। बात-बात पर फायर सेफ्टी के नाम पर जांच पड़ताल करने वाला फायर विभाग भी न जाने किन वजहों से उस ओर झांकने की कोशिश न की। न ही नगर निगम के कंट्रोल में आने वाले इस एरिया में निगम के अधिकारी कभी यहां मानकों को जांच की कोशिश की और अगर किया तो ऐसी लापरवाही को नजरअंदाज किन वजहों से किया।
जागे मगर देर से…
इस घटना ने पूरे शहर को दहला दिया है लेकिन सबसे मौजूं सवाल यह कि सैकड़ों बच्चे जहां हर रोज आते-जाते थे, समय व्यतीत करते थे, उनकी सेफ्टी को ध्यान में रखकर प्रशासन ने किस तरह के मानकों को तय किया और उसका पालन नहीं हुआ तो आखिर क्या कदम उठाया गया। हादसा के बाद स्वयं अधिकारी यह बता रहे कि अंदर जाने और बाहर निकलने का एक छोटा रास्ता था। पूरे जोन में जगह-जगह सैकड़ों लीटर पेट्रोल-डीजल रखे हुए थे। यानि, पूरा गेम जोन कभी भी आग का गोला बन सकता था लेकिन किसी को भी चिंता न हुई। हालांकि, दो दर्जन से अधिक जान लेने के बाद प्रशासन की तंद्रा टूटी है।
मौत के पसरे मातम के बाद आनन फानन में सारे मानक भले ही अब जांच के दायरे में हों लेकिन अगर जिम्मेदार इसकी जांच समय रहते किए होते तो शायद उन बच्चों की हंसी और दर्जनों परिवार की खुशियां न छीनती।
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