सार
ओडिशा ट्रेन हादसा (Odisha Train Accident) के बाद कवच को लेकर चर्चा हो रही है। कहा जा रहा है कि इसके होने पर हादसा टाला जा सकता था। 'कवच' ट्रेनों की टक्कर रोकने के लिए बनी स्वदेशी प्रणाली है।
नई दिल्ली। ओडिशा के बालासोर में शुक्रवार शाम करीब सात बजे तीन ट्रेनों की टक्कर (Odisha Train Accident) हुई। इस हादसे में मरने वालों की संख्या 288 हो गई है। वहीं, एक हजार से अधिक लोग घायल हुए हैं। इस बीच टक्कर रोकने वाले सिस्टम कवच (Kavach) को लेकर खूब बात हो रही है। कहा जा रहा है कि कवच इस हादसे को टाल सकता था।
ओडिशा ट्रेन दुर्घटना में शनिवार को एक प्रारंभिक रिपोर्ट में बताया गया कि यह घटना मुख्य लाइन के बजाय कोरोमंडल एक्सप्रेस (Coromandel Express) के लूप लाइन पर चलने के चलते हुआ। इस लूप लाइन पर एक मालगाड़ी पहले से खड़ी थी। अब इस बात को लेकर सवाल उठ रहे हैं कि क्या कवच सिस्टम से इस जानलेवा हादसे को टाला जा सकता था?
क्या है कवच?
'कवच' स्वदेशी स्वचालित ट्रेन सुरक्षा (Automatic Train Protection) प्रणाली है। इसे 2002 में अनुसंधान डिजाइन और मानक संगठन (आरडीएसओ) द्वारा विकसित किया गया था। आरडीएसओ रेल मंत्रालय के अधीन काम करता है। 'कवच' इस बात पर ध्यान देता है कि ट्रेन ने किसी सिग्नल को जंप तो नहीं किया है। ट्रेन रुकने का सिग्नल मिलने के बाद आगे तो नहीं बढ़ रही है। ऐसा होने पर सिग्नल पास डेंजर (एसपीएडी) होता है। ट्रेन अगर रुकने का सिग्नल होने पर भी आगे बढ़े तो कवच ट्रेन की स्पीड पर कंट्रोल कर लेता है। वह लोको पायलट को अलर्ट करता है। इसके बाद भी लोको पायलट ने ब्रेक नहीं लगाया तो कवच सिस्टम खुद ब्रेक लगाकर ट्रेन रोक देता है।
ट्रैक पर कोई और ट्रेन हो तो ब्रेक लगा देता है कवच
अगर लोको पायलट सिग्नल की अनदेखी करता है और तय गति से अधिक रफ्तार से ट्रेन चलाता है तब भी कवच उसे ऐसा नहीं करने देता। खराब मौसम और घने कोहरे के दौरान यह ट्रेन संचालन में सहायता करता है। कवच जरूरत पड़ने पर खुद ब्रेक लगा सकता है, जिससे ट्रेन की रफ्तार पर नियंत्रण रहे। एक तय दूरी के भीतर अगर उसी ट्रैक पर कोई और ट्रेन है तो कवच को पता चल जाता है। ऐसा होने पर यह खुद व खुद ट्रेन को रोक देता है ताकि टक्कर नहीं हो।
दक्षिण मध्य रेलवे के 1,098 किलोमीटर रेल ट्रैक पर लगा है कवच सिस्टम
वर्तमान में दक्षिण मध्य रेलवे के 1,098 किलोमीटर रेल ट्रैक और 65 ट्रेन इंजन में कवच सिस्टम लगा है। दक्षिण मध्य रेलवे के 1,200 किलोमीटर रेल ट्रैक पर इसे लगाने का काम चल रहा है। केंद्र सरकार ने 2022 में 1,000 करोड़ रुपए की लागत से दिल्ली-मुंबई और दिल्ली-हावड़ा रेल नेटवर्क को कवर करते हुए 3,000 किलोमीटर रेल नेटवर्क में कवच लगाने के लिए टेंडर जारी किया था।
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ओडिशा में ट्रेन हादसे के बाद कवच चर्चा का विषय बन गया है। कई लोगों ने सुझाव दिया है कि कवच लगा होने पर हादसा टाला जा सकता था। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पूछा कि कोरोमंडल एक्सप्रेस में टक्कर रोधी प्रणाली क्यों नहीं लगाई गई थी। रेलवे अधिकारी पहले ही इस बात की पुष्टि कर चुके हैं कि हादसे का शिकार हुई ट्रेनें कवच से लैस नहीं थीं।
सुधांशु मणि बोले-ओडिशा में ट्रेन हादसे को नहीं रोक सकता था कवच
इस बात पर अलग-अलग राय आ रही है कि क्या कवच से हादसे को टालने में मदद मिल सकती थी। वंदे भारत एक्सप्रेस को जमीन पर उतारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले सुधांशु मणि ने कहा है कि कवच इस हादसे को नहीं रोक सकता था। हादसे का मूल कारण पहली ट्रेन का पटरी से उतरना प्रतीत होता है। सरकार जांच करे कि ऐसा क्यों हुआ।
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