सार

लोक सभा चुनाव में इस बार ये साफ हो गया है कि ये भारत की जनता है और ये कुछ भी कर सकती है। चुनाव में ये सबक मिला है कि वह अपने मुद्दों को लेकर साफ है। 

नेशनल डेस्क। लोकसभा चुनाव में इस बार भाजपा पूर्ण बहुमत हासिल करने में असफल हो गई। ऐसे में साफ है कि देश की जनता को हल्के में नहीं ले सकते हैं। वह अपने हितों और मुद्दों को समझती है और उसी के अनुरूप मतदान करती है। लोकसभा चुनाव के परिणाम बहुत हद तक इन बातों को स्पष्ट भी करते हैं। घटना में  

राजनीति में धर्म के मिश्रण के खिलाफ मतदान
पहले कई बार मतदाताओं ने अपने वोटों का प्रयोग कर अपनी परिपक्वता साबित की है। उन्होंने मतदान से साबित किया है कि देश की जनता एक बार भटक सकती है लेकिन उसमें समझ बाकी है। इमरजेंसी के कारण जनता ने इंदिरा गांधी 'द आयरन लेडी' का भी तख्ता पलट कर दिया था। हालांकि उन्हें तीन साल में वापस लाया गया। अतीत में जनता ने कांग्रेस, भाजपा, जनता दल और जनता पार्टी को नकार दिया था। जनता ने राजनीति के साथ धर्म के मिश्रण के खिलाफ मतदान किया। 

भाजपा ने बेरोजगारी, महंगाई के बजाए धर्म को मुद्धा बनाया
भाजपा ने इस लोकसभा चुनाव में जनता क सामने कई सारे मुद्दों को रखा ही नहीं। भाजपा ने चुनाव में महंगाई, बेरोजगारी  के साथ किसानों और वंचितों के मुद्दों को किनारे कर मुख्य रूप से धर्म और हिन्दुत्व के मुद्दे को आगे रखा। भाजपा को विश्वास था कि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण उसे निश्चित तौर पर जबरदस्त सफलता दिलाते हुए बहुमत के आंकड़ों तक पहुंचाएगा। लेकिन इस बार जनता ने भी इस चुनावी खेल को समझ लिया और हिन्दुत्व के एजेंडे में नहीं फंसी। हालांकि अभी भी हिन्दू आबादी का विशाल बहुमत भाजपा के साथ है।  

एग्जिट पोलों में ऊपर रहे
एग्जिट पोलों में मीडिया ने भाजपा को पूर्ण बहुमत मिलता  दिखाया था। कुछ पोल में तो अबकी बार 400 पार का नारा भी सच होता दिखाया जा रहा था। लेकिन परिणाम इससे कुछ इतर नजर आए हैं। निश्चित तौर पर जीत एनडीए की हुई है लेकिन मतदान ने ये बता दिया जनता भटकी नहीं है और मुद्दों को पहचान रही है।