सार
ओलंपिक खेलों ने राजनीतिक बहिष्कार (मॉस्को 1980) और आतंकवाद (म्युनिख 1972) का सामना किया है लेकिन खेल सिर्फ युद्ध के कारण रद्द हुए हैं ।
तोक्यो. ओलंपिक खेलों ने राजनीतिक बहिष्कार (मॉस्को 1980) और आतंकवाद (म्युनिख 1972) का सामना किया है लेकिन खेल सिर्फ युद्ध के कारण रद्द हुए हैं । तोक्यो ओलंपिक 2020 स्थगित किये जाने के बाद अतीत के गलियारों में जाकर उन खेलों पर दृष्टिपात करते हैं जिन पर जंग की गाज गिरी थी ।
बर्लिन 1916 :
स्टॉकहोम में चार जुलाई 1912 को छठे ओलंपिक खेलों की मेजबानी बर्लिन को सौंपी गई । जर्मन ओलंपिक समिति ने युद्धस्तर पर तैयारी की । जून में बर्लिन स्टेडियम में टेस्ट स्पर्धायें भी आयोजित हुई। दूसरे दिन आस्ट्रिया के आर्कड्यूक फ्रेंक फर्डिनेंड और उनकी पत्नी की हत्या कर दी गई । इसके बाद के घटनाक्रम प्रथम विश्व युद्ध का कारण बने । बर्लिन ओलंपिक खेल नहीं हो सके ।
तोक्यो 1940 :
जूडो के अविष्कारक जापान के महान खिलाड़ी जिगोरो कानो की अगुवाई में तोक्यो को 1940 में ओलंपिक की मेजबानी मिली । इतालवी निर्देशक बेनितो मुसोलिनी ने ऐन मौके पर दौड़ से नाम वापिस ले लिया । इस बीच जापान और चीन में जंग छिड़ गई और राजनयिक दबाव बन गया कि जापान खेलों की मेजबानी छोड़े । आखिरकार जापान ने दबाव के आगे घुटने टेके लेकिन 1964 में तोक्यो ओलंपिक की मेजबानी करने वाला पहला एशियाईदेश बना ।
लंदन 1944 :
लंदन ने रोम, डेट्राइट, लुसाने और एथेंस को पछाड़कर मेजबानी हासिल की लेकिन तीन महीने बाद ही ब्रिटेन ने जर्मनी के खिलाफ जंग का ऐलान कर दिया। ये खेल हुए ही नहीं और इटली में शीतकालीन खेल भी रद्द हो गए । लंदन ने 1948 में खेलों की मेजबानी की जिसमें जापान और जर्मनी ने भाग नहीं लिया।
(यह खबर समाचार एजेंसी भाषा की है, एशियानेट हिंदी टीम ने सिर्फ हेडलाइन में बदलाव किया है।)