सार

निजामाबाद के मुस्लिम परिवार की एक बेटी का बॉक्सिंग रिंग में पहुंचना और उसके वर्ल्ड चैंपियन तक का सफर तय करने की कहानी उन तमाम बेटियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनेगा जो समाजिक दबाव में अपने सपनों को पूरा करने के पहले ही हतोत्साहित हो जाते हैं। निकहत जरीन न जाने कितनों को सपना देखने और पूरा करने के लिए प्रेरित करेगी। 

निजामाबाद। वर्ल्ड बॉक्सिंग चैंपियनशिप 2022 को जीतकर भारत की बेटी निकहत जरीन, देश की उन तमाम बेटियों विशेषकर मुस्लिम समाज, के लिए नजीर बन चुकी हैं। वह उन तमाम बेटियों को रातों रात पंख दे दी जिनकी उड़ान, धार्मिक रूढ़ियों व लैंगिक बाधाओं का सामना करते हुए दम तोड़ रही थीं। निकहत (Nikhat Zareen) की कहानी भी कुछ अलग नही हैं। बॉक्सिंग का करियर चुनना उनके लिए उनके समाज में कोई आसान काम नहीं था लेकिन उनके सपनों को सच करने का हौसला दिया, माता-पिता ने। बॉक्सिंग में शार्ट्स पहनने से ऐतराज करने वाले रिश्तेदारों व धार्मिक ठेकेदारों के विरोध को दरकिनार कर वह बेटी के सपनों को सच करने के लिए मजबूत सपोर्ट के रूप में खड़े रहे। 

स्प्रिंटर से अचानक बॉक्सिंग की ओर रूख किया...

पूर्व फुटबॉलर और क्रिकेटर मोहम्मद जमील (Mohammad Jameel) कहते हैं कि वह चारों बेटियों को उनके मनमुताबिक करियर चुनने की आजादी दिए। चार बेटियों में एक बेटी को खेल में करियर बनवाने की उनकी इच्छा थी। दो बेटियां डॉक्टर हो गई, निकहत ने खेल को चुना। निजामाबाद के मूल निवासी मोहम्मद जमील बताते हैं कि तीसरी बेटी निखहत जरीन के लिए एथलेटिक्स चुना। युवा निकहत स्प्रिंट स्पर्धाओं में स्टेट चैंपियन बनकर उभरी। लेकिन एक चाचा की सलाह पर बॉक्सिंग रिंग में आ गईं। 14 साल की उम्र में, निकहत वर्ल्ड यूथ बॉक्सिंग चैंपियन बनीं तो परिवार की खुशी का ठिकाना न रहा।

निकहत जब उभर रही थी तो मैरी कॉम क्षितिज पर चमक रहीं थीं

खेल की दुनिया भी बेहद प्रतिस्पर्धा वाली होती। निकहत जरीन, जब दुनिया जीतने का सपना संजो रिंग पर प्रैक्टिस कर रही थी तो उस समय भारतीय बॉक्सिंग का सितारा बनकर मैरी कॉम चमक रहीं थीं। निकहत सीनियर वर्ल्ड चैंपियनशिप में अपना जलवा बिखेरती कि 2017 का साल उनके लिए बुरा साबित हुआ। कंधे की चोट ने निकहत के सुनहरे भविष्य पर ग्रहण लगा दिया। वह पूरे एक साल तक रिंग से बाहर रहीं। यह वह दौर था जब उनका गोल्डन टाइम चल रहा था। हालांकि, एक साल तक रिंग के बाहर रहने के बाद भी जब निकहत रिंग में लौंटी तो कॉमनवेल्थ गेम्स, एशियन गेम्स में उनको राष्ट्रीय टीम में जगह नहीं मिली। असफलता के बावजूद पिता और परिवार का पूरा सपोर्ट मिला जिसकी वजह से निकहत का मनोबल नहीं टूटा।

चोट लगने के पांच साल बाद पूरा हुआ वर्ल्ड चैंपियन का सपना

कंधे की दर्द के बाद पांच साल तक असफलता के कई दंश झेलते हुए, निराशा को पार करते हुए निकहत गुरुवार को वर्ल्ड बॉक्सिंग चैंपियन बनकर सबको जवाब दे चुकी हैं। थाईलैंड की जितपांग जुतामास को हराकर वह विश्व चैंपियन बन चुकी हैं। 

पिता जमील इस जीत से बेहद खुश तो हैं ही इस जीत को भारतीय मुस्लिम लड़कियों के लिए एक मील का पत्थर मानते हैं। वह कहते हैं कि विश्व चैंपियनशिप में स्वर्ण जीतना एक ऐसी चीज है जो मुस्लिम लड़कियों के साथ-साथ देश की प्रत्येक लड़की को जीवन में बड़ा हासिल करने का लक्ष्य रखने के लिए प्रेरणा का काम करेगी। एक बच्चा, वह लड़का हो या लड़की, को अपना रास्ता खुद बनाना चाहता है और निकहत ने अपना रास्ता खुद बनाया है।

बेटी बनी बेटों के लिए प्रेरणा

मोहम्मद जमील कहते हैं कि समाज में अक्सर बेटों को नजीर बनाकर बेटियों को नसीहत दी जाती है। लेकिन बेटी निकहत हमारे घर में नजीर बनी है। चाचा समसमुद्दीन के बेटे एतेशामुद्दीन और इतिशामुद्दनी आज की तारीख में मुक्केबाजी को चुने हैं क्योंकि उनकी बहन उनकी प्रेरणा है। वह बताते हैं कि निकहत की सबसे छोटे बहन बैडमिंटन खेल को चुनी है। 

बेटी को आगे बढ़ाना आसान नहीं था जमील के लिए

जमील कहते हैं कि बेटी को खेल में आगे बढ़ाना आसान नहीं था। निकहत निजामाबाद में ऐसे खेल को चुनी थी जिस खेल में 2000 के दशक के अंत तक कोई महिला मुक्केबाजों को निजामाबाद या हैदराबाद में प्रतिस्पर्धा करते नहीं देखा गया था। वह बताते हैं कि इस खेल में लड़कियों को शॉर्ट्स और ट्रेनिंग शर्ट पहनने की आवश्यकता होती है, उनके परिवार के लिए यह आसान नहीं था। रिश्तेदार, धार्मिक रूढ़ियों वाले लोग, सबको ऐतराज था। लेकिन जमील और उनकी पत्नी परवीन सुल्ताना बेटी के साथ हर सूरत में सपोर्ट में खड़े रहे। जमील बताते हैं कि  निकहत ने हमें बॉक्सर बनने की अपनी इच्छा के बारे में बताया, तो हमारे मन में कोई झिझक नहीं थी। लेकिन रिश्तेदार या दोस्त हमें बताते हैं कि एक लड़की को ऐसा खेल नहीं खेलना चाहिए जिसमें उसे शॉर्ट्स पहनना पड़े। लेकिन हम जानते थे कि निकहत जो चाहेगी, हम उसके सपने का समर्थन करेंगे। 2011 में वह निकहत जूनियर बॉक्सिंग की वर्ल्ड चैंपियन बनी तो थोड़ा समाज की सोच में बदलाव दिखा।

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