सार

सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के उस फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें उन्हें गैर इरादतन हत्या का दोषी ठहराया गया था। यह फैसला जस्टिस चेलमेश्वर और जस्टिस संजय किशन कौल की डिवीजन बेंच ने दिया है। 

चंडीगढ़ : पंजाब कांग्रेस (Punjab Congress) के पूर्व प्रधान नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) को  34 साल पुराने रोडरेज के केस में सुप्रीम कोर्ट ने एक साल जेल की सजा सुनाई है। गुरुवार को सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने सिद्धू को बरी करने के अपने मई 2018 के आदेश की समीक्षा की है और उन्हें सजा सुनाई। इसके पहले सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें एक हजार रुपए का जुर्माना देकर छोड़ दिया था। सिद्धू को जल्द ही पुलिस गिरफ्तार कर सकती है। उन्हें पटियाला जेल भेजा जा सकता है। साल 1988 में इस हमले में एक बुजुर्ग की मौत हो गई थी। आइए 5 प्वॉइंट्स में समझें कि तीन दशक पहले आखिर गुरु कैसे कांड कर बैठे थे..

34 साल पुराना है मामला
बात 27 दिसंबर 1988 की है। तब सिद्धू क्रिकेट खेला करते थे। इंटरनेशन क्रिकेट में उनकी एंट्री के एक साल ही बीते थे। उस शाम सिद्धू अपने एक दोस्त रूपिंदर सिंह संधू के साथ पटियाला के शेरावाले गेट की मार्केट गए थे। यह मार्केट उनके घर से महज डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर है। 

पार्किंग की कहासुनी हाथापाई तक पहुंची
सिद्धू मार्केट पहुंचे तो वहां कार पार्किंग को लेकर 65 साल के बुजुर्ग गुरनाम सिंह से उनका विवाद हो गया। यह इतना बढ़ा कि हाथापाई की नौबत तक आ गई। गुस्से में सिद्धू ने गुरनाम सिंह को मुक्का मारा और घुटना मारकर गिरा दिया। बुजुर्ग गुरनाम सिंह को गहरी चोट लगी तो उन्हें अस्पताल ले जाया गया। जहां उनकी मौत हो गई। मेडिकल रिपोर्ट में पता चला कि बुजुर्ग की मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई।

सिद्धू पर गैर-इरादतन हत्या का केस
जिस दिन बुजुर्ग की मौत हुई, उसी दिन नवजोत सिंह सिद्धू और उनके दोस्त रूपिंदर पर गैर-इरादतन हत्याका मामला दर्ज किया गया। यह केस कोतवाली थाने में रजिस्टर हुआ। इसके बाद मामला अदालत में पहुंचा। 1999 में सुनवाई के दौरान सेशन कोर्ट ने सबूतों के अभाव में सिद्धू को बरी कर दिया था। 

हाईकोर्ट से तीन साल की सजा
इसके तीन साल बाद पंजाब की तत्कालीन सरकार ने सिद्धू के खिलाफ इस मामले में हाईकोर्ट का रुख किया। यह वही दौर था जब सिद्धू ने पॉलिटिक्स में एंट्री ली थी। साल 2004 में बीजेपी के टिकट पर उन्होंने अमृतसर से लोकसभा का चुनाव जीता लेकिन दो साल बाद ही इस मामले में हाईकोर्ट ने उन्हें सजा सुना दी। दिसंबर 2006 में उच्च न्यायालय ने सिद्धू और उनके दोस्त रूपिंदर को दोषी पाया और उन्हें तीन-तीन साल की कैद की सजा सुनाई। इसके साथ ही कोर्ट ने एक लाख का फाइन भी लगाया था। मजबूरन सिद्धू को सांसद पद से इस्तीफा देना पड़ा।

सुप्रीम कोर्ट पहुंचा मामला
हाईकोर्ट का फैसला आने के बाद उसी साल सिद्धू ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की और हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी। सर्वोच्च न्यायालय में उनका केस बीजेपी के दिवंगत नेता अरुण जेटली ने लड़ा। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगगा दी। इसके बाद 15 मई 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने सिद्धू को सेक्शन 323 के तहत दोषी पाया। तब उन्हें जुर्माना लगाकर छोड़ दिया गया। 12 सितंबर 2018 को अदालत में एक रिव्यू पिटिशन पर सुनवाई को स्वीकार किया और इस साल 25 मार्च को रिव्यू पिटिशन पर अपने फैसले को सुरक्षित रख लिया था। जिस पर गुरुवार को सुनवाई हुई और सिद्धू को एक साल की जेल की सजा दी गई।

इसे भी पढ़ें-1988 के रोडरेज मामले में नवजोत सिद्धू को मिली एक साल जेल की सजा, हिरासत में लेगी पंजाब पुलिस

इसे भी पढ़ें-गुरु का अब क्या होगा! टेंशन में नवजोत सिद्धू, रोडरेज मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला कर सुरक्षित रखा आदेश