सार
पंजाब (Punjab) के कैप्टन कहे जाने वाले अमरिंदर सिंह (Capt Amarinder Singh) को पटियाला सीट (Patiala Assembly seat) से हार का सामना करना पड़ा है। ये एक बड़ा उलटफेर है क्योंकि कैप्टन अमरिंदर सिंह कभी पंजाब की राजनीति के केंद्र बिंदु हुआ करते थे।
पंजाब से मनोज ठाकुर...
पटियाला. पंजाब चुनाव 2022 में पटियाला शहरी सीट से कैप्टन अमरिंदर सिंह को हार का सामना करना पड़ा है। Asianet Hindi के रिपोर्टर मनोज ठाकुर ने महाराजा की ठसक के बारे में बताया। कहा- चुनाव प्रचार का अंतिम दिन था। मैं कैप्टन अमरिंदर सिंह के महल पटियाला के सामने खड़ा था। महल के चारों ओर कड़ी सुरक्षा व्यवस्था। कैप्टन की कुर्सी छीन चुकी थी। उनका राजनीतिक वजूद दांव पर है। मैदान -ए- जंग का 'कमांडर', 'कैप्टन 'इस वक्त छोटे से मोर्चे पर खुद का राजनीतिक दुर्ग बचाने की जद्दोजहद कर रहा था। फिर भी उनके महल की ठसक जस की तस थी। मजाल है, उनकी इजाजत के बिना वहां परिंदा भी 'पर' मार जाए। मैं महल में जाना चाहता था, मेरी एप्वाइंटमेंट नहीं थी, इसलिए मुझे अंदर नहीं जाने दिया।
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यह कैप्टन का रूतबा है। लेकिन वह कैप्टन जो पिछली विधानसभा में सत्ता के केंद्र बने हुए थे, आज भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन कर 37 सीटों पर चुनाव लड़ते हुए खुद की सीट नहीं बचा पाए। मात्र 150 दिन में कैप्टन की जिंदगी में बहुत कुछ बदल गया। नहीं बदला तो बस उनका शाही अंदाजा।
1942 में जन्मे कैप्टन अमरिंदर सिंह के पिता पटियाला रियासत के आखिरी महाराजा थे। 1963 से 1966 तक कैप्टन ने सिख रेजीमेंट में रहे। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के करीबी रहे, राजीव गांधी ही उन्हें 1980 में राजनीति में लेकर आए। सांसद बने, लेकिन ऑपरेशन ब्लू स्टार के विरोध में कांग्रेस छोड़ दी।
कैप्टन ने तब शिरोमणि अकाली दल ज्वाइन किया। तलवंडी साबो से जीते। पहली बार पंजाब में मंत्री बने। लेकिन यहां भी उनकी ज्यादा दिन पटरी नहीं बैठी। 1992 में अकाली दल छोड़ अपनी पार्टी बनाई। 1998 में वह खुद अपनी सीट भी हार गए। बाद में अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर लिया।
अब 18 सितंबर 2021 को कांग्रेस छोड़ कर अपनी पार्टी पंजाब लोक कांग्रेस बना कर सियासी वजूद की लड़ाई लड़ते हुए हार गए। अब देखना यह होगा कि कैप्टन पंजाब की राजनीति में किस तरह से खुद को स्थापित करते हैं।
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