सार
अंतर्राष्ट्रीय पुष्कर मेले में जोधपुर का भीम आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। खरीददारों ने 14 करोड़ रुपए तक इस भैंसे की कीमत लगा दी है। यह भैंसा प्रतिदिन 1 किलो घी, 25 लीटर दूध पीता है।
अजमेर. राजस्थान के पुष्कर में आयोजित होने वाले अंतर्राष्ट्रीय पुष्कर मेले में जोधपुर का भीम आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। भीम नामक इस भैंसे पर प्रतिमाह डेढ़ लाख रुपए से अधिक खर्च किया जाता है। बताया जा रहा कि अभी तक खरीददारों द्वारा इस भैंसे की कीमत 14 करोड़ रुपए तक लगाई जा चुकी है।
प्रतिदिन पीता है 25 लीटर दूध
भैंसा प्रतिदिन 1 किलो घी, आधा किलो मक्खन, दो सौ ग्राम शहद, 25 लीटर दूध, एक किलो काजू- बादाम खाता है। जिसके कारण यह भैंसा चर्चा और आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।
दूसरी बार आया है मेले में
भीम नामक यह भैंसा अपने अनोखे अंदाज के कारण चर्चा में बना हुआ है। बताया जा रहा कि यह भैंसा दूसरी बार पुष्कर के अंतर्राष्ट्रीय पशु मेले में आया है। मुर्रा नस्ल का यह भैंसा देश के कई स्थानों पर आयोजित होने वाले मेले में शामिल हो चुका है और पुरष्कार भी जीत चुका है। जोधपुर के जांगिड़ परिवार ने इस भैंसे को पाला है। जिसे जवाहर जांगिड़ अपने पुत्र अरविंद जागिड़ व परिवार के सदस्य इस भैंसे की देखभाल करते है।
लगी है प्रदर्शनी
बीती रात जांगिड़ परिवार भीम भैंसे को जोधपुर से लेकर पुष्कर पहुंचा। जहां गनाहेड़ा खरखेड़ी रोड पर भैंसे की प्रदर्शनी लगाई गई है। आपको बता दें कि इस मेले में विभिन्न प्रजातियों के पांच हजार से अधिक भैंसे इस मेले में आए है। जिसमें उन्होंने लातोरा, नागौर, देहरादून समेत कई मेलों में इसका प्रदर्शन कर चुके है।
14 करोड़ लगी है कीमत, 1300 किलो वजन
जागिड़ परिवार के इस अद्भुत भैंसे के खरीददारों की भरमार है। जिसके लिए खरीददारों ने 14 करोड़ रुपए तक इस भैंसे की कीमत लगा दी है। लेकिन जागिड़ परिवार इस भैंसे को अभी बेचना नहीं चाहता है। गौरतलब है कि साढ़े छह साल के भीम भैंसे का वजन 1300 किलो है। जानकारी के मुताबिक मेले के प्रदर्शनी में खड़े भीम भैंसे को देखने के लिए लोग उतावले हो जाते है। इसके साथ ही विदेशी भी इस भैंसे की खासियत की चर्चा कर रहे हैं।भीम की ख्याति सुनकर उसे देखने देशी-विदेशी पर्यटकों की भीड़ उमड़ती है. वो इसके बारे में सबकुछ जानना चाहते हैं. पर्यटकों का कहना है की भीम जैसा भैंसा उन्होंने पहले कभी नहीं देखा. धन्य हैं ऐसे लोग जो लाखों रुपए खर्च कर पशुओं के नस्ल को बढ़ावा दे रहे हैं.1