सार

राजस्थान में राजनीतिक उठापटक जारी है। इसी बीच सचिन पायलट ने एक बार फिर घर वापसी के संकेत दिए हैं। सचिन पायलट ने सोमवार को राहुल गांधी और प्रियंका गांधी से मुलाकात की। ये मुलाकात करीब डेढ़ घंटे चली। बताया जा रहा है कि विधानसभा सत्र से पहले आलाकमान गहलोत और पायलट खेमे में सुलह के पक्ष में है। 

जयपुर. राजस्थान में राजनीतिक उठापटक जारी है। इसी बीच सचिन पायलट ने एक बार फिर घर वापसी के संकेत दिए हैं। सचिन पायलट ने सोमवार को राहुल गांधी और प्रियंका गांधी से मुलाकात की। ये मुलाकात करीब डेढ़ घंटे चली। बताया जा रहा है कि विधानसभा सत्र से पहले आलाकमान गहलोत और पायलट खेमे में सुलह के पक्ष में है। 

हालांकि, पहले बताया जा रहा था कि सचिन पायलट ने राहुल गांधी से मुलाकात का वक्त मांगा था। लेकिन राहुल की तरफ से कोई जवाब नहीं आया था। लेकिन अब दोनों नेताओं के बीच मुलाकात की खबरें सामने आ रही हैं।

ऐसे मिले पायलट की वापसी के संकेत
दरअसल, रविवार को सीएम अशोक गहलोत की मौजूदगी में जैसलमेर के एक होटल में कांग्रेस विधायक दल की बैठक हुई थी। जिसमें पार्टी के कई विधायकों ने पायलट खेमे के खिलाफ कार्रवाई की मांग उठाई थी। हालांकि इसी बीच कई नेताओं ने पायलट की वापसी के लिए सुलह कर लेने की बात भी कही थी। 

क्या हो सकती है सुलह?
माना जा रहा है कि पायलट गुट की कांग्रेस में घर वापसी हो सकती है। इसके पीछे कुछ वजह सामने आ रही हैं। सरकार गिराने के मामले में जांच कर रही स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप (एसओजी) ने फाइनल रिपोर्ट पेश कर दी है। इसमें विधायकों के ऊपर से राष्ट्रद्रोह का मामला हटा है। ऐसे में विधायकों को राहत मिली है। वहीं, रविवार को विधायक दल की बैठक में भी अशोक गहलोत ने साफ कर दिया कि बागियों पर आलाकमान का जो फैसला होगा, उन्हें मंजूर होगा। 

इस तरह हो सकती है बागी विधायकों की वापसी
बता दें कि सीडब्लूसी के मेंबर रघुवीर मीणा ने विधायक दल की मीटिंग में कहा था, अगर फ्लोर टेस्ट में कांग्रेस के पक्ष में पायटल खेमे के विधायक वोट करते हैं तो बागी विधायकों को माफ किया जा सकता है। इसी बयान को सुलाह से जोड़कर अब देखा जा रहा है।

विश्वास मत हासिल करना चाहते हैं गहलोत
राजस्थान में राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच चले गतिरोध के बाद अब 14 अगस्त को विधानसभा का सत्र बुलाया गया है। गहलोत इस सत्र में विश्वास मत रखने और अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए उत्सुक हैं। अगर वे जीत जाते हैं तो उन्हें 6 महीने तक चुनौती नहीं दी जा सकती। अशोक गहलोत का दावा है कि उनके पास 102 विधायकों का समर्थन है जो बहुमत से ऊपर है। भाजपा के 72 विधायक हैं। संकट के बीच दोनों दल अपने विधायकों की रखवाली कर रहे हैं।