सार
डॉगी का तीन महीने तक इलाज चला लेकिन उसे बचाया नहीं जा सका। उसके इलाज पर ढाई लाख का खर्च आया। उसकी मौत के बाद परिवार के हर सदस्य के आंसू छलक पड़े। विधि-विधान से उसका अंतिम संस्कार कराया गया।
सीकर : डॉगी से लगाव की आपने कई कहानियां सुनी होंगी लेकिन राजस्थान (Rajasthan) के अशोक गौड़ और उनके डॉगी कैप्टन का प्यार इन दिनों चर्चा का विषय बना हुआ है। कैप्टन के बीमार होने के बाद भी जब उसे नहीं बचाया जा सका तो परिवार ने पूरे रीति-रिवाज से उसका अंतिम संस्कार किया। मालिक ने अपना मुंडन करवाया। आत्मा की शांति के लिए यज्ञ और भंडारे तक का आयोजन किया गया। इंसानों की मौत के बाद परिवार जिस तरह अंतिम विदाई देता है, उसी तरह कुत्ते की मौत पर सब कुछ देख हर तरफ इसकी चर्चा रही है।
दिल्ली में इलाज, अमेरिका से दवाई मंगाई
सीकर (Sikar) के फतेहपुर के अशोक भार्गव अपने पालतू डॉग जिसका नाम उन्होंने बड़े ही प्यार से कैप्टन रखा था, उसकी मौत से काफी दुखी हैं। पांच साल पहले अशोक दिल्ली (Delhi) गए थे और वहीं से कुत्ते को लेकर आए थे। उस वक्त उसकी उम्र सिर्फ 15 दिन ही थी। परिवार में उसे एक सदस्य की तरह रखा जाता। हर कोई बहुत प्यार करता था। तीन महीने पहले अचानक कैप्टन की तबीयत बिगड़ गई। जब इलाज कराया गया तो पता चला उसे ट्यूमर है। इससे परिवार परेशान हो गया। अशोक उसे इलाज के लिए दिल्ली ले गए और अमेरिका (America) से ढाई लाख की दवाईयां मगंवाई। लेकिन कोई असर नहीं हुआ। उसकी तबीयत बिगड़ती चली गई और 30 मार्च को उसकी मौत हो गई।
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आत्मा की शांति के लिए यज्ञ और भंडारा
कैप्टन की मौत के बाद परिवार ने पूरे रीति-रिवाज के साथ उसका अंतिम संस्कार करवाया। उसके शव को दफनाया गया। अशोक ने बकायदा मुंडन करवाया और डॉगी की आत्मा की शांति के लिए श्रद्धांजलि सभा भी रखी। रात को कीर्तन और भंडारे का आयोजन किया गया। इस भंडारे में मोहल्ले से बड़ी संख्या में वोह शामिल हुए।
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'कैप्टन' की मौत से परिवार में मातम
अशोक गौड़ कथावाचक हैं। वे बताते हैं कि कैप्टन के न होने से घर सूना-सूना लगता है। परिवार का हर सदस्य उदास है। हर कोई उसे याद करता है। हमारा परिवार हर साल कैप्टन का बर्थ-डे मनाता था। परिवार के सदस्य बच्चे की तरह उसे मानते थे और दिनभर खेलते रहते थे। कैप्टन परिवार में इस कदर घुल-मिल गया था कि अब उसे भूलना आसान नहीं लग रहा।
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