सार
देश जहां राखी के दिन हर्षोल्लास के साथ ये दिन बनाता है। पर वहीं सालों पहले राजस्थान राज्य के सीकर जिलें को इस अवसर पर एक युद्ध लड़ना पड़ा था। जहां आमलोगों की रक्षा के लिए साधु- संत ही दुश्मनों से भिड़ गए और उनको भागने पर मजबूर कर दिया। इतिहास में आज भी खेतर युद्ध नाम से दर्ज है विवरण।
सीकर. रक्षाबंधन रक्षा से जुड़ा पर्व है। जिसमें मंत्रोच्चारण के साथ रक्षा सूत्र बांधना सुरक्षा का प्रतीक है। इसी रक्षा बंधन के दिन से राजस्थान के सीकर जिले में रक्षा से जुड़ा एक बड़ा संग्राम भी हो चुका है। जो आमजन की रक्षा के लिए साधु- संतों ने 243 साल पहले मुगलों की सेना से लड़ा था। सावन महीने की पूर्णिमा के दिन हुए इस युद्ध में साधु- संतों ने ही मुगलों के 52 हजार सैनिकों को शिकस्त देकर भागने पर मजबूर कर दिया था। ये युद्ध खेत में होने की वजह से इतिहास के पन्नों में आज भी खेतर के युद्ध के नाम से प्रसिद्ध है। जिसके नाम से अब एक नया गांव भी बस चुका है।
243 साल पहले मुगलों ने की थी चढ़ाई
इतिहासकार महावीर पुरोहित की पुस्तक सीकर का इतिहास के अनुसार युद्ध संवत 1836 ई. यानी सन 1779 में हुआ था। इस दौरान दिल्ली की मुगलिया सल्तनत के सिपहसालार मुर्तजा भडेंच अली का विशाल लश्कर सीकर के थोई, श्रीमाधोपुर कस्बे को लूटता हुआ आगे बढ़ रहा था।
जिसमें आग उगलने वाले तोपखाने, हजारों घुड़सवार व बड़ी सुतर यानी ऊंट सवार सैनिक गांवों के गांव तबाह कर रहे थे। जब ये लश्कर खाटू के पास भड़ेच पहुंचा तो यहां दादूपंथी मंगलदास महाराज चातुर्मास कर रहे थे। जो मुर्तजा खां के साथ भिड़ गए। जिनका साथ शेखावाटी के साधु संतों के साथ सीकर के राजा देवी सिंह के अलावा दांता, बाय, दियावास, श्यामगढ़ व झुंझुनूंवाटी के सरदारों के अलावा डूंगरी के चुंडावत सिंह नाथावत तथा खूड़ के बख्तावर सिंह भी इस युद्ध में शामिल हुए। जिसमें मुगलों की सेना को करारी शिकस्त झेलनी पड़ी।
अजमेर की तरफ भाग गई सेना
महावीर पुरोहित के अनुसार दो दिन तक चले घमासान युद्ध में संतों की सेना ने मुगल सेना को चार कोस पीछे तक खदेड़ दिया। जिसके बाद सेना अजमेर की तरफ भाग गई। युद्ध में दोनों ओर के हजारों सैनिक मारे गए। जिनमें देवी सिंह के सेना नायक, अर्जुन भीम कायस्थ सहित कई शूरवीर शामिल थे।
दो पत्थरों के साथ युद्ध में पहुंचे महंत, हनुमानजी हुए प्रगट
युद्ध को लेकर गांव में किवदंती है कि मुगलों की सेना में 52 हजार सैनिक थे। जिनके सामने मंगलदास महाराज दो पत्थर लेकर पहुंचे थे। जिनकी उपासना करने पर उसमें से दक्षिण मुखी हनुमानजी व मां दुर्गा प्रगट हुई। जिनकी शक्ति के बल पर ही वह युद्ध जीता गया। इसी वजह से खेतर में आज भी दक्षिणमुखी हनुमानजी पूजे जाते हैं।