सार

Chaitra Navratri 2023: 29 मार्च, बुधवार को चैत्र नवरात्रि की अष्टमी तिथि है। इस दिन देवी महागौरी की पूजा का विधान है। देवी महौगारी की पूजा से हर तरह मनोकामना पूरी होती है। माता का ये स्वरूप गौरा है, इसलिए इसे महागौरी कहा जाता है।

 

उज्जैन. चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि (Chaitra Navratri 2023) को जया भी कहते हैं। इस बार ये तिथि 29 मार्च, बुधवार को है। इस दिन की गई पूजा और उपाय आदि सभी कुछ शुभ फल देने वाले माने गए हैं। इस तिथि पर देवी महागौरी (Goddess Mahagauri) की पूजा करने का विधान है। देवी महागौरी की चार भुजाएं हैं। इनका वाहन बैल है। इनका स्वभाव अति शांत है। देवी के दाहिनी ओर का ऊपर वाला हाथ अभय मुद्रा में और नीचे वाले हाथ में त्रिशूल है। बाएं ओर के ऊपर वाले हाथ में डमरू और नीचे वाला हाथ वर मुद्रा में है। आगे जानिए देवी महागौरी की पूजा विधि, महत्व, आरती व कथा…

इस विधि से करें देवी महागौरी की पूजा (Devi Mahagauri Puja Vidhi)
- 29 मार्च, बुधवार की सुबह स्नान आदि करने के बाद व्रत-पूजा का संकल्प लें। बाद में घर में किसी साफ स्थान पर चौकी रखकर इसके ऊपर देवी महागौरी की तस्वीर स्थापित करें।
- सबसे पहले देवी के चित्र पर फूल माला चढ़ाएं। कुमकुम से तिलक लगाएं और शुद्ध घी का दीपक जलाएं। इसके बाद एक-एक करके अबीर, गुलाल, रोली, मेहंदी, हल्दी आदि चीजें चढ़ाएं।
- इसके बाद नारियल या उससे बनी कोई मिठाई का भोग देवी महागौरी को लगाएं। अंत में आरती से पहले नीचे लिखा मंत्र बोलें-
श्वेत वृषे समारूढ़ा श्वेताम्बरधरा शुचि:।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा॥

देवी महागौरी की आरती (Devi Mahagauri Aarti)
जय महागौरी जगत की माया। जया उमा भवानी जय महामाया॥
हरिद्वार कनखल के पासा। महागौरी तेरी वहां निवासा॥
चंद्रकली ओर ममता अंबे। जय शक्ति जय जय माँ जगंदबे॥
भीमा देवी विमला माता। कौशिकी देवी जग विख्यता॥
हिमाचल के घर गौरी रूप तेरा। महाकाली दुर्गा है स्वरूप तेरा॥
सती सत हवन कुंड में था जलाया। उसी धुएं ने रूप काली बनाया॥
बना धर्म सिंह जो सवारी में आया। तो शंकर ने त्रिशूल अपना दिखाया॥
तभी माँ ने महागौरी नाम पाया। शरण आनेवाले का संकट मिटाया॥
शनिवार को तेरी पूजा जो करता। माँ बिगड़ा हुआ काम उसका सुधरता॥
भक्त बोलो तो सोच तुम क्या रहे हो। महागौरी माँ तेरी हरदम ही जय हो॥

देवी महागौरी की कथा (Devi Mahagauri Katha)
देवी पार्वती ने हिमालय के यहां पुत्री रूप मे जन्म लिया। उनके मन में शुरू से ही शिवजी को पति रूप में पाने की इच्छा थी। इसके लिए उन्होंने कई सालों तक घोर तपस्या की। निरंतर तपस्या करते रहने के कारण उसका शरीर काला पड़ गया। जब शिवजी प्रसन्न होकर उनके सामने प्रकट हुए तो देवी को पुन: गौरा होने का वरदान दिया। देवी के इसी रूप की पूजा नवरात्रि की अष्टमी तिथि पर की जाती है।


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