Devuthani Ekadashi Vrat Katha: इस बार 1 नवंबर, शनिवार को देवउठनी एकादशी का पर्व मनाया जाएगा। इस पर्व से जुड़ी एक रोचक कथा भी है, जिसे सुनने के बाद ही इस व्रत का पूरा फल मिलता है।
Devuthani Ekadashi Vrat Katha In Hindi: कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी और देवप्रबोधिनी एकादशी कहते हैं। मान्यता है कि इसी तिथि पर भगवान विष्णु नींद से उठकर सृष्टि के संचालन की जिम्मेदारी संभालते हैं। इसी तिथि से मांगलिक कार्यों जैसे विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश आदि की शुरूआत भी होती है। इस व्रत से जुड़ी एक कथा भी है। इसे सुने बिना इस व्रत का पूरा फल नहीं मिलता। आगे पढ़िए देवउठनी एकादशी की ये कथा…
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देवउठनी एकादशी व्रत की कथा
प्रचलित कथा के अनुसार एक बार अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से देवउठनी एकादशी का महत्व पूछा। तब श्रीकृष्ण ने उन्हें देवऋषि नारद और ब्रह्माजी के बीच हुई बात बताते हुए कहा कि ‘स्वयं ब्रह्मदेव ने देवउठनी एकादशी व्रत के बारे में कहा है कि देवप्रबोधिनी एकादशी का व्रत करने से हजारों अश्वमेध व सौ राजसूय यज्ञ का फल मिलता है।’
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नारदजी ने ब्रह्मदेव से पूछा ‘ देवप्रबोधिनी एकादशी पर एक समय भोजन करने से, रात में भोजन करने तथा पूरे दिन उपवास करने से क्या-क्या फल मिलता है। कृपा कर बताईए।’
ब्रह्माजी ने कहा ‘ देवउठनी एकादशी पर एक समय भोजन करने से दो जन्म के और पूरे दिन उपवास करने से सात जन्म के पाप नष्ट हो जाते हैं। पूर्व जन्म के सभी पाप भी प्रबोधिनी एकादशी का व्रत क्षण-भर में नष्ट कर देता है। जो व्यक्ति देवप्रबोधिनी एकादशी की पूरा रात जागकर भगवान के भजन सुनता और गाता है उसकी दस पीढ़ियां विष्णु लोक में वास करती हैं। तीर्थ यात्रा तथा गाय, सोना, भूमि आदि के दान का फल इस रात के जागरण के फल के समान होता है।’
ब्रह्मदेव ने कहा ‘जो व्यक्ति इस एकादशी व्रत को करता है, वह धनवान और इन्द्रियों को जीतने वाला होता है, क्योंकि ये तिथि भगवान विष्णु की अत्यन्त प्रिय है। इसके व्रत के प्रभाव से मनुष्य को जन्म-मरण के चक्र से छुटकारा मिल जाता है। प्रबोधिनी एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा करने से पिछले जन्मों से किए गए सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है।
ब्रह्माजी की बात सुनकर नारदजी ने कहा ‘देवप्रबोधिनी एकादशी का व्रत कैसे करना चाहिए। इसके बारे में भी बताइए।’
ब्रह्माजी ने कहा ‘इस एकादशी पर ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि करने के बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिए। दिन में शुभ मुहूर्त देखकर भगवान की विधि-विधान से पूजा करें और भजन कीर्तन करते हुए रात बितानी चाहिए। अगले दिन सुबह पुन: स्नान करने के बाद भगवान की पूजा करें और बाह्मणों को भोजन करवाकर दक्षिणा देकर विदा करें। इस तरह देवप्रबोधिनी एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति अपने जीवन में अनन्त सुख भोगकर अंत में स्वर्ग का जाता है।
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