सार
Mahashivratri 2023: महाशिवरात्रि पर लोग दिन भर उपवास रखते हैं शिवजी की पूजा करते हैं, लेकिन पुराणों के अनुसार, इस दिन रात्रि पूजा का महत्व अधिक है। इस परंपरा के पीछे कई कारण छिपे हैं। इस बार महाशिवरात्रि का पर्व 18 फरवरी, शनिवार को है।
उज्जैन. फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि (Mahashivratri 2023) का पर्व मनाया जाता है। इस बार ये तिथि 18 फरवरी, शनिवार को है। महाशिवरात्रि पर वैसे तो दिन में पूजा-पाठ की ही जाती है, लेकिन रात में पूजा का विशेष महत्व बताया गया है। (why celebrate mahashivratri) मान्यता के अनुसार, जो व्यक्ति महाशिवरात्रि की रात चारों प्रहर भगवान शिव की पूजा विधि-विधान से करता है, उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं सताता। इस संबंध में धर्म ग्रंथों में कई कथाएं भी मिलती हैं। आगे जानिए एक ऐसी ही कथा जो सबसे अधिक प्रचलित है…
इसलिए रात में की जाती है महाशिवरात्रि की पूजा
- शिवपुराण व अन्य ग्रंथों के अनुसार, एक बार ब्रह्मा जी और विष्णु भगवान दोनों स्वयं को श्रेष्ठ समझने लगे। इस बात पर दोनों में विवाद होने लगा। ब्रह्माजी ने कहा कि “मैंने सृष्टि का निर्माण किया है, इसलिये मैं श्रेष्ठ हूं।” भगवान विष्णु कहने लगे कि मैं सृष्टि का पालनकर्ता हूं, इसलिए मैं श्रेष्ठ हूं।”
- भगवान विष्णु और ब्रह्मा में जब ये विवाद चल रहा था, उसी समय वहां एक अग्नि रूपी विशाल शिवलिंग प्रकट हुआ। उसका न कोई आदि न कोई अंत। उसे देखकर दोनों देवता आश्चर्य में पड़े गए। तभी आकाशवाणी हुई कि “जो भी इस अग्नि रूपी शिवलिंग का छोर पता कर लेगा, वही श्रेष्ठ कहलाएगा।”
- आकाशवाणी के अनुसार ब्रह्मा और विष्णु दोनों उस अग्निरूपी शिवलिंग का छोर ढूंढने में लग गए। विष्णु भगवान उस ज्योतिर्लिंग के नीचे की और गए जबकि ब्रह्मदेव ऊपर की ओर। काफी कोशिश के बाद दोनों देवता उस ज्योतिर्लिंग के छोर का किसी तरह भी पता न लगा सके।
- जब दोनों देवता (ब्रह्मा और विष्णु) मिले तो भगवान विष्णु ने तो सच बोल दिया कि उन्हें इस ज्योतिर्लिंग का छोर नहीं मिला, जबकि ब्रह्मदेव ने खुद को श्रेष्ठ बताने के लिए झूठ बोल दिया कि “मैंने इस ज्योतिर्लिंग का छोर ढूंढ लिया था।” इसके लिए उन्होंने केतकी के फूल को साक्षी बनाया।
- ब्रह्माजी के ऐसा कहते हीं वहां भगवान शिव प्रकट हुए और बोले “ये ज्योतिर्लिंग मेरा ही स्वरूप है। ब्रह्मा के झूठ बोलने पर शिवजी ने नाराज होकर उनकी पूजा न होने का श्राप दिया और केतकी के फूल उपयोग उनकी पूजा में करने का। उन्होंने भगवान विष्णु की प्रशंसा भी की।
- शिवजी ने कहा कि “जो व्यक्ति इस तिथि पर रात्रि में मेरे ज्योतिर्लिंग रूप की पूजा करेगा, उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहेगा।” उस दिन फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि थी। इसलिए तभी से उस तिथि पर महाशिवरात्रि का पर्व मनाने की परंपरा चली आ रही है।
Disclaimer : इस आर्टिकल में जो भी जानकारी दी गई है, वो ज्योतिषियों, पंचांग, धर्म ग्रंथों और मान्यताओं पर आधारित हैं। इन जानकारियों को आप तक पहुंचाने का हम सिर्फ एक माध्यम हैं। यूजर्स से निवेदन है कि वो इन जानकारियों को सिर्फ सूचना ही मानें। आर्टिकल पर भरोसा करके अगर आप कुछ उपाय या अन्य कोई कार्य करना चाहते हैं तो इसके लिए आप स्वतः जिम्मेदार होंगे। हम इसके लिए उत्तरदायी नहीं होंगे।