सार

Narak chaturdashi 2024: दिवाली उत्सव के दूसरे दिन यानी धनतरेस के बाद नरक चतुर्दशी का पर्व मनाया जाता है। इस पर्व को लेकर कईं कथाएं प्रचलित हैं, जो इसे खास बनाती हैं। जानें क्या है नरक चतुर्दशी की कथा?

 

Narak chaturdashi Ki Katha: कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को नरक चतुर्दशी का पर्व मनाया जाता है। इसे रूप चतुर्दशी, काली चौदस और भी कईं नामों से जाना जाता है। इस बार इस पर्व को लेकर कन्फ्यूजन बना हुआ है। कुछ लोग ये पर्व 30 अक्टूबर, बुधवार को तो कुछ 31 अक्टूबर, गुरुवार को मनाएंगे। इस पर्व से नरकासुर राक्षस की एक कथा जुड़ी है। जानें क्या है ये रोचक कथा…

पृथ्वी का पुत्र था नरकासुर

पुराणों के अनुसार, जब भगवान विष्णु ने वराह अवतार लिया और पृथ्वी को पानी से बाहर निकाला तो उससे एक संतान हुई, इसका नाम नरकासुर था। नरकासुर राक्षसी प्रवृत्ति का था और पराक्रमी भी। नरकासुर ने ब्रह्मदेव को तपस्या कर प्रसन्न कर लिया और उनसे कईं वरदान भी प्राप्त कर लिए। नरकासुर का पास ये वरदान भी था कि उसकी मृत्यु सिर्फ उसकी माता के हाथों ही होगी।

सत्यभामा ने कैसे किया नरकासुर का वध

नरकासुर ने अपना एक अलग राज्य बनाया और वहां शासन करने लगा। नरकासुर जिस भी राजा को हराता , उसकी रानियों को कैद कर लेता था। इस तरह उसके पास 16 हजार से अधिक महिलाएं कैद थीं। द्वापरयुग में जब भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में ने जन्म लिया, तब उन्हें नरकासुर के अत्याचारों के बारे में पता चला। नरकासुर का वध करने के लिए वे अपने साथ पत्नी सत्यभामा को भी लेकर गए क्योंकि सत्यभामा पृथ्वी का अवतार थीं। नरकासुर से युद्ध करते समय श्रीकृष्ण कुछ देर के लिए बेहोश हो गए। सत्यभामा ने जब ये देखा को क्रोध में आकर नरकासुर का वध कर दिया। इस तरह नरकासुर अपनी ही माता के हाथों मारा गया।

16 हजार महिलाओं से विवाह किया श्रीकृष्ण ने

नरकासुर की मृत्यु के बाद श्रीकृष्ण ने उसकी कैद से 16 हजार स्त्रियों को मुक्त करवाया। उन स्त्रियों ने श्रीकृष्ण से कहा कि ’अब हमें कोई भी स्वीकार नहीं करेगा।’ उनकी बात सुनकर श्रीकृष्ण ने उन सभी से विवाह कर लिया और उन्हें समाज में अपनी पत्नी का स्थान दिया।


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