दशहरे पर रावण का पुतला जलाने की परंपरा क्यों है और पहली बार रावण का पुतला कब जलाया गया था? रांची और दिल्ली में रावण दहन की शुरुआत, विजयादशमी का महत्व और बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के बारे में जानें।

Ravan Dahan First Time: दशहरे के चलते इस समय पूरे देश में कुछ ऐसा ही माहौल देखने को मिल रहा है। दशहरा, जिसे विजयादशमी भी कहते हैं, हर साल आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। 2 अक्टूबर 2025 को पूरे देश में दशहरा धूमधाम से मनाया जाएगा और रावण दहन किया जाएगा। इस दिन असत्य पर सत्य की विजय के प्रतीक के रूप में देशभर में रावण का पुतला जलाया जाता है। दशहरे पर रावण दहन की परंपरा भारत में कई वर्षों से चली आ रही है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि पहली बार रावण दहन कब हुआ था? आइए जानते हैं।

रावण का पुतला पहली बार कब जलाया गया था?

रावण दहन कब हुआ था, इसका कोई सटीक उत्तर नहीं है। हालांकि, जानकारी के अनुसार, ऐसा माना जाता है कि पहला रावण दहन 1948 में रांची में हुआ था, जो उस समय बिहार का हिस्सा था। यह रावण दहन भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद पाकिस्तान से आए शरणार्थी परिवारों द्वारा किया गया था। ऐसा कहा जाता है कि रावण दहन की शुरुआत यहीं से हुई थी। रावण दहन का पहला आयोजन भारत की राजधानी दिल्ली में 17 अक्टूबर, 1953 को दिल्ली के रामलीला मैदान में हुआ था।

दशहरे को विजयादशमी क्यों कहा जाता है?

दशहरे को विजयादशमी इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन भगवान राम ने रावण का वध किया था, जो बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। इसके अलावा, इसी दिन देवी दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था, जिससे नवरात्रि के नौ दिनों का समापन हुआ और विजय का दसवां दिन मनाया गया। इसलिए, 'विजयादशमी' का अर्थ है 'विजय का दसवां दिन'।

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दशहरे पर रावण दहन क्यों किया जाता है?

भगवान राम ने दशहरे के दिन अहंकारी रावण का वध किया था। इसलिए, इस दिन को बुराई पर अच्छाई की विजय के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। रावण का पुतला जलाकर लोग यह संदेश देते हैं कि लालच, अहंकार, अन्याय या अत्याचार चाहे कितना भी बड़ा क्यों न हो, अंततः सत्य की ही जीत होती है। यही कारण है कि लोग दशहरे पर रावण का दहन करते हैं।

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