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Sawan 6th Somwar 2023: सावन सोमवार पर शिवरात्रि का दुर्लभ संयोग आज, जानें पूजा विधि, मंत्र, मुहूर्त और आरती
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अधिक मास का अंतिम सोमवार
इन दिनों सावन का अधिक मास चल रहा है। पंचांग के अनुसार, सावन अधिक मास का संयोग 19 साल बाद बना है, इसके पहले साल 2004 में सावन का अधिक मास आया है। इस बार सावन का अधिक मास 17 जुलाई से शुरू हुआ है, जो 16 अगस्त तक रहेगा। 14 अगस्त को सावन अधिक मास का अंतिम सोमवार रहेगा, जिसके चलते ये दिन खास हो गया है।
शिवरात्रि का दुर्लभ संयोग
14 अगस्त, सोमवार को सावन अधिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि रहेगी, जिसके चलते इस दिन मासिक शिवरात्रि का व्रत इस दिन किया जाएगा। वैसे तो अधिक मास हर तीन साल में आता है, लेकिन सावन का अधिक मास कई दशकों में एक बार आता है। सावन अधिक मास की मासिक शिवरात्रि का संयोग सोमवार को होना एक दुर्लभ संयोग है।
ये हैं शुभ मुहूर्त (Sawan 6th Somwar 2023 Shubh Yog)
- सुबह 06:06 से 07:42 तक
- सुबह 09:19 से 10:55 तक
- दोपहर 12:05 से 12:57 तक (अभिजीत मुहूर्त)
- दोपहर 02:07 से 03: 44 तक
- शाम 05:20 से 06:56 तक
सावन सोमवार शिव पूजा की विधि (Shiv Puja Vidhi on Sawan Somwar)
- 14 अगस्त, सोमवार की सुबह स्नान आदि करने के बाद ऊपर बताए गए किसी एक शुभ मुहूर्त में पूजा शुरू करें।
- सबसे पहले शिवलिंग पर जल, फिर दूध और पुन: एक बार शुद्ध जल अर्पित करें। शुद्ध घी का दीपक लगाएं।
- इसके बाद शिवजी को जनेऊ, शहद, बिल्वपत्र, भांग, धतूरा आदि चीजें चढ़ाएं। ऊं नम: शिवाय मंत्र का जाप करते रहें।
- सबसे अंत में भोग लगाएं और आरती करें। इस तरह शिवजी की पूजा से आपकी हर कामना पूरी हो सकती है।
शिवजी की आरती (Shivji Ki Aarti)
ॐ जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे।
हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे।
त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
अक्षमाला वनमाला मुण्डमाला धारी।
त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
कर के मध्य कमण्डलु चक्र त्रिशूलधारी।
सुखकारी दुखहारी जगपालन कारी॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
मधु-कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
लक्ष्मी व सावित्री पार्वती संगा।
पार्वती अर्द्धांगी, शिवलहरी गंगा॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
पर्वत सोहैं पार्वती, शंकर कैलासा।
भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
जटा में गंग बहत है, गल मुण्डन माला।
शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
काशी में विराजे विश्वनाथ, नन्दी ब्रह्मचारी।
नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोइ नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी, मनवान्छित फल पावे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
Disclaimer : इस आर्टिकल में जो भी जानकारी दी गई है, वो ज्योतिषियों, पंचांग, धर्म ग्रंथों और मान्यताओं पर आधारित हैं। इन जानकारियों को आप तक पहुंचाने का हम सिर्फ एक माध्यम हैं। यूजर्स से निवेदन है कि वो इन जानकारियों को सिर्फ सूचना ही मानें।