सार

Sheetala Puja Katha: इस बार शीतला सप्तमी का व्रत 21 मार्च, शुक्रवार को किया जाएगा और शीतला अष्टमी व्रत 22 मार्च, शनिवार को। इन दोनों दिन देवी शीतला की पूजा का विधान है। इस व्रत के दौरान कथा भी जरूर सुननी चाहिए।

 

Sheetala Mata Ki Katha: हर साल चैत्र कृष्ण पक्ष की सप्तमी और अष्टमी तिथि पर देवी शीतला की पूजा की जाती है। इस बार शीतला सप्तमी की पूजा 21 मार्च, शुक्रवार को और अष्टमी की पूजा 22 मार्च, शनिवार को की जाएगी। देवी शीतला से जुड़ी अनेक मान्यताएं हमारे समाज में प्रचलित हैं। देवी शीतला की पूजा के बाद उनकी कथा भी जरूर सुननी चाहिए, तभी व्रत-पूजा का पूरा फल मिलता है। आगे जानिए देवी शीतला की कथा…

ये है देवी शीतला की कथा (Story Of Sheetala Mata)

- धर्म ग्रंथों के अनुसार, किसी गांव में एक ब्राह्मण परिवार में माता-पिता के अलावा दो बेटे और 2 बहुएं रहती थीं। विवाह के काफी समय बाद भी ब्राह्मण की दोनों बहुओं को संतान नहीं हुई, तो उन्होंने शीतला सप्तमी का व्रत किया, जिसके प्रभाव से वे मां बन गईं।
- अगली बार जब दोबारा शीतला सप्तमी आई तो दोनों बहुओं ने सोचा ‘हम अगर ठंडा खाना खाएंगी तो हमारे बच्चे उसकी वजह से बीमार हो सकते हैं। ये सोचकर उन्होंने गर्म भोजन चुपके से खा लिया। इसके बाद जब दोनों बहुएं अपने बच्चों को उठाने गई तो देखा कि दोनों बच्चे मृत हैं।
- सास ने जब उनसे पूछा तो दोनों बहुओं ने उन्हें पूरी बात सच-सच बता दी। सास को समझ आ गया कि ऐसा शीतला माता के प्रकोप से हुआ है। क्रोधित होकर सास ने दोनों बहुओं को घर से निकाल दिया और कहा ‘जब तक दोनों बच्चे जिंदा न हो जाएं, तब तक घर मत लौटना।’
- दोनों बहुएं अपने मृत बच्चों को टोकरी में रख घर से निकल गई। रास्ते में उन्हें दो बहनें मिलीं, उनका नाम ओरी और शीतला था। दोनों बहुओं ने उनके सिर से जुएं निकाल दी, जिससे खुश होकर उन बहनों ने कहा ‘तुम दोनों ने हमारे मस्तक को शीतल किया है तुम्हारी हर इच्छा पूरी होगी।’
- दोनों बहुओं ने कहा ‘हम दोनों देवी शीतला को खोज रही हैं।’ तभी उन बहनों में से शीतला ने कहा ‘तुम दोनों ने शीतला सप्तमी पर गर्म भोजन किया था, जिसकी वजह से तुम्हारे बच्चों की ये हालत हुई है।’ दोनों बहुएं समझ गईं कि ये कोई और नहीं बल्कि देवी शीतला ही हैं।’
- दोनों बहुओं ने माता शीतला से माफी मांगी। खुश होकर शीतला माता ने उनके मृत पुत्रों को जिंदा कर दिया। दोनों बहुएं खुशी-खुशी अपने पुत्रों को लेकर गांव में आईं और पूरी बात अपनी सास को बताई। गांव वालों ने जब माता शीतला की महिमा सुनी तो उन्होंने वहां शीतला माता का मंदिर बनवा दिया और पूजा करने लगीं।


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