सार
Shiv Chaturdashi Januray 2023: भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए प्रत्येक महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को शिव चतुर्दशी व्रत किया जाता है। इसे मासिक शिवरात्रि भी कहते हैं। इस बार ये व्रत 20 जनवरी, शुक्रवार को किया जाएगा।
धर्म ग्रंथों के अनुसार, फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी तिथि पर भगवान शिव निराकार लिंग रूप में प्रकट हुए थे। इसलिए इस दिन महाशिवरात्रि का व्रत किया जाता है। प्रत्येक महीने की इसी तिथि पर मासिक शिवरात्रि का व्रत करने का विधान है। इसे शिव चतुर्दशी व्रत भी कहते हैं। इस बार माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि 20 जनवरी, शुक्रवार को है। इस दिन कई शुभ योग बन रहे हैं, जिसके चलते इसका महत्व और भी बढ़ गया है। आगे जानिए शिव चतुर्दशी व्रत की पूजा विधि, शुभ मुहूर्त आदि…
शिव चतुर्दशी के शुभ मुहूर्त (Shiv Chaturdashi Muhurat Januray 2023)
पंचांग के अनुसार, माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि 20 जनवरी, गुरुवार की सुबह 10 बजे शुरू होगी, जो रात अंत तक रहेगी। चूंकि शिव चतुर्दशी में रात्रि पूजा का विधान है, इसलिए ये व्रत 20 जनवरी को ही किया जाएगा। शुक्रवार को पहले मूल नक्षत्र होने से सुस्थिर और इसके बाद पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र होने से वर्धमान नाम के 2 शुभ योग इस दिन बनेंगे। इनके अलावा हर्षण नाम के 1 अन्य योग भी इस दिन रहेगा।
शिव चतुर्दशी की पूजा विधि (Shiv Chaturdashi Puja Vidhi)
- 20 जनवरी, शुक्रवार की सुबह उठकर सबसे पहले स्नान आदि काम करें। इसके बाद हाथ में जल और चावल लेकर शिव चतुर्दशी व्रत-पूजा का संकल्प लें।
- शिव चतुर्दशी व्रत की पूजा रात्रि में होती है, इसलिए दिन में उपवास रखें और मन में ऊं नम: शिवाय मंत्र का जाप करते रहें। गलत विचार मन में न लाएं।
- रात में पुन: एक बार स्नान करने के बाद शिवजी की पूजा करें। शुद्ध घी का दीपक लगाएं और शिवजी को चंदन का तिलक लगाएं।
- इसके बाद फूल माला, बिल्व पत्र आंकड़े के फूल, धतूरा, भांग आदि चीजें एक-एक करके चढ़ाते रहें। ऊं नम: शिवाय मंत्र का जाप करते रहें।
- भगवान शिव को अपनी इच्छा अनुासर शुद्धता पूर्वक बनाया भोग लगाएं और आरती करें। पूरी रात जागरण करें और अगली सुबह व्रत का पारणा करें।
भगवान शिव की आरती (Shiv ji Ki aarti)
जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा ॥
एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे ।
त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी।
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे ।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी ।
नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
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