Vighnaraj Sankashti Chaturthi Ki Katha: 10 सितंबर, बुधवार को विघ्नराज संकष्टी चतुर्थी का व्रत किया जाएगा। इस व्रत में भगवान श्रीगणेश की पूजा की जाती है। बिना कथा सुने इस व्रत का पूरा फल नहीं मिलता।
Vighnaraj Sankashti Chaturthi 2025 Kab Hai: आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को विघ्नराज संकष्टी चतुर्थी कहते हैं। इस चतुर्थी का महत्व अनेक धर्म ग्रंथों में बताया गया है। इस व्रत में भगवान श्रीगणेश के विघ्नराज स्वरूप की पूज की जाती है। बिन कथा सुने इस व्रत का पूरा फल नहीं मिलता। इस व्रत की कथा स्वयं भगवान श्रीगणेश ने देवी पार्वती को सुनाई थी। आगे आप भी पढ़ें विघ्नराज संकष्टी चतुर्थी की कथा…
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विघ्नराज संकष्टी चतुर्थी व्रत की कथा
एक बार माता पार्वती ने श्रीगणेश से आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी की कथा पूछी तो उन्होंने बताया कि ‘द्वापर युग में बाणासुर नाम का एक पराक्रमी राक्षस था। उसकी पुत्री का नाम उषा था। एक दिन उषा ने रात को सपने में एक युवक को देखा। उषा उस युवक से प्रेम करने लगी और उसने ये बात अपनी सहेली चित्रलेखा को बताई।
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चित्रलेखा ने उषा के कहे अनुसार एक चित्र बनाया, जो बिल्कुल सपने में देखे युवक जैसा था। चित्र देखकर उषा ने अपनी सहेली चित्रलेखा से कहा कि ‘इस युवक को कहीं से भी ढूंढकर मेरे पास लाओ, नहीं तो मैं अपने प्राण त्याग दूंगी।’
सहेली की बात सुनकर चित्रलेखा उस युवक को ढूंढते हुए द्वारिका पहुंची। वो युवक और कोई नहीं बल्कि भगवान श्रीकृष्ण का पोता अनिरुद्ध था। चित्रलेखा ने अपनी माया से अनिरुद्ध का अपहरण कर लिया और अपने साथ बाणासुर के महल में ले गई।
अनिरुद्ध के अपहरण की बात पूरी द्वारिका में फैल गई पर ये किसी को पता नहीं चला कि ये कार्य किसने किया है। अपने पोते के वियोग में देवी रुक्मिणी व्याकुल हो गई और श्रीकृष्ण को अनिरुद्ध को ढूंढकर लाने को कहने लगी। तब एक दिन जब श्रीकृष्ण ने अपनी सभा में बैठे थे, वहां लोमश ऋषि आए।
श्रीकृष्ण ने लोमश ऋषि को पूरी बात बताई। ऋषि ने श्रीकृष्ण को बताया कि ‘तुम्हारे पौत्र का अपहरण बाणासुर की पुत्री उषा ने करवाया है। आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी का व्रत करने से तुम्हारी पौत्र जरूर वापस आ जाएगा।’ ऐसा कहकर ऋषि लोमश चले गए।
लोमश ऋषि के कहने पर श्रीकृष्ण ने विधि-विधान से विघ्नराज संकष्टी चतुर्थी का व्रत किया और बाणासुर से युद्ध करने पहुंच गए। इस युद्ध में श्रीकृष्ण की विजय हुई और बाणासुर माना गया। बाद में श्रीकृष्ण ने अपने पोते अनिरुद्ध का विवाह बाणासुर की पुत्री उषा से करवा दिया।
इस तरह विघ्नराज संकष्टी चतुर्थी का व्रत करने से श्रीकृष्ण ने बाणासुर पर विजय पाई और उन्हें उनका पोता भी वापस मिल गया।
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इस आर्टिकल में जो जानकारी है, वो धर्म ग्रंथों, विद्वानों और ज्योतिषियों से ली गईं हैं। हम सिर्फ इस जानकारी को आप तक पहुंचाने का एक माध्यम हैं। यूजर्स इन जानकारियों को सिर्फ सूचना ही मानें।
