सार

Govardhan Puja 2023: उत्तर प्रदेश के बज्र मंडल में स्थित गोवर्धन पर्वत को साक्षात श्रीकृष्ण का ही स्वरूप माना जाता है। प्रतिदिन हजारों लोग यहां दर्शन और परिक्रमा करने आते हैं। मान्यता है कि गोवर्धन पर्वत की ऊंचाई धीरे-धीरे कम हो रही है।

 

Kyo Ghat Rahi Hai Govardhan Parvat Ki Uunchai: वैसे तो हमारे देश में अनेक पूजनीय पर्वत हैं, लेकिन इन सभी में गोवर्धन पर्वत का महत्व सबसे अधिक माना जाता है। हर साल दिवाली के दूसरे दिन पूरे देश में गोवर्धन पूजा का पर्व मनाया जाता है। इस बार ये उत्सव 14 नवंबर, मंगलवार को है। गोवर्धन पर्वत से जुड़ी एक मान्यता ये है कि कभी ये पर्वत हजारों फीट ऊंचा था, लेकिन धीरे-धीरे इसकी ऊंचाई घट रही है। इससे जुड़ी एक कथा भी प्रचलित है जो इस प्रकार है…

गोवर्धन पर्वत को किसने दिया था श्राप?
प्रचलित कथा के अनुसार, एक बार जब ऋषि पुलस्त्य गिरिराज पर्वत के निकट से जा रहे है थे तो उनकी नजर गोवर्धन पर्वत पर पड़ी। इसकी सुंदरता देखकर वे बड़े प्रसन्न हुए। ऋषि पुलस्त्य ने द्रोणांचल से कहा कि ‘आप अपना ये पुत्र गोवर्धन मुझे दे दीजिए ताकि मैं इसे काशी में स्थापित कर सकूं।’
द्रोणांचल पर्वत ने पहले तो इंकार किया लेकिन बाद में इसके लिए हामी भर दी और गोवर्धन भी मान गए लेकिन उन्होंने एक शर्त रखी कि जहां भी आप मुझे एक बार रख देंगे, मैं वहीं स्थापित हो जाऊंगा। ऋषि पुलस्त्य गोवर्धन पर्वत की ये बात मान ली और उसे हथेली पर उठाकर काशी की ओर चल दिए।
रास्ते में जब बृजधाम आया तो गोवर्धन पर्वत को याद आया कि द्वापर युग में यहीं पर भगवान श्रीकृष्ण बाललीला करेंगे। ये सोचकर उन्होंने वे अपना भार बढ़ाने लगे। जिससे कारण ऋषि पुलस्त्य ने उसी स्थान पर रख दिया। इस तरह गोवर्धन पर्वत उसी स्थान पर स्थापित हो गए। चाहकर भी ऋषि पुलस्त्य उसे उठा नहीं पाए।
क्रोध में आकर ऋषि पुलस्त्य ने गोवर्धन को श्राप दे दिया कि तुम्हारा विशालकाय कद धीरे-धीरे कम होता रहेगा। कहा जाता है कि गोवर्धन पर्वत की ऊंचाई कभी 30 हज़ार मीटर हुआ करती थी, लेकिन घटते-घटते इसकी ऊंचाई केवल 25 -30 मीटर ही बची है। कलयुग के अंत तक गोवर्धन पर्वत बिल्कुल नीचे आ जाएगा।


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