सार

मंगलवार, 29 अक्टूबर को भाई दूज है। इस दिन यमराज की विशेष पूजा की जाती है। अगर संभव हो सके तो इस दिन यमराज के मंदिर भी जाना चाहिए।

उज्जैन. देशभर में यमराज के कई मंदिर हैं, लेकिन यमराज का एक अनोखा मंदिर हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले में भरमौर नाम की जगह पर स्थित है। ये मंदिर एक घर की तरह दिखाई देता है। जानिए यमराज के मंदिर से जुड़ी खास बातें...

इस मंदिर में जाने से डरते हैं लोग
हिंदू ग्रंथों के अनुसार, मनुष्यों के क्रमों को विधाता लिखते हैं, चित्रगुप्त बांचते हैं, मृत्यु के बाद यमदूत मनुष्य की आत्मा को पकड़कर लाते हैं और यमराज सजा देते हैं। इस मंदिर में अंदर काफी अंधेरा रहता है और ये देखने में भी डरावना लगता है। इसीलिए बहुत से लोग मंदिर के अंदर जाने से भी डरते हैं और बाहर से प्रणाम करके चले आते हैं।

खाली कमरे में विराजमान हैं यमराज
इस जगह को लेकर मान्यता है इसी जगह यमराज व्यक्ति के कर्मों का फैसला करते हैं। यह मंदिर देखने में एक घर की तरह दिखाई देता है, जहां एक खाली कमरा मौजूद है। मान्यता है इस कमरे में ही भगवान यमराज विराजमान हैं। यहां पर एक और कमरा है, जिसे चित्रगुप्त का कक्ष कहा जाता है।

यहां यमराज सुनाते हैं अपना फैसला
प्रचलित मान्यता के अनुसार जब किसी की मृत्यु होती है तब यमराज के दूत उस व्यक्ति की आत्मा को पकड़कर सबसे पहले इस मंदिर में चित्रगुप्त के सामने प्रस्तुत करते हैं। चित्रगुप्त उसके कर्मों का ब्योरा सुनाते हैं। इसके बाद चित्रगुप्त के सामने के कक्ष में आत्मा को ले जाया जाता है। इस कमरे को यमराज की कचहरी कहा जाता है। यहां यमराज कर्मों के आधार पर अपना फैसला सुनाते हैं।

मंदिर में है 4 अदृश्य दरवाजे
माना जाता है कि मंदिर में चार अदृश्य दरवाजे हैं जो सोना, चांदी, तांबा और लोहे के बने हैं। यमराज का फैसला आने के बाद यमदूत आत्मा को कर्मों के अनुसार इन्हीं दरवाजों से स्वर्ग या नर्क में ले जाते हैं। गरुड़ पुराण में भी यमराज के दरबार में चार दिशाओं में चार दरवाजों का जिक्र मिलता है। इसके अनुसार अच्छे कर्म करने वाले लोग सोने, चांदी के दरवाजे से जाते हैं। सामान्य कर्म करने वाले तांबे के दरवाजे से, वहीं ज्यादा पाप करने वालों की आत्मा को लोहे के दरवाजे से लेकर जाते हैं, जो नर्क के लिए जाता है।

कैसे पहुंचे?
सड़क मार्ग - हिमाचल पथ परिवहन निगम की बसें पूरे प्रदेश में मुख्य बस अड्डो शिमला, सोलन, काँगड़ा, धर्मशाला और पठानकोट और आसपास के राज्यों दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़ से चलती हैं । इसके अलावा प्राइवेट बसें भी मिलती हैं।

ट्रेन मार्ग - पठानकोट, चंबा शहर से 120 किलोमीटर दूर है। यहां से आप आसानी से मंदिर तक पहुंच सकते हैं।

हवाई मार्ग - पठानकोट हवाई अड्‌डा है। इसकं अलावा कांगड़ा (172 किमी) और अमृतसर (220 किलोमीटर) में भी हवाई अड्‌डा है।