सार

Govatsa Dwadashi 2022: धर्म ग्रंथों के अनुसार, भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को गोवत्स द्वादशी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं अपने बच्चों की खुशहाली के लिए व्रत करती हैं। इस बार ये व्रत 23 अगस्त, मंगलवार को है।
 

उज्जैन. हिंदू धर्म में बच्चों की लंबी उम्र और अच्छी सेहत के लिए माताएं कई व्रत करती हैं। ऐसा ही एक व्रत गोवत्स द्वादशी (Govatsa Dwadashi 2022) का। इसे बछबारस (Bachbaras 2022) भी कहते हैं। ये व्रत भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष द्वादशी तिथि को किया जाता है। इस बार ये व्रत 23 अगस्त, मंगलवार को किया जाएगा। धर्म ग्रंथों में इस व्रत का विशेष महत्व बताया गया है। इस व्रत में महिलाएं गाय व बछड़ों की पूजा करती हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से संतान के जीवन में खुशहाली बनी रहती है। आगे जानिए गोवत्स द्वादशी व्रत के शुभ मुहूर्त, पूजा विधि व अन्य खास बातें…

गोवत्स द्वादशी के शुभ मुहूर्त (Govatsa Dwadashi 2022 Shubh Muhurat)
पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि 23 अगस्त, मंगलवार की सुबह 06:07 से शुरू होगी, जो 24 अगस्त की सुबह 08:30 तक रहेगी। 23 अगस्त को पूरे दिन द्वादशी तिथि होने ये पर्व इसी दिन मनाया जाएगा। इस दिन चर, सुस्थिर और सिद्धि नाम के 3 शुभ योग भी बन रहे हैं, जिसके चलते इस पर्व का महत्व और भी बढ़ गया है।

इस विधि से करें पूजा (Govatsa Dwadashi 2022 Puja Vidhi)
- गोवत्स द्वादशी की सुबह स्नान आदि करने के बाद महिलाएं व्रत-पूजा का संकल्प लें।
इसके बाद गाय (दूध देने वाली) को उसके बछडे़ सहित स्नान कराएं। दोनों को नए वस्त्र ओढ़ाएं।
- इसके बाद गाय और बछड़े को फूलों की माला पहनाएं। चंदन का तिलक लगाएं। तांबे के बर्तन में चावल, तिल, जल, इत्र तथा फूलों को मिला लें। अब यह मंत्र बोलते हुए गाय के पैर धोएं-
क्षीरोदार्णवसम्भूते सुरासुरनमस्कृते।
सर्वदेवमये मातर्गृहाणार्घ्य नमो नम:॥
- इस प्रकार पूजा करने के बाद गाय के पैरों में लगी मिट्टी से अपने माथे पर तिलक लगाएं। गाय और बछ़़ड़े को अपनी इच्छा के अनुसार, भोजन करवाएं।  गोमाता की आरती करें। 
- पूजा के बाद बछ बारस की कथा सुनें। दिनभर व्रत रखकर रात्रि में भोजन करें।  इस दिन गाय के दूध, दही, चावल और गेहूं से बनी चीजें खाने की मनाही है। मक्का, बाजरा और चने से बनी हुई चीजें खा सकते हैं। 
- गाय और बछड़ों की पूजा करने से सभी देवताओं की पूजा का फल मिलता है क्योंकि गाय में सभी देवताओं का वास माना गया है। मान्यता है कि ऐसा करने से संतान सुख मिलता है और घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है।

ये है गोवत्स द्वादशी की कथा (Govatsa Dwadashi Katha)
- एक बार जब गोवत्स द्वादशी का पर्व आया तो इंद्रलोक से इंद्राणी कई अप्सराओं सहित गायों की पूजा के लिए धरती पर आई। उन्होंने देखा एक गाय अकेली घास चर रही है। इंद्राणी पूजा की इच्छा से उसके पास गई।
-  जैसे ही इंद्राणी पूजा करने लगी, वैसे ही वहां से जाने लगी। तब इंद्राणी ने गाय से विनती की और बोला “हमारी पूजा स्वीकार करें।”  तब गाय ने कहा “मेरे साथ मेरे बछड़े की भी पूजा करो।”
- जब इंद्राणी ने मिट्टी से गाय का बछड़ा बनाया और उसमें प्राण डाल दिए। इसके बाद इंद्राणी ने अप्सराओं सहित गाय और बछड़ों की पूजा की। जब गाय घर पहुंचीं तो ग्वालन ने उससे पूछा ”ये बछड़ा किसका है?”
- गाय ने पूरी बात उसे सच-सच बता दी और ये भी कहा “अगली गोवत्स द्वादशी पर मैं तुम्हारे लिए भी संतान लेकर आऊँगी।” अगले साल जब ये व्रत आया तो गाय ने इंद्राणी से ग्वालन के लिए भी पुत्र मांगा।
- इंद्राणी ने मिट्टी का एक पुतला बनाया और उसमें प्राण डाल दिए। इसके बाद एक पालने को गाय के सींगों से बांधकर बच्चे को उसमें डाल दिया। गाय के साथ बच्चे को देख ग्वालन ये बात पूरे गांव वालों को बता दी।
- तभी से गोवत्स द्वादशी पर गाय और बछड़ों की पूजा की परंपरा चली आ रही है। मान्यता के अनुसार ऐसा करने से संतान सुख मिलता है।


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