सार

Utpanna Ekadashi 2022: हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व है। पंचांग के अनुसार, एक महीने में 2 एकादशी तिथि आती है। इस तरह साल में कुल 24 एकादशी का योग बनता है। इन सभी एकादशियों का अलग-अलग महत्व और नाम है।

उज्जैन. धर्म ग्रंथों के अनुसार, अगहन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को उत्पन्ना एकादशी (Utpanna Ekadashi 2022) कहते हैं। इस बार ये तिथि 20 नवंबर, रविवार को है। इस तिथि का महत्व कई धर्म ग्रंथों में बताया गया है। इसके अनुसार, हजारों कन्यादान और लाखों गौदान से जो पुण्य प्राप्त होता है, वही फल उत्पन्ना एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा और व्रत से प्राप्त हो जाता है। आगे जानिए इस व्रत की पूजा विधि, शुभ मुहूर्त, आरती व अन्य खास बातें…

ये हैं उत्पन्ना एकादशी के शुभ मुहूर्त (Utpanna Ekadashi 2022 Shubh Muhurat)
पंचांग के अनुसार, अगहन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 19 नवंबर, शनिवार की सुबह 10:30 से शुरू होकर 20 नवंबर, रविवार की सुबह 10:41 तक रहेगी। चूंकि एकादशी तिथि का सूर्योदय 20 नवंबर को होगा, इसलिए इसी दिन ये व्रत किया जाएगा। इस दिन मानस, पद्म, प्रीति और आयुष्मान नाम के 4 शुभ योग दिन भर रहेंगे। इन शुभ योगों के चलते इस व्रत का महत्व और भी बढ़ गया है।  
 
इस विधि से करें व्रत और पूजा (Utpanna Ekadashi Puja Vidhi)

- उत्पन्ना एकादशी से एक दिन पहले यानी 19 नवंबर, शनिवार की रात को सात्विक भोजन करें और ब्रह्मचर्य का पालन करें। व्रत की सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद व्रत-पूजा का संकल्प लें।
- इसके बाद किसी साफ स्थान पर भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें और कुंकुम से तिलक लगाएं व चावल अर्पित करें। इसके बाद हार-फूल चढ़ाएं। गाय के शुद्ध घी का दीपक जलाएं।
- इसके बाद अबीर, रोली, चंदन, हल्दी आदि चीजें एक-एक करके चढ़ाते रहें। धूप बत्ती जलाएं। अंत में भोग लगाएं और आरती करें। बाद में प्रसाद सभी लोगों को बांट दें। संभव हो तो निर्जला व्रत रखें।
- रात को श्री हरि के नाम से दीपदान करें और आरती एवं भजन गाते हुए रात्रि जागरण करें। जो व्यक्ति इस प्रकार उत्पन्ना एकादशी का व्रत करता है उसे हजारों यज्ञों के बराबर पुण्य प्राप्त होता है।


भगवान विष्णु की आरती (Lord Vishnu Aarti)
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।
भक्तजनों के संकट क्षण में दूर करे॥
जो ध्यावै फल पावै, दुख बिनसे मन का।
सुख-संपत्ति घर आवै, कष्ट मिटे तन का॥ ॐ जय...॥
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी।
तुम बिन और न दूजा, आस करूं जिसकी॥ ॐ जय...॥
तुम पूरन परमात्मा, तुम अंतरयामी॥
पारब्रह्म परेमश्वर, तुम सबके स्वामी॥ ॐ जय...॥
तुम करुणा के सागर तुम पालनकर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥ ॐ जय...॥
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूं दयामय! तुमको मैं कुमति॥ ॐ जय...॥
दीनबंधु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥ ॐ जय...॥
विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा॥ ॐ जय...॥
तन-मन-धन और संपत्ति, सब कुछ है तेरा।
तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा॥ ॐ जय...॥
जगदीश्वरजी की आरती जो कोई नर गावे।
कहत शिवानंद स्वामी, मनवांछित फल पावे॥ ॐ जय...॥ 


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