बिहार की राजनीति में कभी राजपूत नेताओं का वर्चस्व था। आनंद मोहन और प्रभुनाथ सिंह जैसे 5 प्रमुख चेहरों का प्रभाव आज भी कायम है। यह समुदाय अब भी राज्य की राजनीति में एक महत्वपूर्ण संतुलनकारी शक्ति बना हुआ है।

पटनाः बिहार की राजनीति में एक दौर ऐसा था जब सत्ता की हर गली, हर गलियारा और हर कुर्सी पर राजपूत नेताओं की पकड़ सबसे मजबूत हुआ करती थी। लालू-राबड़ी युग के पहले तक बिहार की सत्ता का समीकरण इस समुदाय के बिना बनता नहीं था। मुख्यमंत्री से लेकर जिला स्तर तक, इन नेताओं की न सिर्फ पकड़ थी बल्कि जनता के बीच करिश्मा भी बेमिसाल था। वक्त बदला, गठबंधन बदले, राजनीति की हवा भी बदली लेकिन इन पांच राजपूत चेहरों का असर आज भी बिहार की सियासत में महसूस किया जा सकता है।

‘शेर-ए-बिहार’ आनंद मोहन सिंह

बिहार की राजनीति में जब “शेर-ए-बिहार” नाम लिया जाता है, तो सबसे पहले याद आते हैं आनंद मोहन सिंह। समाजवादी विचारधारा से निकले आनंद मोहन ने 1990 के दशक में अपनी अलग राजनीतिक पहचान बनाई। उन्होंने समता पार्टी से शुरुआत की और बाद में अपनी पार्टी, बिहार पीपुल्स पार्टी बनाई। उनकी राजनीति आक्रामक थी, जनाधार जबरदस्त, और भाषणों में आग। लेकिन 1994 में डीएम जी. कृष्णैया की हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा के बाद उनका राजनीतिक ग्राफ थम गया। फिर भी, 2023 में जेल से रिहाई के बाद जब वे निकले, तो उनके स्वागत में उमड़ी भीड़ ने साबित कर दिया कि “शेर” अब भी ज़िंदा है। अब 2025 के विधानसभा चुनाव से पहले, आनंद मोहन का शोर फिर तेज है।

प्रभुनाथ सिंह...बाहुबली छवि और अडिग असर

सारण जिले के महाराजा कहे जाने वाले प्रभुनाथ सिंह बिहार की राजनीति के सबसे विवादास्पद, फिर भी प्रभावशाली राजपूत नेताओं में से एक हैं। उन्होंने जनता दल, आरजेडी और जेडीयू सभी में अपनी भूमिका निभाई। एक वक्त था जब वे छपरा की सियासत के “किंगमेकर” कहे जाते थे। उनकी रैलियों में भीड़ उमड़ती थी, और उनकी बात सत्ता तक गूंजती थी। वर्तमान में वे हत्या के एक मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे हैं, लेकिन उनका राजनीतिक प्रभाव आज भी उनके परिवार और समर्थकों के ज़रिए कायम है। “प्रभुनाथ सिंह” आज भी बिहार में उस दौर की याद दिलाते हैं जब “बाहुबल और जनाधार” साथ-साथ चलते थे।

अनुशासन, रणनीति और संगठन के माहिर खिलाड़ी जगदानंद सिंह

अगर बात लालू यादव के सबसे भरोसेमंद साथियों की हो, तो जगदानंद सिंह का नाम ऊपर आता है। बक्सर जिले से आने वाले यह नेता न सिर्फ जमीनी हैं, बल्कि रणनीतिक भी। उन्होंने आरजेडी के प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर पार्टी को संगठित रखने में अहम भूमिका निभाई है। तेजस्वी यादव को मजबूत करने और पार्टी को “परिवारवाद से आगे” ले जाने की कोशिश में उनका योगदान बड़ा माना जाता है। राजनीति में वे शांत चेहरा हैं, लेकिन निर्णयों में बेहद सख्त। बिहार के राजपूत नेताओं में वे एक ऐसे चेहरे हैं जो “आंदोलन से प्रशासन तक” की यात्रा का उदाहरण हैं।

BJP का मॉडर्न चेहरा और ‘टेक्नोक्रेट’ नेता राजीव प्रताप रूडी

छपरा के रहने वाले राजीव प्रताप रूडी भाजपा के उन नेताओं में हैं जो पढ़ाई, तमीज़ और पॉलिश्ड पॉलिटिक्स के लिए जाने जाते हैं। पायलट से लेकर प्रोफेसर तक की पहचान रखने वाले रूडी 2000 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में मंत्री बने थे और बाद में मोदी सरकार में स्किल डेवलपमेंट मंत्रालय संभाला। उनका भाषण स्टाइल, अंग्रेज़ी और दृष्टिकोण उन्हें बाकी राजनेताओं से अलग करता है। आज भी वे भाजपा के सबसे “स्मार्ट राजपूत चेहरे” माने जाते हैं जिनसे न सिर्फ दिल्ली बल्कि पटना तक हर पार्टी तालमेल बनाना चाहती है।

बिंदास बयानों वाले सियासी किसान नरेंद्र सिंह

नरेंद्र सिंह का नाम बिहार की राजनीति में बेबाक और ईमानदार नेताओं में गिना जाता है। उन्होंने जेडीयू, आरजेडी दोनों के साथ काम किया, लेकिन कभी भी सत्ता की चाटुकारिता नहीं की। वे बिहार के कृषि मंत्री भी रहे और किसानों की समस्याओं पर खुलकर सरकार को घेरा। उनके बेटे सुमित सिंह अब खुद राजनीति में सक्रिय हैं। नरेंद्र सिंह उस दौर के नेता रहे जब “जातीय जनाधार” और “व्यक्तिगत ईमानदारी” साथ-साथ चलते थे। उनकी पहचान रही “सीधे बोलो, चाहे किसी को अच्छा न लगे।”

कब बोलती थी राजपूतों की तूती?

आजादी के बाद से लेकर 1990 के दशक तक, बिहार में राजपूत नेताओं की सत्ता पर गहरी पकड़ थी। राज्य के पहले मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह से लेकर हरिहर सिंह और चंद्रशेखर सिंह तक, राजपूत नेताओं ने बिहार की सत्ता संभाली। 2020 के विधानसभा चुनाव में भी 28 राजपूत विधायक जीते थे, जिनमें से सबसे ज्यादा 17 भाजपा से थे। यानी, आज भी यह समुदाय राजनीति की बैलेंसिंग पावर बना हुआ है।