उपेंद्र कुशवाहा ने बिहार को 60 लोकसभा सीटें दिलाने की मांग उठाई है। 5 सितंबर को पटना के मिलर हाईस्कूल मैदान में होने वाली रैली को लेकर सियासी हलचल तेज है। कुशवाहा का कहना है कि आबादी के हिसाब से बिहार को 40 नहीं बल्कि 60 सीटें मिलनी चाहिए। 

बिहार विधानसभा चुनाव की सियासत में पहले ही हलचल शुरू हो चुकी है। इसी बीच राष्ट्रीय लोक मोर्चा (रालोमो) के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने बिहार के संवैधानिक अधिकार और लोकसभा परिसीमन को लेकर संघर्ष की गूंज तेज़ कर दी है। वे 5 सितंबर को पटना के मिलर हाईस्कूल मैदान में बड़ी रैली का आयोजन कर बिहार को उसकी 60 लोकसभा सीटें दिलाने की मांग को बुलंद करेंगे।

मुद्दा क्या है?

उपेंद्र कुशवाहा का कहना है कि बिहार को लंबे समय से उसकी सही हिस्सेदारी नहीं मिल पा रही है। पिछले 50 वर्षों से देश में परिसीमन पर कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए, जिसका नतीजा यह है कि बिहार की लोकसभा सीटों की संख्या 40 पर स्थिर बनी हुई है, जबकि वास्तविक आबादी के अनुसार इसे कम से कम 60 सीटें मिलनी चाहिए थीं। कुशवाहा ने बताया कि यह स्पष्ट अन्याय है क्योंकि बिहार अब भी 40 सीटों के आधार पर ही केन्द्र से विकास और संसाधनों का वितरण प्राप्त करता है, जबकि आबादी की बढ़ती संख्या के हिसाब से इसका अधिकार आधिकारीक तौर पर 60 सीटें होनी चाहिए थीं।

क्यों खास है 5 सितंबर?

यह रैली सिर्फ संख्या बढ़ाने का मामला नहीं है। यह दिन बिहार के सामाजिक न्याय के प्रतीक के रूप में भी महत्वपूर्ण है। यह दिन दलित नेता शहीद जगदेव महतो की जयंती है, जिन्होंने दलितों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया। साथ ही यह भारत के दूसरे राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्मदिन है, जो शिक्षा क्षेत्र में अहम योगदानकार थे। इसलिए रैली को संवैधानिक अधिकार, परिसीमन सुधार, और शिक्षा के मुद्दों को एक साथ जोड़ा गया है।

राजनीतिक अहमियत

राजनीतिक गलियारों में इस रैली को कुशवाहा की सियासी वापसी के रूप में देखा जा रहा है। पिछले चुनावों में कुशवाहा समाज की भूमिका महत्वपूर्ण रही है, और वे इस रैली के माध्यम से अपने वोट बैंक को एकजुट करने और अपनी राजनीतिक दीर्घायु को मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि उपेंद्र कुशवाहा खुद चुनावी राजनीति से इसे जोड़ने से इनकार करते हैं। उनका कहना है कि यह आंदोलन बिहार के हक की लड़ाई है, जो चुनाव से पहले से जारी है और इसका उद्देश्य केवल संवैधानिक अधिकारों की बहाली है।

आगे क्या?

5 सितंबर को पटना में होने वाली इस रैली में बिहार के सभी जिला स्तर के कार्यकर्ता पहुंचेंगे। यह रैली बिहार की सियासी बिसात पर गहरा प्रभाव डालने वाली मानी जा रही है। माना जा रहा है कि अगर रैली सफल रही और इसमें बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए, तो यह बिहार की सियासत में उपेंद्र कुशवाहा और उनके पार्टी के लिए एक नया पेज खोल सकती है।