बिहार चुनाव से पहले महागठबंधन में सीट बंटवारे पर RJD और कांग्रेस में खींचतान है। RJD "जिताऊ उम्मीदवार" और स्ट्राइक रेट के आधार पर सीटें देना चाहती है। वहीं कांग्रेस कुछ और ही तर्क दे रही है। 

पटनाः बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की आहट तेज़ होते ही महागठबंधन के भीतर सीट बंटवारे की गुत्थी पेचीदा होती जा रही है। आरजेडी और कांग्रेस के बीच तनातनी अब खुले तौर पर सामने आ चुकी है। तेजस्वी यादव की पार्टी ने साफ शब्दों में कह दिया है कि सीट बंटवारे का फ़ॉर्मूला केवल “जिताऊ उम्मीदवार और स्ट्राइक रेट” पर आधारित होगा। इसका मतलब यह है कि कांग्रेस को इस बार पिछली बार से भी कम सीटों पर समझौता करना पड़ सकता है।

कांग्रेस पर आरजेडी का वार

पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 70 सीटों पर दांव लगाया था लेकिन जीत सिर्फ 19 तक सिमट गई। यही वजह है कि आरजेडी अब कांग्रेस के प्रदर्शन पर सवाल खड़े कर रही है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि कमजोर सीटों पर दोबारा कांग्रेस को टिकट देने का कोई औचित्य नहीं है। आरजेडी का तर्क है कि गठबंधन की नैया उन दलों के भरोसे चलनी चाहिए, जिनकी जीतने की संभावना अधिक है।

कांग्रेस का पलटवार

कांग्रेस इस आरोप को मानने को तैयार नहीं। पार्टी नेताओं का कहना है कि 70 में से कम से कम 27 सीटों पर कांग्रेस का प्रदर्शन मजबूत रहा था। इनमें 8 सीटें ऐसी थीं, जहां बेहद मामूली अंतर से हार हुई। कांग्रेस का मानना है कि अगर उन सीटों को फिर से मौका मिले, तो इस बार जीत दर्ज की जा सकती है। साथ ही, राहुल गांधी की हालिया “वोटर अधिकार यात्रा” से पार्टी का हौसला भी बढ़ा है। कांग्रेस का दावा है कि इस यात्रा के बाद कार्यकर्ताओं में नया उत्साह दिख रहा है और इसका असर सीधे चुनावी नतीजों पर पड़ेगा।

नई पार्टियों से समीकरण उलझे

सीट बंटवारे की जटिलता इस बार और बढ़ गई है क्योंकि महागठबंधन में नए खिलाड़ी भी जुड़ चुके हैं। मुकेश सहनी की वीआईपी पार्टी, पशुपति पारस का दल और हेमंत सोरेन की झारखंड मुक्ति मोर्चा ने समीकरण और पेचीदा बना दिए हैं। आरजेडी इन दलों को भी हिस्सेदारी देने के मूड में है, जिसके चलते कांग्रेस की सीटें और कम हो सकती हैं। सूत्र बताते हैं कि आरजेडी कांग्रेस को 30-35 से ज्यादा सीटें देने को तैयार नहीं है।

तेजस्वी यादव का रुख सख्त

आरजेडी नेता और विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव का साफ संदेश है कि राजनीति में भावनाओं से ज्यादा गणित काम करता है। उन्होंने कहा है कि गठबंधन को तभी मजबूती मिलेगी जब हर दल अपनी स्ट्राइक रेट के हिसाब से सीटें लड़े। तेजस्वी का यह भी मानना है कि कांग्रेस को उतनी ही सीटें दी जानी चाहिए, जितनी पर उसके जीतने की संभावना अधिक है।

कांग्रेस की सियासी मजबूरी

हालांकि, कांग्रेस के सामने भी मुश्किल है। एक ओर उसे महागठबंधन में बने रहकर अपनी उपस्थिति दर्ज करानी है, वहीं दूसरी ओर पार्टी का राजनीतिक अस्तित्व दांव पर है। कांग्रेस नहीं चाहती कि उसकी सीटें और घटें, क्योंकि इसका सीधा असर कार्यकर्ताओं के मनोबल पर पड़ेगा। यही कारण है कि पार्टी लगातार आरजेडी पर दबाव बना रही है कि उसे सम्मानजनक सीटें दी जाएं।

चुनाव से पहले गठबंधन की असली परीक्षा

महागठबंधन के भीतर सीट बंटवारे की यह खींचतान चुनाव से पहले उसकी एकजुटता की असली परीक्षा है। आरजेडी अपनी “बड़ी पार्टी” वाली हैसियत के दम पर कांग्रेस को सीमित करना चाहती है, जबकि कांग्रेस अपने पुराने जनाधार और राहुल गांधी की सक्रियता को हथियार बना रही है। अगर यह विवाद समय रहते नहीं सुलझा, तो विपक्षी गठबंधन के लिए यह चुनावी मैदान में कमजोर कड़ी साबित हो सकता है।