2005 में नीतीश कुमार की ‘न्याय यात्रा’ ने बिहार की राजनीति की दिशा बदल दी। चंपारण से शुरू हुई इस यात्रा ने जंगलराज के खिलाफ नीतीश को सख्त प्रशासक और विकास के प्रतीक के रूप में खड़ा किया।
2005 का साल, बिहार के इतिहास में एक निर्णायक मोड़ लेकर आया था। 15 साल के लंबे लालू-राबड़ी राज के बाद जनता बदलाव चाह रही थी। उसी साल नीतीश कुमार ने पहली बार सत्ता की बागडोर संभाली और बिहार की राजनीति में एक नया अध्याय शुरू हुआ। कहा जाता है कि 2005 के चुनाव ने न सिर्फ सरकार बदली, बल्कि बिहार की राजनीति की दिशा भी बदल दी। इस वर्ष फरवरी में हुए चुनाव में खंडित जनादेश आने के बाद अक्टूबर में दोबारा चुनाव हुए थे। इस चुनाव से पहले उम्मीदों से भरे युवा नीतीश कुमार जुलाई के महीने में चंपारण की धरती पर पहुंचे थे, लेकिन जब वो वहाँ पहुंचे तो सिर्फ चुनाव प्रचार नहीं कर रहे थे। वो पूरी तरह से राज्य के भविष्य की तस्वीर गढ़ रहे थे। यही थी उनकी ऐतिहासिक 'न्याय यात्रा', जिसने न सिर्फ नीतीश की सोच को बदला, बल्कि बिहार की राजनीति का ट्रैक भी बदल डाला।
चंपारण की धरती और अपराध का दौर
ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ गांधीजी के सत्याग्रह के लिए विख्यात चंपारण, 2005 तक फिरौती, अपहरण, सड़क लूट, दंगे जैसे अपराधों की भी पहचान बन गया था। नीतीश कुमार ने इस 'जंगलराज' की हकीकत, जर्जर सड़कें, डरी-सहमी जनता और विकास से दूर जीवन को करीब से देखा।
जनता से संवाद ने बदला नजरिया
न्याय यात्रा के दौरान उस वक्त नीतीश कुमार खुद कहा था कि तीन-तीन हजार करोड़ रुपये हर साल बच्चों की पढ़ाई और लोगों के इलाज के लिए बिहार से बाहर जा रहे हैं। उन्होंने जनता से कहा, "यह पैसा अब बिहार के विकास में लगना चाहिए।" अपनी यात्रा के दौरान लोगों से बातचीत के दौरान उन्होंने यह भी स्पष्ट किया था कि राज्य में कानून का राज स्थापित करना और निवेश आकर्षित करना पहली प्राथमिकता होगी।
चंपारण से बनी थी सख्त प्रशासक की छवि
चंपारण की सभा में जब नीतीश ने अपराधियों को ललकारा, तो तालियों की गूंज और भीड़ का उत्साह असाधारण था। हर सभा में उनका संदेश साफ था, जनता भ्रमित न हो, राज्य के व्यापक उत्थान के लिए न्याय के साथ विकास को चुने। यात्रा के अनुभवों के आधार पर नीतीश कुमार ने 'न्याय के साथ विकास' का मॉडल गढ़ा, जिसमें कानून-व्यवस्था सर्वोपरि थी। भूमि सुधार के क्षेत्र में काम, लोकशक्ति को जगाना, भ्रष्टाचार पर अंकुश जैसे विषय उसी समय उनके विजन का हिस्सा बने।
नये बिहारीपन का पैगाम
इसी यात्रा के दौरान जब सीएम नीतीश कुमार मुजफ्फरपुर पहुंचे थे तो उन्होंने कहा था कि बिहारी होना मजाक नहीं, गर्व की बात होगी। यहां लोगों में बहुत मेधा है, बिहारियों को अगर चाँद पर भी अवसर मिले तो वो चांद को भी सफल बना देंगे। उन्होंने विकास और गुड गवर्नेंस के लिए लोगों से जाति-धर्म से ऊपर उठकर वोट देने की अपील करते हुए कहा था, "इस बार आर-पार की लड़ाई है, सिर्फ विकास के नाम पर वोट करें।"
ऐतिहासिक रिजल्ट
अक्टूबर 2005 आते-आते, बिहार का मतदाता तैयार था बदलाव के लिए। 'न्याय यात्रा' की पड़ताल, संवाद और सख्त वादों ने नीतीश कुमार को बिहार का उम्मीदों का नेता बना दिया। इस चुनाव में नीतीश कुमार की जेडीयू 139 सीटों पर चुनाव लड़ी और 88 सीटों पर जीत हासिल की, जबकि राष्ट्रीय जनता दल 175 सीटों पर चुनाव लड़ा और केवल 54 सीटों पर जीत हासिल की। जेडीयू के साथ मिलकर लड़ी बीजेपी 102 सीटों पर चुनाव लड़ी और 55 सीटों पर जीत हासिल की।
