बिहार विधानसभा चुनाव 2025 दो चरणों (6 व 11 नवंबर) में होंगे। यह राज्य के चुनावी इतिहास का नया पड़ाव है, जो 1952 के 6-चरणीय चुनाव से लेकर 1-दिवसीय मतदान तक कई बदलाव देख चुका है। यह निर्णय चुनावी दक्षता और पारदर्शिता की दिशा में एक कदम है।

पटनाः बिहार में एक बार फिर लोकतंत्र का महापर्व शुरू होने जा रहा है। निर्वाचन आयोग ने बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तारीखों की घोषणा कर दी है। इस बार राज्य में दो चरणों में मतदान होगा। पहला चरण 6 नवंबर को और दूसरा चरण 11 नवंबर को, जबकि 14 नवंबर को मतगणना होगी। लेकिन इस दो-चरणीय मतदान की कहानी के पीछे एक लंबा इतिहास छिपा है। एक ऐसा इतिहास, जिसमें बिहार ने 6 चरणों से लेकर एक दिन में संपन्न हुए चुनावों तक सब देखा है।

1952 में चला था 21 दिन तक लोकतंत्र का पहला महायुद्ध

भारत की आज़ादी के बाद बिहार में पहला विधानसभा चुनाव 1952 में हुआ था। उस वक्त राज्य में 6 चरणों में मतदान कराया गया था, जो 4 जनवरी से 24 जनवरी तक यानी पूरे 21 दिनों तक चला। यह बिहार के चुनावी इतिहास का सबसे लंबा और व्यापक चुनाव था। उस दौर में न तो सड़कें थीं, न संचार के आधुनिक साधन। चुनाव आयोग को हर क्षेत्र में मतदान कर्मियों और मतपेटियों को पहुँचाने के लिए बैलगाड़ी, नाव और पैदल रास्तों का सहारा लेना पड़ता था।

1957 से 1980 तक: चरणों की संख्या में उतार-चढ़ाव

1957 में चुनाव दो चरणों में कराए गए। इसके बाद 1962 और 1967 के चुनाव चार-चार चरणों में हुए। 1967 का चुनाव इसलिए भी ऐतिहासिक रहा क्योंकि लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए गए थे। फिर 1969 में बिहार में पहली बार एक दिन में मतदान कराया गया। इसे राज्य का पहला “एक-दिवसीय मध्यावधि चुनाव” कहा गया। 1980 का चुनाव भी एक ही चरण में हुआ और उस समय बिहार की कुल मतदाता संख्या करीब 4 करोड़ के आसपास थी।

1990 का दशक: तीन से पाँच चरणों का दौर

1990 में बिहार ने फिर से एक चरण में मतदान देखा, लेकिन 1995 आते-आते यह संख्या तीन चरणों तक पहुँच गई। 2000 के चुनाव में मतदान चार चरणों में संपन्न हुआ। सबसे रोचक चुनाव वर्ष 2005 का रहा, जब बिहार में एक ही साल में दो बार विधानसभा चुनाव हुए। फरवरी 2005 में पाँच चरणों में मतदान हुआ, लेकिन कोई भी दल स्पष्ट बहुमत नहीं पा सका। अक्टूबर-नवंबर 2005 में फिर से पाँच चरणों में मतदान कराया गया और उसी चुनाव ने नीतीश कुमार को सत्ता की कुर्सी तक पहुँचाया।

2010 से 2020 तक: तीन चरणों का स्थिर मॉडल

2010, 2015 और 2020 में लगातार तीनों चुनाव तीन चरणों में कराए गए। 2020 का चुनाव विशेष था, क्योंकि यह कोरोना महामारी के बीच कराया गया था। उस वक्त सुरक्षा और स्वास्थ्य प्रोटोकॉल को ध्यान में रखते हुए मतदान केंद्रों की संख्या बढ़ाई गई थी।

2025 में सिर्फ दो चरण, चुनाव आयोग का “स्मार्ट” मॉडल

इस बार चुनाव आयोग ने बिहार में दो चरणों में मतदान कराने का निर्णय लिया है। पहले चरण में 6 नवंबर को 121 सीटों पर वोट डाले जाएंगे, जबकि दूसरे चरण में 11 नवंबर को 122 सीटों पर मतदान होगा। मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा है कि इस बार हर बूथ पर अधिकतम 1200 मतदाता, 100% वेबकास्टिंग, रंगीन फोटो वाले वोटर कार्ड, और मोबाइल जमा व्यवस्था जैसी नई पहलें की जा रही हैं। यह निर्णय न केवल प्रशासनिक दक्षता बल्कि चुनावी पारदर्शिता और सुरक्षा को सुनिश्चित करने की दिशा में बड़ा कदम माना जा रहा है।

बिहार की चुनावी परंपरा: सुरक्षा और सुगमता का मेल

बिहार हमेशा से ही देश के सबसे जटिल और बड़े चुनावी राज्यों में गिना जाता रहा है। राज्य के भौगोलिक विस्तार, घनी आबादी और विविध सामाजिक संरचना के कारण चरणवार मतदान की जरूरत हमेशा रही है। 1952 के 21 दिनों वाले चुनाव से लेकर 2025 के दो-दिवसीय मतदान तक का यह सफर इस बात का प्रमाण है कि बिहार ने समय के साथ अपने चुनावी ढांचे को लगातार आधुनिक बनाया है।

लोकतंत्र का सफर हुआ आसान, पर उतना ही रोचक

बदलते दौर के साथ बिहार का चुनावी फॉर्मूला भी बदला है। जहां पहले चुनाव लोगों तक पहुँचाने की चुनौती थी, वहीं अब चुनौती है हर वोट को पारदर्शी और सुरक्षित बनाना। 2025 का चुनाव इस लिहाज से ऐतिहासिक है, क्योंकि यह न सिर्फ़ “विकास” की राजनीति का इम्तिहान होगा, बल्कि बिहार के चुनावी इतिहास की एक नई, टेक्नोलॉजी-ड्रिवन शुरुआत भी करेगा।