बिहार चुनाव 2025 में किशनगंज की चारों विधानसभा सीटों पर कड़ा मुकाबला होगा। AIMIM के स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ने से मुस्लिम वोट बैंक में विभाजन की उम्मीद है, जिससे महागठबंधन की पकड़ कमजोर हो सकती है और एनडीए को अप्रत्याशित लाभ मिल सकता है।

Bihar Chunav 2025 : बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले किशनगंज जिले की सियासी लड़ाई फिर से ज़ोर पकड़ रही है। मुस्लिम बहुल इस जिले को लंबे समय से महागठबंधन का किला माना जाता रहा है, लेकिन इस बार वहां राजनीतिक परिदृश्य पूरी तरह बदलता दिख रहा है। एनडीए पूरी ताकत के साथ किशनगंज में जीत की दावेदारी पेश कर रहा है, जबकि ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम के स्वतंत्र चुनाव लड़ने से महागठबंधन के वोट हिस्से में बंटवारा हो सकता है, जिससे एनडीए को अप्रत्याशित लाभ मिलने की संभावना बनी है।

पिछले चुनाव कि स्थिति

पिछले विधानसभा चुनावों में किशनगंज की चार विधानसभा सीटों में से दो सीटें महागठबंधन के पास थीं, जबकि दो सीटों पर एआईएमआईएम ने कब्जा जमाया था। हालांकि, बाद में एआईएमआईएम के दोनों विधायक राजद में शामिल हो गए, जिससे फिलहाल सारी सीटें महागठबंधन के कब्जे में हैं। लेकिन इस बार एआईएमआईएम के मुकाबले में स्वतंत्र खड़े होने से ये समीकरण बदल सकते हैं।

  1. किशनगंज सदर: 2020 में कांग्रेस के इजहारुल हुसैन ने बीजेपी की स्वीटी सिंह को केवल 1,381 वोटों के अंतर से हराया था। उस चुनाव में एआईएमआईएम के कमरूल होदा ने तीसरा स्थान हासिल किया था और 41,904 वोट लेकर मजबूत स्थिति दिखायी थी। इस बार एआईएमआईएम के उम्मीदवार का चुनाव लड़ना कांग्रेस के लिए चुनौती बन सकता है।
  2. ठाकुरगंज: पिछले दशकों में कांग्रेस का गढ़ रहने वाला यह क्षेत्र 2020 में राजद के सऊद आलम ने जीता था। इस सीट पर जदयू के पूर्व उम्मीदवार गोपाल अग्रवाल ने शामिल होकर एनडीए के लिए दावेदारी पेश कर दी है। ठाकुरगंज में एनडीए कार्यकर्ता सम्मेलन भी आयोजित कर अपनी पकड़ मजबूत करने का प्रयास कर रहा है।
  3. बहादुरगंज: यह विधानसभा क्षेत्र 16 चुनावों में से 10 बार कांग्रेस की झोली में रहा है। 2020 में एआईएमआईएम के मोहम्मद अंजार नईमी ने जीत की, जो अब राजद में शामिल हो चुके हैं। महागठबंधन से चुनाव लड़ने की संभावना है, जबकि एनडीए भी यहां प्रत्याशी उतारकर कड़ी टक्कर देगा।
  4. कोचाधामन: 2008 के परिसीमन के बाद से यह सीट चुनावों में नया चेहरा लेकर आ रही है। जदयू के मुजाहिद आलम ने इस सीट से कई बार जीत हासिल की, लेकिन वे अब राजद में शामिल हो गए हैं। जदयू इसे छोडकर नई दावेदारी करने की तैयारी में है, वहीं एनडीए भी इसे अपना संभावित गढ़ बनाने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।

कैसे बदल रहा समीकरण

किशनगंज की राजनीति अब वर्गीय और जातीय समीकरणों के चलते बेहद जटिल हो गई है। मुस्लिम मतदाता जिले की कुल आबादी का लगभग 70% हैं और यह जनसंख्या जिले की चुनावी नीतियों को तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। कांग्रेस ने इस सीट पर लंबे समय तक मुस्लिम-यादव गठबंधन को साधकर जीत हासिल की है, लेकिन एआईएमआईएम के अलग चुनाव लड़ने से मुस्लिम वोट बंटेंगे, जिस वजह से महागठबंधन कमजोर पड़ सकता है। इस मतदाता बंटवारे से एनडीए को लाभ मिलने के आसार हैं, बशर्ते वह हिंदू मतदाताओं का समर्थन बनाए रखे। किशनगंज में बीजेपी की लगातार हार के बावजूद वह इस बार जिले में अपनी पकड़ मजबूत करने के प्रयास में है।

किशनगंज जिले की चारों विधानसभा सीटों पर कड़ा मुकाबला होने वाला है। बदलते राजनीतिक समीकरण, एआईएमआईएम के स्वतंत्र चुनाव लड़ने का निर्णय, और एनडीए की सक्रिय मेहनत जिले की राजनीति को पूरी तरह नया रंग देने वाली है। आगामी चुनाव में यहां के मतदाता किस दिशा में अपना समर्थन देते हैं, यह बिहार की राजनीति के लिए एक महत्वपूर्ण संकेत होगा।